परसों कटिहार जिले में एक ऐसी शादी हुई जो 1100 रुपये में सम्पन्न हुई. बारातियों को चाय-समोसे पिला-खिलाकर विदाई की गयी.
बहरहाल.. नोट (बदली) के इस कठिन दौर में भी सामाजिक रिवाजों को त्यागकर कुछ परिवारों द्वारा बहुत नेक उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैं.
उपहार जरूर दीजिये, लेकिन बिन बोझ और दबाव के!
हम मानव हैं.. कौन कहता है कि हमसे कभी त्रुटियां ही न हुई हो? त्रुटियां अक्सर होती रहती हैं लेकिन हम उन्हें सुधारने के प्रयास में लगे रहते हैं. भूल और सुधार मानव के अंतिम नींद तक की कहानी है.
सच में, जब कपड़े ना हो ना… तो कभी-कभी आईना ही लिबास बन जाता है.
– कुंदन कामराज