पुराने ज़माने के लोगों से पता करेंगे तो वो पिछली सेंचुरी में भारत में टीवी के फैलने की कहानी भी सुनायेंगे. उस दौर में आज जैसा हर घर में टीवी का सेट टॉप बॉक्स नहीं होता था.
कर्शियाँग (दार्जलिंग से थोड़ा सा नीचे) के टीवी स्टेशन से ब्रॉडकास्ट होता था और अक्सर जब घर के लोग टीवी देखने बैठते थे तो एक सदस्य का समय एंटीना घुमाते ही बीतता था.
आज के वयोवृद्ध, प्रचलित, सिने अभिनेता, शाहरुख़ खान भी उस दौर के टीवी सीरियलों से ही आये हैं. बुजुर्ग शाहरुख़ अपनी जवानी के दौर में ‘फौज़ी’ नाम के एक टीवी सीरीज में आये थे. सैनिकों को दिखाने वाले ऐसे टीवी सीरीज़ अब कम बनते हैं. उसी ज़माने का एक प्रेरक सीरियल था ‘आरोहण’.
ये नेवल अकादमी पर बनी सिरीज़ थी जिसमें पल्लवी जोशी आती थी (हमें दूसरी वाली शेफाली छाया ज्यादा पसंद थी). अब वैसे प्रेरक सीरियल शायद बनते नहीं. लेकिन मेरा यकीन है आरोहण देख कर कई लोगों ने नेवल अकादमी जाने का मन जरूर बनाया होगा.
विज्ञान के विषयों, गणित जैसी चीज़ें पढ़नी पड़ती हैं वहां जाने के लिए. वर्दी उजली होती है, कॉम्बैट गियर हो तो भी. सेल्यूट करते टाइम हथेली नहीं दिखाई जाती नेवी में, ऐसी बातें आरोहण देख के ही मालूम पड़ी थी.
कहते हैं हथेली गन्दी ना दिखे इसलिए सेल्यूट करते वक्त हथेली नहीं दिखाते. ये मुझे कभी विश्वसनीय नहीं लगा. मेरे ख़याल से सेल्यूट करने के लिए टोपी पहने होना जरूरी होता है. पुराने ज़माने में सीनियर के सामने टोपी सर पे है या नहीं ये जांचने के लिए जो हाथ सर तक ले जाते होंगे कि कहीं एक्शन गिर तो नहीं गई, वही बदल के सेल्यूट बना होगा.
आई.एन.एस. विक्रांत का नाम भी इसी से पता चला था. जरा सोचिये एक ऐसा तैरता हुआ छोटा सा शहर जिसमें हज़ारों लोग काम करते हों जिसके ऊपर से लड़ाकू विमान उड़ान भरते हों, और उस विशालकाय vessel को निरन्तर ऊर्जा की ज़रूरत हो.
अब तो परमाणु ऊर्जा युद्धपोत और पनडुब्बियों की जरूरत बन चुकी है. क्या आप जानते हैं कि विमान वाहक युद्धपोत दुनिया की कुछ सबसे जटिल मशीनों में से एक है? यहां भौतिकी और गणित की अच्छी जानकारी के बिना कुछ भी सम्भव नहीं.
पानी पे चल नहीं सकते, उन्नत तकनीक की सहायता से ही समंदर को जीता जा सकता है. इस वजह से भी विज्ञान और सैन्य बलों का पुराना सम्बन्ध है. अमरीका की US Naval Observatory में उन्नीसवीं सदी में Astronomical Unit की खोज हुई. Michelson-Morley ने प्रकाश की गति बताई.
जब ये पता चला था कि 4 दिसंबर को भारतीय नौसेना दिवस (Indian Navy day) मनाया जाता है तो ये नहीं पता था कि उस से पहले नेवी होती थी या नहीं. लेकिन जब थोड़े ही सालों में ये पता चला कि नौसेना तो भारत में सदियों से है तो हम जरा चौंके.
रानी अबक्का नौसैनिक युद्धों में फिरंगियों से जीतती थी, और पुर्तगाली और फ्रेंच जब इसाई धर्म को भारत में डालना चाहते थे तब भी नौसैनिक हमले में सोमनाथ का मंदिर तोड़ा गया था. फिर और पता चला तो मालूम हुआ कि चीनी यात्री ह्युएन सेंग जैसे, भारत आये तो पैदल थे लेकिन जब वो वापिस गए थे तो भारत से चीन समुद्री रास्ते से गए थे.
ऊपर से उनके लौटने का समुद्री जहाज इतना बड़ा था कि उनके साथ उस व्यापारी जहाज पर दो सौ से ज्यादा लोग थे! दो सौ से ज्यादा लोगों को ले जा सकने वाले बड़े जहाजों के निर्माण पर अंग्रेजों ने 1850 के बाद पाबन्दी लगा दी थी. उसी के बाद अंग्रेजों ने विदेश यात्रा पर धर्म भ्रष्ट होने जैसी अफवाहें फैलाई होंगी.
उस से काफी पहले चोल राजाओं की भी नौसेना होती थी, भारत में नौसेना की स्थापना तो चार दिसम्बर को हुई नहीं थी. नौसेना का इतिहास बहुत पुराना है. जहाजघाट या dock तो हड़प्पा की खुदाई में भी मिले थे और चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में भी नौसैनिक बेड़ा था.
डॉक को पत्तन या पट्टन कहते हैं, ये विशाखापत्तनम जैसी कई जगहों के नाम में ही भारत में दिख जायेगा. बाद में कई सदियों तक पुर्तगाली, फ्रांसीसी, होते-होते आज़ादी के पहले तक रॉयल इंडियन नेवी थी. तो फिर चार दिसम्बर को ही नौसेना दिवस क्यों ?
दरसअल हमने 4 दिसंबर 1971 की उस रात को पाकिस्तान के कराची बेस को ध्वस्त कर दिया था. इसे ऑपरेशन ट्रायडेंट कहा जाता है. नौसेना की 1971 युद्ध में अहम भूमिका थी. नायक थे तत्कालीन नौसेनाध्यक्ष एडमिरल सरदारी लाल मथरादास नंदा और (बाद में) वाईस एडमिरल गुलाब मोहन लाल हीरानंदानी. इसके अलावा ‘लोंगेवाला’ की लड़ाई इसी दिन शुरु हुई थी.
ऐसे याद ना भी हो तो सनी देओल वाली ‘बॉर्डर’ की मशहूर लड़ाई याद कर लीजिये. जमीन पर जिस दिन सनी देओल सौ-डेढ़ सौ सिपाहियों के साथ हज़ारों पाकिस्तानियों के दांत खट्टे कर रहे थे उसी दिन “त्रिशूल” के अंग्रेजी नाम वाला ये ऑपरेशन हुआ था.
ट्रायडेंट नाम इसलिए भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि ग्रीक जैसे मिथकों में जो जल के देवता पोस्सिडीओंन थे, उनका हथियार ट्रायडेंट होता है. चार दिसम्बर को 1971 में कराची बेस पर, मिसाइल हमलों से, जल प्रलय जैसी ही स्थिति रही होगी. और इस वक्त 1971 में लोग जीत का जश्न मना रहे होंगे.
आज की भारतीय नौसेना एक बहुआयामी बल है. बेहद तेज़ MARCOS हमारे विशेष कमांडो बल हैं. ज़मीन, आसमान, और समंदर हर जगह काम कर सकते हैं.
पारंपरिक युद्ध के अलावा निगरानी, स्पेशल इकॉनोमिक जोन्स और तटीय सुरक्षा, अंतराष्ट्रीय दोस्ताना सम्बन्ध स्थापित करने से ले कर आज हम Blue Water Navy बनने की ओर अग्रसर हैं. किसी देश की नौसेना की शक्ति का आंकलन करने के लिये अंतराष्ट्रीय शब्दावली में Brown Water Navy और Green Water Navy की संज्ञा दी जाती है जिसका मतलब होता है की उस देश की नौसेना तट से लगभग 300-400 किमी तक प्रभाव रखती है.
Blue Water Navy का अर्थ है गहरे समंदर तक प्रभावशाली नौसेना. जैसे शीत युद्ध के समय रुसी पनडुब्बियां महीनों प्रशांत महासागर और अटलांटिक में छुप कर अमरीका को डराये रहती थीं. उसपर भी कई फ़िल्में बनी है, भारत में सेना पर फ़िल्में आमतौर पर सिर्फ थल सेना पर ही बनती हैं, वो भी युद्ध के एक्शन सीन ज्यादा दिखाते हैं.
बाकी बच्चों को कम से कम एक अच्छे करियर आप्शन के बारे में बताइये, सीखना हो तो भारतीय नौसेना के बारे में और जानकारी आप Bharat Rakshak और नौसेना की वेबसाइट पर पढ़िये. Indian Defense Review पढ़ा कीजिए. सीखने-सिखाने को काफी कुछ हमेशा बाकी ही रहता है.
लेखक – यशार्क पाण्डेय आनंद कुमार