आई है बेटी अपने घर
कुछ दिनों की मेहमान
बन कर…
जिस घर में हुई पैदा
पढ़ी लिखी बड़ी हुई
चहचहाती रही है
अपनी चिड़िया की बोली से..
कर गयी पराया अपना अँगना
एक दिन…
ढेरों खुशियाँ मिले
उसकी उड़ान को
सही आसमान मिले…
बेजान घर को दे जाती है
साँसे फिर से
फ़िज़ाओं में खुश्बू फ़ैलाती हुई
घर के हर कोने को कर देती है ज़िन्दा
चिड़िया सी बोली से
मिश्री घोल कर देती है..
नन्हीं परी अपने जादू से
कर देती आँगन हरा भरा …
– कल्पना भट्ट