कवियों और शायरों की धरती बलरामपुर ने आज अपना मूल्यवान रत्न खो दिया. पद्मश्री बेकल उत्साही नहीं रहे.
यद्यपि अली सरदार जाफ़री भी बलरामपुर के थे किन्तु वे 50 के दशक में ही बम्बई बस गये. बाद में उन्होंने अपनी जन्मभूमि की कोई खबर नहीं ली.
किन्तु बेकल साहब को अपनी मिट्टी से बहुत लगाव था. दरअसल उन्हें सरदार जाफ़री की तरह बड़े घराने में पैदाइश और उच्चशिक्षा का सौभाग्य नहीं मिला था.
अत्यंत साधारण पृष्ठभूमि से निकल कर उन्होंने अपार यश और ख्याति प्राप्त की.
नगर के साहित्यिक समाज में वे जिजीविषा और महत्वाकांक्षा के प्रतीक समझे जाते थे, लेकिन इस नश्वर संसार में काल से कौन बच सका है भला.
मन बहुत दुखी है. 1984 से उनके संपर्क में आया. वे मेरे लिए पितातुल्य थे. 1990 से 2000 तक उनके साथ देश के अनेक कार्यक्रमों में गया.
बाहर से शहर में आते ही मुझे फोन करते और घर बुलाकर दुनिया भर की बातें करते. उनके साथ की बहुत सारी यादें हैं जिन्हें बाद में विस्तार से लिखूंगा.
इस समय अपने आदरणीय और प्यारे चचा के अचानक चले जाने से बेहद उदास हूँ. अभी पिछले महीने ही उनके साथ बैठकर कई योजनाएं बनी थीं.
अश्रुपूरित नेत्रों और भरे हृदय से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ. आज से यह नगर मेरे लिए सूना हो गया.
कल कई लोगों ने अपुष्ट ख़बरों के आधार पर बेकल जी के निधन की सूचना फेसबुक पर डाल दी. उन सबको मैंने लिखा कि अभी ऐसी ख़बरें न लिखें. अभी बेकल साहब की सांसें चल रही हैं.
पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता था कि चचा ठीक हो जायेंगे. अभी कल रात 12 बजे तक दिल्ली फोन कर बेकल साहेब का हाल मालूम करता रहा.
दिन में एक बार चाची से बात हुई. वे फोन उठाते ही बिलखने लगीं – “भैया गिरि, तोहार चाचा काल्हि गिर परे, तब्बय से आँखि नाही खोलिन है बच्चा, दुआ करउ.”
मैं उनको ढाढस बंधाते हुए खुद ही सुबकने लगा. बेकल साहेब के बेटे फिल्म अभिनेता कुँअर अज़ीज़ से दिन में दो तीन बार बात हुई.
रात में बेकल साहेब के दामाद पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. अफ़रोज़ से बात हुई. सब लोग बहुत चिन्तित थे. उम्र की अधिकता से दवाएं अपना असर नहीं कर पा रहीं थीं.
परसों 1 दिसंबर को रात में बेकल साहब दिल्ली में अपनी बेटी के घर पर बाथरूम में फिसलकर गिर गये.
उन्हें तत्काल रा.म.लोहिया अस्पताल में भर्ती किया गया.आज सुबह लगभग 5 बजे उन्होंने अंतिम सांसें लीं.
