वो कहते हैं सपने मत देखो क्योंकि सपने कभी सच नहीं होते!
कई साल पहले एक हिन्दुस्तानी ने ऐसा ही सपना देखा था. ऐसे कई लोग, जिन्होंने अपने बाल धूप में नहीं पकाए थे, उन्हें लगता था कि इसके सपने पूरे नहीं होंगे.
उसका सपना था भारत में ही स्टील बनाने का सपना. कुछ तीसेक साल के जमशेदजी टाटा ने जब ये सपना देखा था तो कोई सोच भी नहीं सकता था कि आज के झारखण्ड के जंगल में कभी जमशेदपुर जैसा कोई शहर होगा.
उन्हें सपने देखने से सब मना करने लगे. अंग्रेजी साहब को उनका सपना सुनकर हंसी ही आ गई!
फिरंगी सरकार बोली, अरे हिन्दुस्तानी फौलाद बनायेंगे? उनका बनाया स्टील कितना मजबूत होगा, अंग्रेज़ सुबह नाश्ते में चबा जायेंगे!
नहीं भाई, अतिशयोक्ति अलंकार नहीं है, नाश्ते में भारतीय स्टील खाने की बात की थी. रेकॉर्डेड हिस्ट्री है.
मगर उस आदमी ने सपने देखना छोड़ा नहीं. दुनिया देख चुके तजुर्बेकारों की सलाह भी नहीं मानी.
आज उसी टाटा कंपनी के छोटे हिस्सों के भी शेयर जरा सा ऊपर नीचे हो जाएँ तो हज़ारों की नींद उड़ जाती है.
अदरक के व्यापारियों को जहाज की खबर से क्या? मगर लोहे की कंपनी के सीईओ बदलने की खबर से ख़बरों की दलाली करने वालों के आज कई पन्ने रंग जाते हैं.
कितने रोजगार उस से जुड़े हैं सिर्फ उसकी गिनती मत देखिये. बड़ी कंपनियां चलाने वाले कई एक्स.एल.आर.आई से पढ़े हैं. समाजसेवियों में से लगभग हरेक बड़ा नाम टी.आई.एस.एस. से निकला हुआ होगा.
एक हवाई उड़ान वाली कंपनी जो उन्होंने बना के दान की थी वो आज एयर इंडिया के नाम से जानी जाती है.
बरसों तक सिर्फ विदेशी कार या अम्बेसेडर पर निर्भर देश के निम्न मध्यम वर्ग उनके बनाये नैनो पर सवारी कर पाता है.
बाकी वो तजुर्बेकार हैं, कहते हैं सपने मत देखो, तो मनगढ़ंत बातें तो नहीं ही करते होंगे हो सकता है मैकॉले मॉडल के बढ़िया स्कूलों में पढ़ाया गया होगा.
हो सकता है उनके माँ बाप ने भी उन्हें सपने ना देखना सिखाया होगा. ठीक ही कहते होंगे, नहीं?