चेन्नई. तारीख़ 25 मार्च. साल 1989. जगह तमिलनाडु विधानसभा.
एक औरत है, बिखरे बाल, अस्त व्यस्त कपड़े. अभी कुछ ही देर पहले विधानसभा के भीतर काफी कुछ अघटनीय घटा है. वह औरत जो कि विपक्ष की नेत्री है, के साथ असंसदीय-अमर्यादित व्यवहार हुआ है.
औरत गुस्से में कांप रही है, कहती है कि अब विधानसभा में तभी लौटना होगा जब मुख्यमंत्री बन जाऊँ या सदन महिलाओं की मर्यादा सीख जाये. दो साल बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होता है. अघटनीय को अंजाम देने वाली सत्तारुढ़ पार्टी किसी तरह दो सीट जीत पाती है. अखबारें लिखती हैं, पूरा हुआ द्रौपदी का बदला. यह शुरुआत थी एक. उस औरत के शानदार सफर की शुरुआत. जयललिता जयरामन से अम्मा और पुरत्चि तलइवी हो जाने की शुरुआत.
15 साल की उम्र में जबरन फिल्मों में धकेल दी गयी. 125 फिल्मों में लीड रोल जिनमें 119 फिल्में बड़ी हिट. कई शास्त्रीय नृत्यों में पारंगत. कई गीत भी गाये. ऊब गयी फिल्मों से और टूट गयी प्रेमसंबंध टूटने से. आत्महत्या की कोशिश.
एमजीआर ले आये राजनीति में. विधायक चुनी गयी पर अंग्रेजी समेत कई भाषाओं पर शानदार पकड़ और विद्वता के कारण एमजीआर राज्यसभा भेज दिये. इसी दौरान एमजीआर का निधन हुआ.
गुरू और पितातुल्य मानती थी और ऊपर से उस इंसान ने लगभग मौत से खींचकर वापस जिंदा किया था. फिर से टूटी. तेरह घंटे लाश के पास खड़ी रही. राजनीतिक हितों तथा अन्य वजहों से वहां भी प्रताड़ित हुई.
एमजीआर की पत्नी से विवाद हुआ और लांछन लगाया गया. जबरन निकाल दिया गया. यह सब 1987 की बात. पार्टी दो फाड़ हुई और 1989 में वापिस एक हुई. राज्य की पहली महिला प्रतिपक्ष नेता चुनी गयी. अब पहली पंक्ति की घटना याद कर लीजिये.
करुणानिधि मुख्यमंत्री थे. वित्त मंत्रालय भी उनके ही पास. बजट पढ़ा जा रहा था. जयललिता ने करुणानिधि के भाषण में व्यवधान डालते हुए कुत्रावलि मने अपराधी कहा, जवाब में करुणानिधि ने माइक बंद करके गंदी गाली दे दी. दोनों के समर्थक विधायक लड़ पड़े.
इसी बीच जब कुछ लोग जयललिता को बचाकर बाहर ले जा रहे थे, डीएमके नेता दुरई मुरुगन ने साड़ी का पल्लू खींच दिया. बाद का इतिहास है. इतिहास नारी के रणचंडी बन जाने का.
आठ महीने बाद लोकसभा चुनाव हुआ. जयललिता ने कांग्रेस से गठबंधन किया और यह गठबंधन 39 में से 38 सीट जीत ले गयी. इसी तरह 1991 चुनाव में डीएमके को महज दो सीटें मिली. करुणानिधि अपनी सीट महज 890 वोट से जीत पाये और वह भी शर्म की वजह से इस्तीफा दे मारे.
जेल से आने के बाद जयललिता जब छठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रही थी, हमें बायो बनाने की जिम्मेदारी दी गयी. तभी यह पढ़े थे और तब सच में बहुत सम्मान बढ़ गया था उनका. अद्भुत जीवटता. असल नारी शक्ति. तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों को धता बताते हुए आज जो हैं वह, सब देख ही रहे हैं.
कल तक जब जयललिता के निधन की खबरें रह-रह कर उठ रही थीं और फिर खबरें आ रही थीं कि फलां जगह लोग उत्तेजित हो गये, कि अस्पताल पर लोगों ने पथराव कर दिया. टीवी पर दिख रहे होंगे लोग मातम मनाते हुए. छाती माथा पीटते लोग.
हम सोच रहे हैं, सभी सोच रहे हैं कि यह एक नेता के प्रति जनता की कैसी दीवानगी? यह संभव हो सकता है क्या? हमने तो नेताओं को भाड़े की भीड़ जुटाते देखा है और यह है कि समर्थक जान देने पर उतारू.
जब जेल गयी थीं तब भी कई लोगों ने आत्महत्या कर ली थी. कह सकते हैं कि राजनीतिक हित के लिए छुटभैये नेताओं ने बहका कर यह सब कराया होगा, पर यह सच है क्या वाकई? हमें इसपर पूरा यकीन नहीं. हो सकता है कि कुछ ऐसे मामले होते होंगे, पर सभी बहकाये हुए हैं यह सच नहीं लगता. फिर क्या कारण? देखते हैं.
मातम मनाते, रोते बिलखते जो दिख रहे हैं, थोड़ा गौर करियेगा. बेहद गरीब लोग हैं ये, एकदम हाशिये के लोग. अब अम्मा कैंटीन की बात जानिये. जयललिता ने शुरू किया था यह महत्वाकांक्षी और जन कल्याणकारी योजना. इसके तहत शहरों में सस्ते कैंटीन खोले गये.
कीमत देखिये. एक रुपये में इडली. पाँच रुपये में सांभर-चावल. तीन रुपये में दही-चावल. इस तरह की कई और भी योजनाएँ. अविश्वसनीय सच है यह. कौन खाता होगा यह खाना? किसे मिली होगी मदद? निश्चित उन्हें ही सबसे ज्यादा, जो आज बिलखते और छाती पीटते दिख रहे हैं. बिलखें भी क्यों न और छाती क्यों न पीटें?
उनकी अम्मा मरी है, हर गरीब पेट को खाना सुनिश्चित करने वाली अम्मा. माँ मरने का दर्द तो महसूस कर ही सकते हैं? तो महसूस करिये, दो कौड़ी के सस्ते जोक लिखने की बेहूदगी भी मालूमात हो जाएँगी.
– सुभाष सिंह सुमन