फिर मत कहना कि बहुत असहिष्णु हो गया है भारत

ब्रिटिश समाज को समझने के लिए सबसे अच्छा मेटाफॉर है यहाँ का ट्रैफिक.

जब नया-नया यहां आया था तो मेरा फ्लैट बिलकुल हाई स्ट्रीट पर था.

मैं अपनी खिड़की से बाहर देखता था और आश्चर्य करता था कि रात के 2 बजे भी, जब कहीं कोई नहीं हो, कैसे गाड़ियाँ सिग्नल लाल होने पर रुक जाती हैं. लगता था, लोग कितने अनुशासित और सुसंस्कृत हैं.

जब ड्राइव करने लगा तो इस अनुशासन का रहस्य समझ में आया.

आप कभी गलती से या ओवरकॉन्फिडेंस में लाल बत्ती को पार कर जाएँ, तो 2 सप्ताह तक जब भी डाकिया आये, दिल धक-धक करता रहता है… अब आया DVLA का प्रेमपत्र…

श्रीमान, आपकी फलां-फलां नम्बर की गाड़ी फलाने चौराहे पर इत्ते बज कर इत्ते मिनट पर लाल बत्ती को 0.14 सेकंड से पार करते देखी गयी है. तो कृपा करके इस नम्बर पर फ़ोन करके या इस लिंक पर क्लिक करके अपने डेबिट या क्रेडिट कार्ड से 150 पाउंड का जुर्माना भर दीजिये, और अपने ड्राइविंग लाइसेंस पर 3 पॉइंट ले जाइए (जिससे आपका इंश्योरेंस प्रीमियम 400 पाउंड सालाना बढ़ जायेगा).

यहाँ कुछ चौराहों पर एक बॉक्स जंक्शन होता है, यानि पीली आड़ी तिरछी लाइनों का एक बक्सा, जिसमे आपकी गाड़ी कभी भी खड़ी नहीं होनी चाहिए.

आपकी गाड़ी उस बॉक्स जंक्शन में 11 सेकंड के लिए खड़ी देखी गयी… 65 पाउंड का चढ़ावा चढ़ाइये.

नो पार्किंग में या डबल येलो लाइन पर गाड़ी छोड़ कर घंटे भर के लिए चले गए… गाड़ी को उठा कर इम्पाउंड वाले ले गए… 250 पाउंड देकर छुडाइये…

ये हैं छोटी-छोटी गलतियाँ, उनमें भी कानून से निजात नहीं… बड़े अपराधों की तो बात ही नहीं हुई.

कानून और व्यवस्था ऐसे लागू कराई जाती है. कोई रियायत नहीं, कोई अपवाद नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने हुक्म दे दिया, सिनेमा हॉलों में राष्ट्र गान बजाया जाये, और हर नागरिक के लिए उसके सम्मान में खड़े होने की बाध्यता हो.

तो इसे लागू करने की बाध्यता भी है. अब यह कानून है, सुप्रीम कोर्ट का आर्डर है तो इसके पालन का दायित्व जनता के विवेक पर नहीं छोड़ा जा सकता.

कानून से शासित समाज मेरे लिए सभ्य समाज की परिभाषा नहीं है. Law necessary evil है.

जनता में अच्छे नागरिक संस्कार पैदा करना, समाज में राष्ट्रीयता की भावना विकसित करना शिक्षा का काम है, सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है.

पर अगर 70 साल में यह नौबत आ गयी है कि सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़े कि बेटा, राष्ट्र गान बज रहा है, खड़े हो जा…

तो फिर इसका मतलब यह भी समझा जाना चाहिए कि जो अब भी ना खड़े हों, उनके पिछवाड़े पर डंडा बजाने की व्यवस्था भी की जायेगी…

फिर मत कहना कि भारत बहुत असहिष्णु हो गया है… क्योंकि एक कानून बनाना, पर फिर उसका पालन नहीं कराना, अराजकता की रेसिपी है.

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