विज्ञान ने फ़ौरी तौर पर हमारी ज़िंदगी आसान बनाई है. तमाम बीमारियाँ जिनका पहले कोई इलाज न था, उनके बारे में हमारी समझ और उनके इलाज में क्रांतिकारी प्रगति हुई है. हवाई जहाज़ से हम फुर्र से सात समंदर पार देशों की सैर कर आते हैं. फेसबुक पर दुनिया भर में फैले मित्रों से तुरंत विचार का आदान प्रदान कर सकते हैं.
यहां तक तो ठीक है.
पर जिसे हम विज्ञान कहते हैं, उसने और भी बहुत कुछ किया है. विज्ञान ने एक नई विचारधारा दी. इस विचारधारा के मुताबिक विज्ञान के पास ब्रह्मांड के हर सवाल का पक्का और आखिरी जवाब है. जो कुछ विज्ञान के बाहर है, झूठा है. विज्ञान वह नया चमचमाता हुआ ईश्वर है जो मनुष्य की ज़िंदगी संवारेगा.
हरित क्रांति के काल में जब किसानों ने जमीन के अत्यधिक दोहन और रासायनिक खाद के संभावित ख़तरों के बारे में शंकाएँ व्यक्त कीं उन्हें मूर्ख और जंगली घोषित कर दिया गया.
मनुष्य ही इस धरती का सर्वेसर्वा है और उसकी “प्रगति” ही हमारा धर्म है के नारे के मुताबिक़ विज्ञान ने आसमान, धरती, हवा, नदी, समुद्र, जीव जंतुओं को नोचने खसोटने की नई नई तरकीबें इजाद कीं. और जब धरती से मन नहीं भरा तो अंतरिक्ष पर धावा बोल दिया.
हजारों वर्षों से चली आ रही संस्कृतियों और उनकी जीवन पद्धति और उनके ऐतिहासिक ज्ञान को जादू टोना क़रार दे दिया गया और उन्हें बुलडोज़र से ध्वस्त कर कंक्रीटी विकास से पाट दिया गया.
यहां अंदमान समुद्र में सुनामी की याद आती है. इन द्वीपों में “सभ्यता” से बहुत दूर आदिवासी क़बीले हैं. लोगों ने सोचा कि वे सारे आदिवासी तो सुनामी में मारे गए होंगे, पर एक आदमी की मौत नहीं हुई क्योंकि उनके पास वह खास ज्ञान था जो उनके पुरखों से मिला था, जिसे विज्ञान भंग नहीं कर सका था.
उन्हें उनके पुरखों ने बताया था कि सुनामी आने के पहले उसके संकेत क्या होते हैं. सुनामी सदियों में एक बार आती है और विज्ञान का horizon दस बीस साल का है. पुरखों से मिले ज्ञान का horizon सदियों का है. पर विज्ञान नामक सर्वज्ञानी मज़हब ने ऐसी जानकारियों को कूड़ा करकट घोषित कर दिया.
वे तालाब, वे नदियाँ, वे देवी, वे देवता, वे जंगल, वे पहाड़, वे रीति रिवाज, वे मिथक, वे स्मृतियाँ जिनसे मनुष्य का जीवन सिंचता था, विज्ञान ने उन्हें तार तार कर मनुष्य को इतिहास के मरुस्थल में झुलसने के लिए छोड़ दिया. और पकड़ा दिया हाथ में प्रगति का निर्जीव झुनझुना.
विज्ञान की अधिनायकवादी विचारधारा और उसके केन्द्र में स्थित मानवतावाद से ही निकली हैं पूँजीवाद, मार्क्सवाद, फासीवाद और बाज़ारवाद की सर्वनाशी अवधारणाएं. इसी के गर्भ से निकले दो विश्वयुद्ध. और इसी से निकले हिरोशिमा और नागासाकी.
और अब जब दुनिया आध्यात्मिक और भौतिक तबाही के मुक़ाम पर आ खड़ी है, तब वही विज्ञान जो इस तबाही का सबब बना, तबाही से बचने के नए टोटके ले कर आया है. हवा में जो कार्बन डाइ आॉक्साइड का जहर घुला है, उसके मूल कारणों पर ध्यान देने की बजाय carbon capture जैसे band aid मार्का टोटके.
विज्ञान यदि हमारा ग़ुलाम होता तो सुंदर होता. दिक्कत यह हुई कि विज्ञान हमारा मालिक बन बैठा. और यही नहीं, उसने अपने इस नए मज़हब के प्रति लोगों की करीब करीब जिहादी क़िस्म की आस्था को जन्म दिया.
“यह बात वैज्ञानिक है, और इसलिए यह संपूर्ण सत्य है, और इसके बाहर या इसके बाद और किसी सत्य की कोई गुंजाइश नहीं है ”
– प्रदीप सिंह