ये सत्य घटना मने किस्सा उन दिनों का है जब हमारा अखाड़ा लुधियाना से पटियाला अभी नया नया शिफ्ट हुआ था.
व्यवस्था बन रही थी. अखाड़े में रसोइया नहीं था. पहलवान लोग ही रोटी बनाते थे. सबकी बारी आती थी रोटी बेलने सेकने की .
सो एक दिन दीपक पहलवान को मेरे सामने प्रस्तुत किया गया, उसके द्वारा बेली सेकी गयी रोटियों के साथ.
“य्य्ये देख ल्यो जी…. थारे चेल्ले ने रोट्टी पोई है. इनने तो कुत्ता बी कोन्नी खावे जी…..”
मैंने बड़ी बारीकी से रोटियों का निरीक्षण परीक्षण किया…. वाकई कुत्ता भी मुंह न मारे ऐसी रोटी बनायी थी पट्ठे ने.
मैंने पूछा, “पक पहलवान जी….. क्या माजरा है? रोजाना आप ऐसी ही रोटी खाते हैं?”
“मन्ने रोट्टी पोणी ना आती जी….”
“ओह हो हो…. म्हारे छोरे ने रोटी पोणी न आती भाई…. अरे पहल्यां क्यूं ना बतायी यु बात…. ईब सिखा दें हैं छोरे ने…. कती दो मिनट में…. रोट्टी पोणी…. जूत ल्याओ रे….”
अखाड़ों में फटे पुराने जूतों की कोई कमी नही होती…. एक लड़का पलक झपकते फटा जूता ले आया.
मैं गरजा, “पकड़ ल्यो….”
दो लड़कों ने लपक के दीपक पहलवान के दोनों हाथ पकड़ लिए…. एक दम पुलिसिया अंदाज़ में…. और मैंने दीपक पहलवान की तशरीफ़ पे ज़्यादा नही यही कोई 10 जूता दिया जो हचक के…. “अब आई रोटी पोणी??????”
” गयी जी…. बिलकुल आ गयी….”
तब तक एक बड़ा पहलवान बोला…. “हीं coach साब…. ईब्बे थोड़ी कसर रेह री सै….. 4 जूत और बिठाओ….”
उसके बाद दीपक पहलवान ने जो फुर्ती दिखाई…. और आटा गूंध के जो रोटियाँ बनायी…. ऐसी कि उन्हें देख के नयी बहू भी शर्मा जाए.
तो भैया ऐसा है कि इस फटे हुए जूते और डंडे में इतने गुण है कि ये किसी भी मनुष्य या पशु को कोई भी गुण या विद्या सिखा सकता है और कोई भी दुर्गुण छुडा सकता है.
इसलिए हे मोदी जी….
शहर कस्बों के जो दुकान दार और व्यापारिक प्रतिष्ठान ये कह रहे हैं कि उन्हें mobile banking नहीं आती…. उनको इसी विधि से सिर्फ दो मिनट में सिखाई जा सकती है.