हम आमतौर पर ये मान के चलते हैं कि ज्यादातर भारतीय लोगों ने भारत नहीं देखा. इसका एक कारण तो ये होता है कि भारत इतना बड़ा है कि एक जीवनकाल में शायद ही आप इसे अच्छे से देख पायें.
24 घंटे चलने वाले समाचार चैनलों के युग में भी उत्तर भारतीय ने दक्षिण भारत टीवी पर भी देखा हो इसकी संभावना कम ही रहती है.
जैसा कि एक कुख्यात एजेंट और तथाकथित पत्तरकार “सर दे साईं” स्वीकारते भी हैं, दिल्ली से ज्यादा दूर की जगहों पर उनके दरबारी कैमरे पहुँच नहीं पाते.
जयललिता की तबियत को लेकर कैमरे अभी चेन्नई में हैं, किस्मत से कभी अगर कभी उन्होंने शहर में कैमरा घुमाया तो आपको ना चाहते हुए भी “अम्मा उनावागम” (Amma Canteen) दिख जायेगा.
ये कैंटीन सबके लिए होता है, इसमें इडली एक रुपये की और दही-चावल (कर्ड राइस) तीन रुपये का मिलता है.
अगर आप गुजरात के विकास की कहानियां जी भर के सुन चुके हैं तो आपको बता दें कि तमिलनाडु विकास के अर्थशास्त्रीय सूचकांकों में ही नहीं सामाजिक सूचकांकों में भी उस से ऊपर निकलेगा.
जिस ‘गरीबी हटाओ’ का कांग्रेस सिर्फ नारा देती रही है उसमें जयललिता का काम बोलता है.
उन के शासन काल में गरीबी तेजी से नीचे आई है, उसके अलावा जो मुफ्त में चीज़ें बांटी जाती है उसे देखकर तो वामी जबान को भी लकवा मार जाए.
जयललिता को नारे भी नहीं देने पड़ते उन्हें लोग खुद ही अम्मा और पुरत्चि तलइवी बुलाते हैं.
कई साल पहले (25 मार्च 1989 को) उनका इतिहास शुरू हुआ था. तमिलनाडु की विधानसभा में बजट पढ़ा जा रहा था. उस समय के मुख्यमंत्री करुणानिधि ही वित्तमंत्री भी थे.
जयललिता ने भाषण के बीच में ही करुणानिधि को “कुत्रावलि” (अपराधी) कह दिया. जवाब में करुणानिधि ने माइक बंद की और कुछ भद्दी गालियाँ जयललिता को दे डाली.
सत्ता और विपक्ष, दोनों के विधायक इस गाली गलौच पर लड़ पड़े. महिलाओं को उस मारा मारी से निकालने का प्रयास दोनों पक्ष कर रहे होंगे.
इतने में डीएमके नेता दुरई मुरुगन ने जयललिता का साड़ी का पल्लू खींच दिया. ये “ज्योति बनी ज्वाला” सिर्फ रेखा की फिल्मों में नहीं होता. द्रौपदी की शपथ भी सिर्फ महाभारत की कहानी नहीं है.
एम.जी.आर. के निधन के बाद पार्टी दो भाग में बंट गई थी और 1989 में ही दोबारा एक हुई थी इसलिए भी करुणानिधि जीत और सत्ता के मद में चूर थे.
विधानसभा से बाहर जो जयललिता आई थी वो बिखरे बालों में, फटे कपड़ों में, गुस्से से काँप रही थी और उसने कहा था कि या तो सदन तमीज़ सीख जाए या वो खुद मुख्यमंत्री हों, तभी इस सदन में वापिस आएँगी.
उन्होंने वादा तोड़ा भी नहीं था. आठ ही महीने बाद जब राज्य के चुनावों के नतीजे आये तो अख़बारों ने इसे द्रौपदी का बदला ही लिखा था.
कांग्रेस से गठबंधन कर के जयललिता ने जब चुनाव जीते तो करुणानिधि की पार्टी को दो सीटें मिली थी. खुद हज़ार वोट से भी कम से जीते करुणानिधि कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं बचे थे.
गरीबी घटाने के मामले में भी तमिलनाडु का रिकॉर्ड भी बहुत तेज है. 2004-05 में जहाँ 28.9% परिवार यहाँ गरीबी रेखा के नीचे थे वहीँ 2011-12 में ये हिसाब घट कर 11.3% पर आ चुका था. राष्ट्रीय औसत यानि 21.9% से ये काफी नीचे है.
सामाजिक सूचकांकों जैसे साक्षरता, पढ़ाई या स्वास्थ में भी तमिलनाडु राष्ट्रीय स्तर पर अन्य राज्यों से आगे दिखता है.
अपनी 2013 में आई किताब An Uncertain Glory: India and Its Contradictions में अमर्त्य सेन और जीन द्रेज़े भी तमिलनाडु के पब्लिक सर्विस की तारीफ करते हैं.
पूरे देश में जहाँ सार्वजनिक वितरण प्रणाली में से 40 से 50% सामान असली जरूरतमंद तक पहुँचता ही नहीं है, वहीँ तमिलनाडु में ये लीक सिर्फ 6% पर है.
वापिस अगर अम्मा कैंटीन की बात करें तो भी सर्वे बताते हैं कि उसमें खाने वाले करीब पचास प्रतिशत लोग ही 5-10 हज़ार की आय वर्ग के हैं.
बाकी लोग इसमें आने वाले उतने गरीब भी नहीं हैं. सिर्फ चेन्नई में चलने वाले अम्मा कैंटीनों से सरकार पर हर रोज़ पांच लाख का अतिरिक्त बोझ पड़ता है.
हो सकता है आप तमिलनाडु नहीं गए हों. आपने चेन्नई टीवी पर भी नहीं देखा होगा. लेकिन जब आप अगली बार आश्चर्य करें कि लोग ऐसे व्याकुल क्यों हो रहे हैं जयललिता के बीमार होने पर तो दोबारा सोचियेगा.
ये वो औरत है जिसने छाती पर लात रख के औरतों से तमीज से पेश आना दर्ज़नों नेताओं को सिखाया है. ये वो औरत है जो हर रोज़ हज़ारों के खाने का इंतजाम करती है.
बाकी भारतीय माताओं की परंपरागत व्याख्याएं भी आपने सुनी हैं, और आस पास कई मांओं को देखा भी है.
उसे मिलते सम्मान पर अचंभित मत होइए, वो अम्मा इसलिए है क्योंकि वो भारतीय माताओं जैसा ही बर्ताव करती है. उसे साड़ी-गहनों का शौक भी है, वो खाने का इंतजाम भी करती है और हां, वो पीट भी सकती है.
hats off to lalita mam , great lady with king heart.