लिखने वाली औरतें…..

लिखने वाली औरतें…..
लिखती हैं तो
ज़ज़्बात लिखती हैं….
लिखती हैं तो
इतिहास रचती हैं…..
लिखने वाली औरतें
सृजन करती हैं…..

जब वो जीती हैं
तो लिखती हैं
जब वो मरती हैं
तो भी लिखती हैं…..
जब वो प्रेम करती हैं
तो भाव लिखती हैं
जब टूटती हैं
तो एहसास लिखती हैं…..

मीरा ने प्रेम किया
तो गीत गा लिए
बेसुध हो सब भूल
नाच लिया…..
बदले में विषपान किया
जो प्रेमगीत रचे
जिनसे बदनाम हुई
वो आज भक्तिगीत हैं…..
कहते हैं
लिखने वाली औरतें
बदनाम होती हैं…..

इस्मत चुगताई कड़वा लिखती थी
वो मर्दों के साथ रह
मर्दों से जूझती थी…..
वो अपने “लिहाफ” पर
मुकदमें झेलती थी…..
वो अपने साथी लेखकों से
लोहा लेती थी
वो उनके सामने ही
उनका मुँह नोच लेती थी…..
और अश्लील होने का तमगा
बहुत ख़ुशी से पहनती थी…..
कहते हैं
लिखने वाली औरतें
अश्लील होती हैं

महादेवी पीड़ा लिखती थी
जब रोती थी
तब आँसू नहीं
शब्द बहते थे…..
वो आसमान के कोनों में
अपना वजूद ढूँढती थी…..
वो बस एक बार
प्रिय को पास बुलाने
की चाह में जीती थी…..
वो हर बात
अपने मन में ही दबाती थी…..
कहते हैं
लिखने वाली औरतें
रहस्यमयी होती हैं…..

अमृता ने सच लिखा
कड़वा नग्न सच लिखा…..
ज़ज़्बात लिखे
तो दुःख किये…..
अपनी पीड़ा को
अक्षरों का शक़्ल देती
फिर उसको ही
घूँट-घूंट पीती…..
बस थोड़ी
शातिर करार दी गई……
कहते हैं
लिखने वाली औरतें
चालाक होती हैं…..

परवीन ने शेर लिखे
मुहब्बत की गज़ल कही
इश्क़ की नज़्में पढ़ीं…..
अन्दर से रोती थी
तब जज़्बातों को
लफ़्ज़ों में पिरो देती थी…..
हर हाल में भी
पूर्ण होने पर भी
कहीं अपूर्ण थी…..
उसकी किस्मत
हादसे के हाथ में थी…..
कहते हैं
लिखने वाली औरतें
अभागी होती हैं…..

सारा अमृता को
जीती थी…..
समाज के हाथों की
कठपुतली थी
सब अपनी उंगलियों पर
नचाते थे उसे…..
वो रोती थी
सिसकती थी
अपने मरे हुए
बच्चे को ढूँढती थी…..
सबके लिए मन बहलाने का
साधन थी…..
जब सह नहीं पाई
तो मौत को
गले लगा लिया…..
कहते हैं
लिखने वाली औरतें
कायर होती है…..

लेकिन लिखने वाली औरतें
मरती हैं
पर झुकती नहीं…..
लिखने वाली औरतें
रोती हैं पर
ठहाके लगाकर
निर्भीक हँसती हैं…..
लिखने वाली औरतें
कपडे उतरवाती नहीं
कपड़े उतार देती हैं…..

मुझे फ़ख़्र है
मैं लिखती हूँ…..
क्योंकि मैं ज़ज़्बात लिखती हूँ…..
मैं एहसास लिखती हूँ…..
मैं प्यार लिखती हूँ…..

– अनीता सिंह

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