आश्रम में बैठ मलाई खाके मस्त रहे बाबा या करे राष्ट्र की चिंता और निर्माण

मेरे एक अभिन्न मित्र पंजाब के एक सर्वव्यापक सर्वशक्तिमान बाबा जी के अनन्य भक्त हैं. उनके जैसे करोड़ों भक्त और भी हैं.

बाबा के डेरे की उपस्थिति पंजाब, हरियाणा, हिमाचल इत्यादि राज्यों के छोटे-छोटे गाँवों तक है और उनके डेरे राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे बेहद महँगी संपत्ति के रूप में दिख जाते हैं.

बाबा के भक्त सबसे ज़्यादा प्रभावित इस बात से रहते हैं कि डेरा मुख्यालय में जब लाखों लोग जुटते हैं तो गज़ब का अनुशासन होता है…. लाखों लोग ऐसे बैठते हैं, ऐसे खाना खाते हैं, कोई अफरा तफरी नहीं होती.

मैं अपने मित्र से हमेशा एक ही सवाल करता हूँ…. वो सब छोडो…. राष्ट्र निर्माण में बाबा का क्या योगदान है ये बताओ….

अरबों नहीं बल्कि खरबों रूपए के साम्राज्य पर काबिज़ बाबा और डेरे के समर्थक, उपलब्धि के नाम पर सिर्फ 3 अस्पताल गिनाते हैं, जिनमे 25 किलोमीटर से दूर के किसी मरीज का इलाज वो नहीं करते.

बाबाओं का बिज़नस है धर्म और आध्यात्म की मार्केटिंग. सभी बाबा भरसक राजनैतिक रूप से निरपेक्ष बोले तो neutral रहने की कोशिश करते हैं.

वो इसलिए कि कांग्रेसी, सपा, बसपा, भाजपा, कम्युनिस्ट, आपिए, सभी उनके भक्त रहे. देश-राज्य में कोई भी सरकार बने उनको कोई मतलब नहीं. उनका धंधा चलना चाहिए.

करोड़ों भक्त है इन बाबा जी लोगों के, पर इन लोगों का स्वयं की चरण वन्दना कराने के अलावा अन्य कोई एजेंडा नहीं है.

करोड़ों लोग भक्त हैं जो बाबा पर जान छिड़कते हैं पर बाबा उन्हें कभी राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरित करते नहीं दीखते.

कितने बाबाओं ने स्वच्छ भारत में अपने चेलों को झोंका? दहेज़ के खिलाफ कितने बाबाओं के चेले खड़े हुए?

कितने बाबाओं ने अपने चेलों से कहा कि मेरे पास मत आओ, बल्कि अपने गाँव, कसबे, शहर में ही अपने आस पड़ोस के बच्चों को फ्री में ट्यूशन पढाओं?

कितने बाबाओं ने अपने करोड़पति चेलों से कहा कि एक गाँव को गोद ले लो?

ज़्यादातर बाबाओं का एक ही सूत्र है…. कोउ नृप होय हमें का हानि. हमारा धंधा चलता रहे, चढ़ावा चढ़ता रहे, भक्त आयें, राम राम करें, चरणामृत लें और वापस जा के अपने पाप कर्मो में लीन हो जाएँ.

उन्हें राष्ट्र निर्माण जैसे बेवकूफाना चक्करों में उलझा के परेशान नहीं करना है. उनसे गाँव कसबे की साफ़ सफाई में झाडू नहीं लगवानी है.

इसके विपरीत बाबा रामदेव ने सभी सेक्युलर दलों की नाराज़गी मोल ले के मोदी और भाजपा को 2014 जिताने में जी जान लगा दी.

बाबा राष्ट्र भक्ति में Pepsi, Coke, Unilever और Nestle जैसे दैत्यों से भिड़ गया. बाबा पूरे देश को स्वस्थ भारत बनाने के महा अभियान में योग के रूप में घर घर घुस गया.

पतंजलि से बाबा जो पैसा कमाता है, उस पैसे से बाबा देश के हज़ारों मृतप्राय आर्य वैदिक गुरुकुलों के पुनर्जीवन में लगा है.

बाबा 500 ऐसे स्कूल बनाने के महा अभियान में लगा है जहां आधुनिक शिक्षा के साथ वेद, उपनिषद, गीता भी पढ़ाया जाए…..

बाबा भारत सरकार से वैदिक शिक्षा बोर्ड मांग रहा है.

बाबा उत्तराखंड में लाखों महिलाओं द्वारा जंगलों से लायी गयी जड़ी बूटियाँ खरीद के उन्हें रोज़गार देता है.

बाबा देश के हर राज्य में विशालकाय फ़ूड पार्क बना रहा है .
बाबा Unilever जैसे Giant (दैत्य) को टक्कर देते हुए आज 25000 करोड़ की कम्पनी बन गया और 2 लाख करोड़ के सपने देखता है.

आज बाबा स्वदेशी अभियान का सबसे बड़ा चेहरा है. Giants से लड़ने के लिए Giant बनना पड़ेगा.

सवाल है कि बाबा, कल को यदि सचमुच 2 लाख या 20 लाख करोड़ की कम्पनी बन गया तो ये पैसा कहाँ खर्च करेगा?

अपनी बेटी के दहेज़ में या मेरी आपकी बेटी के कल्याण में…. राष्ट्र की सेवा में, कल्याण में….?

सवाल ये भी है कि बाबा को वाकई देश की इतनी चिंता करनी चाहिए या अन्य बाबाओं की तरह अपने आश्रम में बैठ मलाई खाने में मस्त रहना चाहिए?

बाबा को सिर्फ सन्यासी के भेस में रहना चाहिए कि राजनीतिज्ञ और उद्यमी, समाज सेवक, समाज सुधारक का रूप भी धरना चाहिए?

बाबा पिछले दिनों जब यूपी और बिहार में थे तो एक उद्यमी उद्योगपति के अवतार में थे.

किसी उद्योगपति से पूछ के देखिये कि survive करने के लिए सरकार और सत्ता को किस तरह साधना पड़ता है…. किस-किस तरह साधना पड़ता है?

कडवा सत्य ये है कि आज लालू, मुलायम और ममता जैसे लोग देश के बहुत बड़े हिस्से की सत्ता पर काबिज़ हैं.

और ये इस देश का दुर्भाग्य ही है कि आज तक हमारे उद्यमी उद्योगपति को सत्ता को खुश रखना पड़ता है. उद्यमी बाबा यूपी, बिहार की सत्ता को साध रहा था मंच से.

25000 करोड़ के उद्यम को Unilever जैसा 2 लाख करोड़ का Giant मने दैत्य बनाना इतना भी आसान नहीं…. बहुत बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए छोटे-मोटे समझौते करने ही पड़ते हैं.

आस्था इतनी जल्दी मत डिगाइये…..

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