वर्ष 2011, वह दौर जब अप्रैल के महीने से जन लोकपाल की लहर उठी थी. भ्रष्टाचार को रोकने की दिशा में व पारदर्शिता को लाने के उद्देश्य से लोग इसमें जुड़ते गये.
अन्ना हजारे के आंदोलन में लोगों को जयप्रकाश नारायण का चेहरा दीखा था. लग रहा था मानो कि एक बार फिर से ‘सम्पूर्ण क्रान्ति ‘का नारा बुलंद होगा. अगस्त के महीने में, जब आमरण अनशन हुआ तो लोगों की लहर देखने को मिली. मेरा प्रवास भी उस समय दिल्ली ही हुआ करता था. अनायास ही लोहिया याद आये थे कि ,”ज़िंदा कौमें पांच वर्ष तक की प्रतीक्षा नहीं करती “.
फिर इस आंदोलन के बाद केजरीवाल राजनीति में आये, बहुत से लोगों ने इसे सस्ती मानसिकता कहा. मैं तब भी समर्थन में था कि निःस्वार्थ भाव से राजनीति में आना कभी गलत नहीं होता.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के उपरान्त आआपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. जब कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनी तो मन विरक्त हुआ कि आखिर जिस पार्टी के विरोध पर ही आआपा की नींव पड़ी थी, वह उसी पार्टी से समर्थन कैसे ले सकती है?
खैर, राजनीतिक अनुभवहीनता सदैव अदूरदर्शिता को जन्म देती है, उस गठबंधन का क्या हश्र हुआ वह जगजाहिर है.
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान केजरीवाल मोदी के विपक्ष में खड़े हुये, पक्ष-विपक्ष होना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन उलजुलूल आरोप लगाकर की जा रही राजनीति कभी सफल नहीं होती, विशेषकर वह आरोप जिससे न्यायपालिका ने मोदी को क्लीन चिट दे रखी हो, लोकसभा चुनाव में भी केजरीवाल को भयंकर पराजय का सामना करना पड़ा.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल को भारी जीत मिली और स्पष्ट बहुमत से सरकार बनी. लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन होती है, और उम्मीदों में भावुक हो जाना हमारी पुरानी विशेषता रही है.
लेकिन केजरीवाल दिल्ली में बैठकर केंद्र की राजनीति कर रहे हैं, मोदी के विरोध में एक हद तक उन्मादी हो चले हैं, नीतियों के परे आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति कर रहे हैं. दिल्ली वालों की समस्या जस की तस पड़ी हुई है.
युवा मन बेहद जोशीला होता है, और वह जब किसी भी विचार से पूर्णतया प्रभावित नहीं होता है तो एक आक्रोश मुखर होता है उसके मन में. वह किसी भी सरकार की नीतियों से जब खिन्न होता है तो बदलना चाहता है उससे.
लोकतंत्र में चुनी सरकार के विरोध में सशस्त्र विद्रोह बिल्कुल गलत है, क्योंकि यहां चुनी हुई सरकार को बदलने का एक शांतिपूर्ण विकल्प सदैव उपस्थित है.
लेकिन माफ़ कीजियेगा केजरीवाल जी, आपने युवा मन के आक्रोश को मिल रही दशा व दिशा को नष्ट कर दिया है. अब जब भी कोई आम आदमी निःस्वार्थ भाव से राजनीति में आने की कोशिश करेगा और किसी भी भ्रष्ट तंत्र के विरोध में खड़े होने की कोशिश करेगा, उसमें कहीं ना कहीं आपका चेहरा दीखेगा और लोग कुचल देंगे उसके मन के आक्रोश को.
– वीर विजय की फेसबुक वाल से साभार