प्राचीन ग्रन्थों में लाहौर शहर को “लवपुरा” के नाम से बताया गया है, आज भी Lahore Fort मे इस शहर के संस्थापक प्रभु श्रीराम के पुत्र लव को समर्पित एक मन्दिर विराजमान है.
जीर्ण-क्षीण हालात मे स्थित उस मन्दिर में पूजा-अर्चना तो खैर 1947 से बैन है, पर “लाहौर किले” में विद्यमान यह मन्दिर इस शहर के हिन्दू सनातन इतिहास की गवाही देती है.
1947 में जहां लाहौर में करीब 36% हिन्दू-सिख हुआ करते थे, वहीं आज की तारीख मे सिर्फ 1607 हिन्दू ही बचे हैं. अगले 5 साल मे शायद लाहौर पूर्णरूप से हिन्दू विहीन होगा.
लाहौर की New Anarkali स्थित भीम स्ट्रीट पर हिंदुओं के लिए बचे इकलौते कार्यात्मक मन्दिर में पूजा पाठ करते हिन्दू समुदाय की तस्वीरें देखें. कहा जाता है लव-कुश के गुरु और “रामायण” के रचीयता हिन्दू ऋषि वाल्मीकि जी को समर्पित यह मंदिर करीब 12000 साल पुराना है.
लाहौर शहर को अंदर से जानने वाले आपको बताएँगे कि किस तरह लाखों हिन्दू और सिखों ने अपनी जान बचाने के लिए ईसाइयत को स्वीकार किया.
2011 में DAWN समाचारपत्र में एक स्टिंग प्रसारित हुआ था, जिसमें उन इसाई महिलाओं ने अपने घर के कोने में बने एक अंधेरे कमरे के संदूक को खोल जब दीप जला आंखे बंद कर माँ दुर्गा शप्तशती पाठ कंटस्थ पाठ करने लगी तो स्टिंग करने वाले भी चौंक गए.
संदूक में माँ दुर्गा और काली की तस्वीर तथा अन्य हिन्दू धार्मिक किताबें रखीं थी.
ईसाई की जान कुछ हद तक पाकिस्तान मे सुरक्षित है, और उन्हें बाहरी मदद भी मिल जाती है. इसीलिएउन्होंने हिन्दू धर्म को बचाने का यह रास्ता अपनाया.
उन हिंदुओं की व्यथा को एक बार महसूस करके देखिये जो खुलकर न खुद को हिन्दू बता सकते और न पूजा पाठ ही कर सकते हैं.
– डॉ. आलम (Facebook Post)