Holocaust Denial और भारतीय मुसलमान

क्या है Holocaust? द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मन और उनके साथियों ने लाखों की संख्या में यहूदियों का जो नरसंहार किया उसे Holocaust कहा जाता है.

युद्ध के पश्चात हारे हुए जर्मनी से इसका बड़ा दंड भी वसूला गया वो अपने आप में एक अलग कहानी है. लेकिन यहाँ बात Holocaust denial की है, याने होलोकॉस्ट को नकारना.

बिना तफसील में जाए ये कहूँगा कि कुछ सालों बाद एक मूवमेंट आई जिसमें कुछ लोगों ने यह कहना शुरू किया कि –

ऐसा कोई नरसंहार हुआ ही नहीं.

हाँ, शायद थोड़े यहूदी मारे गए, लेकिन वे तो वैसे ही मारे गए जैसे अन्य किसी भी युद्ध में मारे जाते हैं.

छ: मिलियन तो बिलकुल नहीं.

यह सब झूठ है, जर्मनी को बदनाम करने के लिए केवल दुष्प्रचार है.

खैर, इस्राइल तब तक राष्ट्र बन चुका था, और यहूदी भी चुप नहीं बैठे – वे हिन्दू थोड़े ही थे?

उन्होने इनके खिलाफ जबर्दस्त अभियान चलाया और ऐसी विचारधारा के समर्थकों पर बाकायदा मामले चला दिए और उन्हें सजा तथा आर्थिक दंड भी करवाया.

उन्हें Holocaust denier याने होलोकॉस्ट को नकारनेवाले कहा और Holocaust denial को 16 देशों में कानूनन जुर्म भी स्थापित करवाया.

क्या वजह थी कि इन लोगों ने इतनी बड़ी दुर्घटना को झूठ ठहराने की कोशिश की? एक जाने माने सायकियाट्रिस्ट Walter Reich के शब्दों में :

“The primary motivation for most deniers is anti-Semitism, and for them the Holocaust is an infuriatingly inconvenient fact of history.

After all, the Holocaust has generally been recognized as one of the most terrible crimes that ever took place, and surely the very emblem of evil in the modern age.

If that crime was a direct result of anti-Semitism taken to its logical end, then anti-Semitism itself, even when expressed in private conversation, is inevitably discredited among most people.

What better way to rehabilitate anti-Semitism, make anti-Semitic arguments seem once again respectable in civilized discourse and even make it acceptable for governments to pursue anti-Semitic policies than by convincing the world that the great crime for which anti-Semitism was blamed simply never happened—indeed, that it was nothing more than a frame-up invented by the Jews, and propagated by them through their control of the media?

What better way, in short, to make the world safe again for anti-Semitism than by denying the Holocaust?”

क्या सटीक वर्णन है! इसको piece by piece समझते हैं –

होलोकॉस्ट नकारनेवालों की मूल प्रेरणा यहूदी द्वेष रहा है और उनके लिए यह नरसंहार एक अत्यंत शर्मसार कर देनेवाला ऐतिहासिक सत्य है.

आखिरकार होलोकॉस्ट एक अत्यंत नृशंस गुनाह माना गया है और आधुनिक युग में इस से बुराई का मूर्त रूप.

अगर यह गुनाह यहूदी विरोध का सीधा परिणाम है – एक ऐसी भावना जिसे अपने अंजाम तक जाने दिया जाय – तो फिर बहुसंख्य लोगों के लिए मित्रों के बीच संवाद में भी यहूदी विरोध, घृणा का विषय बन जाएगा.

इसीलिए यहूदी विरोध को पुनर्प्रतिष्ठा दिलाने का सब से बेहतर मार्ग यही था कि होलोकॉस्ट को नकारा जाये – जी, यह कभी हुआ ही नहीं जी, यह सब केवल यहूदियों के झूठे आरोप हैं जी, मीडिया उनसे मिली हुई है जी और हमारे विरोध में दुष्प्रचार कर रहे हैं जी.

मतलब, दुबारा यहूदी विरोध धड़ल्ले से बेरोकटोक करना है तो होलोकॉस्ट ही नकार दो – ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था जी!

खैर, Holocaust Denial भी अपने आप में काफी रोचक किस्सा है इतिहास का, ग्रंथ भरे हैं, इतने से लेख में नहीं आनेवाला, लेकिन अब तक आप सोच रहे होंगे, इसका भारतीय मुसलमानों से क्या ताल्लुक?

अगर आप केवल द्वितीय विश्वयुद्ध के यहूदी नरसंहार की बात कर रहे हैं, तो उस से उनका ताल्लुक नहीं. लेकिन मैं बात कर रहा हूँ Denial की – और इसका इस्लाम के रक्तरंजित इतिहास से पूरा ताल्लुक है.

आजकल सोशल मीडिया पर कई सारे मुसलमान मिलते हैं जो सरासर झूठ बोलते हैं कि इस्लाम भारत में बिलकुल शांतिपूर्ण तरीके से आया. कोई लड़ाई हुई ही नहीं.

सीधा कह देते हैं कि हिन्दू समाज के कुछ हिस्सों ने ब्राह्मणों के खिलाफ चिढ़कर इस्लाम और बाहरी मुसलमान को दावत दी, और समाज का बहुसंख्य हिस्सा मुसलमान हो जाने से सत्ता मुसलमानों की हो गई.

इतनी बेशर्मी से कह देते हैं कि मुसलमानों ने कोई लड़ाइयाँ लड़ी ही नहीं हैं हिंदुओं के साथ, हमारा तो शांति का मजहब है. जो भी इतिहास बता दें, कहते हैं यह सब अंग्रेज़ या हिंदुओं का रचा हुआ झूठ है.

वैसे जो बात होलोकॉस्ट नकारने वालों पर लागू थी, वही इन पर भी सटीक बैठती है – क्यूंकी उनके लिए भी उनके पूर्वज जिस तरह से मुसलमान हुए, वह एक अत्यंत शर्मसार कर देनेवाला ऐतिहासिक सत्य है.

यूँ ही चलता रहे तो कोई आश्चर्य न होगा अगर कल ये घोषित करें कि भारत का मूल मजहब इस्लाम ही था, वो तो मुसलमान अपना शांति का संदेश देने के लिए अरब तक गए तो यहाँ आर्यों ने चुपके से आ कर धोखे से हिन्दू धर्म की स्थापना की, बाकी भारतीय प्रजा का मजहब इस्लाम ही था, मुहम्मद के पहले शिव, राम, कृष्ण आदि इस्लाम के पैगंबर ही होकर गए.

वैसे भी, तमाम Abrahamic Religions के मूल पुरुष आदम को एवं यहूदियों के सभी प्रोफेट्स, ईसा भी, सब को ये मुसलमान ही घोषित कर चुके हैं .

अरे, कल्कि अवतार को भी ये मुहम्मद बता देते हैं, लेकिन आप पूछें कि क्या इसके पहले के भी अवतार आप मानते हैं, खास कर के वराह अवतार – तो आप को तुरंत असहिष्णु घोषित कर देते हैं.

वैसे एक सीरियस बात यह है कि यह सभी मुसलमान अशरफ नहीं होते, बल्कि अजलफ तबके से होते हैं.

तो क्या यह बस फितरतन Falsification and denial of History है या कोई identity crisis की उथल पुथल है? जैसे पाकिस्तान बनते ही यहाँ पर कई सारे सय्यद, शेख, खान हो गए, वैसे ही?

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