एक दौर में केवल प्रिंट मीडिया होता था, लेकिन पत्रकारों को लोग कितना सम्मान देते थे! कितनी इज्जत से देखते थे!
आज 24 घंटे का इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ चैनल है, लेकिन पत्रकारों की इज्जत दौ कौड़ी की भी नहीं है. और यह सब ‘एजेंडा जर्नलिज्म’ चलाते रहने के कारण हुआ है.
2003-2004 में तहलका के उदय के बाद से आज तक की पत्रकारिता दलाली का धंधा बन गई है.
पिछले 10 साल में यूपीए सरकार में जितने भी घोटाले हुए, कोई न कोई बड़ा मीडिया हाउस और पत्रकार उसमें पार्टनर के रूप में लाभान्वित हुआ है, जिसके कारण आज पत्रकार व पत्रकारिता लोगों की नजर से गिर चुका है, दोयम दर्जे का काम होकर रह गया है.
मैंने अपनी पहली और दूसरी दोनों ही पुस्तकों में पत्रकारिता के काले चेहरे से पर्दा उठाने का प्रयास किया है.
12 साल तक पत्रकारिता की है, इसलिए इसके विघटन का दर्द सालता रहता है और यही कारण है कि मेरा हमला पत्रकार व पत्रकारिता पर ज्यादा रहता है.
दो वर्ष पूर्व, दिसंबर 2014 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया पर जबरदस्त प्रहार किया और वाजिब प्रहार किया था.
प्रधानमंत्री ने ‘आप की अदालत’ कार्यक्रम के 21 साल होने के अवसर पर कहा, ”सवाल पूछते समय पत्रकारों का पूर्व निर्धारित एजेंडा होता है. इंटरव्यू लेने वाला साक्षात्कार देने वाले से वही जवाब कहलवाता है जो वह चाहता है. साक्षात्कारों में, यह हमारा अनुभव है.”
उन्होंने कहा, “हमें हर चौराहे और हर जगह जवाब देना पड़ता है. अधिकतर साक्षात्कारों में, सवाल पूछने वाला व्यक्ति पहले से ही जवाब तय कर चुका होता है. वह आपको तब तक नहीं छोड़ता, जब तक आप उसका मनमाफिक जवाब नहीं दे देते. एक बार आप उसे जवाब दे देते हैं तो आपसे उसकी दिलचस्पी खत्म हो जाती है.”
मोदीजी ने सही कहा है, मैंने अखबारों में एक संवाददाता की हैसियत से नौकरी के दौरान देखा है कि संपादक लाइन पहले तय कर लेता है और उसी अनुरूप प्रश्न पूछे जाते हैं.
और ताज्जुब देखिए कि संपादक उत्तर भी पहले ही तय कर लेता है, बस सामने वाले के मुंह में ऊंगली डालकर, घुमा-फिरा कर वही बात कहवाने की कोशिश की जाती है!
‘मीडिया ने बयान को तोडमरोड कर पेश किया’ वाला जो बयान देखते हो, उसमें बहुत हद तक सच्चाई है.
मुझे याद है ‘दैनिक जागरण’ में कांग्रेसी सांसद सज्जन कुमार के खिलाफ मैंने एक खबर लिखी थी, खबर रोकी गई-मुझे जलील किया गया.
उत्तम नगर के कांग्रेसी विधायक के लैंड घोटाले की खबर लिखने पर, खबर तो रुकी ही, सहायक संपादक ने कार्यालय में पहुंचकर मुझे बेइज्जत किया.
अपराध की खबरों में अपराधी यदि आपके बॉस के जान-पहचान का है तो उसका नाम छिपाने को कहा जाता था- एक बार एक का नाम मैंने छाप दिया, मुझसे माफीनामा लिखवाया गया.
अन्ना-रामदेव आंदोलन के दौरान मेरा अखबार ‘नई दुनिया’ किस तरह से पहले लाइन लेकर न्यूज कवरेज करवाता था…
किस तरह से सोनिया गांधी की रहस्यमयी बीमारी पर सवाल उठाने वाले जूनियरों को बेइज्जत किया जाता था…
किस तरह से मैंने राहुल गांधी के खिलाफ आरटीआई से एक न्यूज लिख दी थी तो मुझे लगातार कई दिनों तक मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया था…
किस तरह से 2008 में मुकेश अंबानी के निजी विमान के व्यावसायकि उपयोग में टैक्स चोरी पर खबर लिखने पर न केवल खबर रोकी गई, बल्कि बार-बार मुझे अपमानित किया गया… ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण हैं.
इसलिए कह रहा हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एकदम सही कह रहे हैं, मेरा यह अनुभव है कि आज की पूरी पत्रकारिता वास्तव में ‘एजेंडा जर्नलिज्म’ है.
टीवी स्टूडियो में चकल्लस करने वालों का भी एजेंडा है और उन्हें भी वही सब कहने के लिए पैसे मिलते हैं.
ओशो ने सही कहा था, ”भारत में पत्रकारिता तीसरे दर्जे का और घटिया काम रह गया है.”
मैं अपने अनुभव से कहता हूं, हां यह दलाली का सबसे सफेदपोश धंधा है!
Bitter but true. Very nice article on present journalism.