नहीं भूल सकते हो चार गुजरती रातें ,
सदियों की कुर्बानी को कैसे भूल जाएंगे ।
प्रताप शिवा गोविन्द बसे जब रगों में हैं,
क्रूरता की कहानी को कैसे भूल जाएंगे ।।
माँ का जख्मी सीना और गिद्ध नोचते थे लाश ,
आजादी की हैवानी को कैसे भूल जाएंगे ।
आततायी बाबर है याद तुम्हें दिन रात,
श्रीराम की निशानी को कैसे भूल जायेंगे ।।
एक छह दिसंबर याद तुम्हें बार बार,
छह सौ दिसंबर हम कैसे बिसार दें।
आग की जलती ज्वाला वो जीवित चिताएं थीं ,
नारियों का जौहर हम कैसे बिसार दें ।।
लाखों जान खोयी और जजिया भी भरा रोज ,
पैशाचिक कहर हम कैसे बिसार दें।
नौ मन जनेवू जलाया रोज औरंगजेब,
कलमे का जहर हम कैसे बिसार दें।।
कण कण बसे राम रग रग बसे राम,
जन्म भूमि पीठ है सनातन प्रतिमान की |
मिलने पर नाम ले जो होता अभिवादन है,
श्री राम हैं भावना सनातन दिनमान की ||
आप कह देते हैं कि ढांचा मात्रा एक था वो,
वही तो निशानी थी जी चोटिल स्वाभिमान की |
होगा विजय दिवस भी कल इतिहास में,
शपथ प्रभु राम के सारंग धनु बाण की ||