कुछ संबंधियों तथा अन्य बहुत सारे लोग (मित्र और पुराने परिचित, सीनियर) इनबॉक्स, व्हाट्सएप, ईमेल में मुझसे प्रश्न कर रहे हैं कि मैं बाबा रामदेव का खुला समर्थन क्यों कर रहा हूं.
मेरा मैसेज बॉक्स भर चुका है और हर एक को व्यक्तिगत रूप से जवाब देना संभव नहीं इसलिए यहाँ सार्वजनिक रूप से उत्तर दे रहा हूँ.
तर्क हज़ार हैं पर यहां दिल की बात लिखूंगा.
1. शांतिदूत, वामी, सामी, कामी, झामी और कुछ व्यापारी बाबा का इतना खुला विरोध क्यों करते रहे है?
जिस नाते वे विरोध करते हैं उसी नाते मैं उनका खुला समर्थक हूं.
2. उनसे (बाबा से या पंतजलि से) मेरा दूर-दूर तक कोई व्यक्तिगत लेना-देना नही है, न ही मैं उनके संगठन से कभी जुड़ा रहा और न ही शिविर वगैरह से, न मैं कोई चेला-चपाटी हूं, बल्कि योग-प्राणायाम आदि को इस तरह सार्वजनिक करने का मैं विरोधी हूं.
हां! सनातन चेतना और ज्ञान को स्थापित, विकसित देखना चाहता हूं. मोदी, बाबा या संघ के हाथों में अपनी कामनाएं पूर्ण करने की योग्यता, क्षमता भी स्पष्ट देखता हूं.
त्यागी-बलिदानी और परिश्रमी तो वे हैं ही. यह मैं एक पेशेवर पत्रकार होने के नाते जानता हूं. इसलिए जो भी बन पड़ता है, निरपेक्ष और निष्काम करता हूं, और यथासम्भव करूँगा.
पर मुझे लगता है कि इससे देश-सनातन का भला हो रहा है इसलिए निरपेक्ष भाव से लिखता हूं.
3. देश भर में 30 हजार से भी अधिक बाबा, साधु, सन्यासी धर्म के नाम पर जी-खा रहे हैं. 5 लाख करोड़ से अधिक की सम्पदायें मंदिरो, ट्रस्टों में निष्क्रिय पड़ी सड़ रही है.
धर्म प्रकृति, ईश्वर, मानवता, जीव संरक्षण, पर्यावरण, संस्कृति सुरक्षा के नाम पर उसमें से कुछ भी खर्च नहीं होता या फिर मुस्टंडे जीते-खाते है.
इसको डम्प इकॉनमी कहते हैं. 2000 साल की डम्प इकॉनमी जिसने अर्थव्यवस्था में अपना कोई योगदान नहीं दिया है.
उन्हीं में से निकला एक बाबा, जिसे धन उगाह कर मठ नहीं बनाना, अपने घर नहीं ले जाना, जिसे राष्ट्र-निर्माण करना है, सक्रिय मॉडर्न आर्थिक योगदान दे रहा है.
बिना भिक्षा-चंदा मांगे, बिना अनुदान लिए वह ‘उत्पादक’ की भूमिका में रहकर ‘सनातन राष्ट्र’ बना रहा है.
देश के दुश्मनों, परावलम्बियों, यथास्थितिवादियों को यही चुभ रहा है. वे सनातन व्यवस्था को जड़त्व में देखना चाहते हैं. वे यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे कि देश उनकी गुलामी से मुक्त हो रहा है.
बाबा रामदेव ने दो हजार साल का पुराना जड़त्व तोड़ा है इसलिए मैं बाबा, पतंजलि और उनके उत्पादों का खुला समर्थक हूं.
मैं तो चाहता हूँ इस ऊर्जा से भरे हजार-दो हजार बाबा, योगी, सन्यासी, राष्ट्र निर्माता बनकर आगे आएं और राष्ट्र को दैहिक, भौतिक, आध्यात्मिक, उच्चतम शिखर पर ले जाएं.
(भगवद गीता अध्याय: 6, श्लोक 46)
तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन॥
भावार्थ: योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, शास्त्रज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है और सकाम कर्म करने वालों में भी योगी ही श्रेष्ठ है. इससे हे अर्जुन! तू योगी बन….
ये बाबा राष्ट्र-निर्माण का योगी हैं जो इस सनातन राष्ट्र को विश्वगुरु के पद तक पहुचाएंगे.