सुबह पांच बजे फ्रेश हो जोगिंग के लिए गयी आते ही फोन ओन किया .. और उसकी कॉल आ गई फोन रिसीव करते ही पहला मन में यही ख्याल आया बेटा इस से तुझे पिछा छुड़ाना है कैसे सोच ले ये सर का दर्द बन चुका है….
ओ हेल्लो किशमिश हेल्लो …..
अरेरेरे बोलो भी क्या तूफ़ान मचा रखा है और किशमिश् क्या है…
तुम और कौन…
मेरा नाम अंगूरी है..
हां तो जवानी में अंगूरी रही होगी न अब तो किशमिश बन चुकी होगी.. बुढ़ापा मेरी जान अंगूर सिकुड़ कर किशमिश हो गया …
ओफ्फो .. ओके और बोलो मुझे रेडी होना है देर हो रही है…जोगिंग से आई हूँ पसीने आये हैं ..रखो फोन…
बुढ़िया तू भाग भी लेती है.. हैरानी वाले भाव में बोला..
हां क्यों?
क्या करेगी बुढ़ापे में मेन्टेन करके खुद को..?
मुझे नहीं पता तुम फोन रखो देर हो रही है..
कहाँ जाना है दादी जान बता तो दो…
और मेरे मुँह से स्कूल निकलते निकलते रह गया और हॉस्पिटल बोल दिया..
ओह क्या हुआ?
कुछ नही किसी से मिलने जाना है..
किस से?
अरे हद्द है तुम कौन होते हो इतने सवाल करने वाले और क्यों बताऊँ, मेरा पीछा क्यों नही छोड़ देते, आखिर चाहते क्या हो..?
तुमसे मिलना…. दादी का आशीर्वाद लेना है कौन से हॉस्पिटल जा रही हो बता दो मिलने आ जाऊँगा..
तुम्हारा दिमाग खराब है क्या?
और तुमने मुझे देखा नहीं, जाना नहीं, पहचानोगे कैसे?
उसकी तुम छोड़ो मेरी किशमिश जिसने मिलाया है वही ढूंढ लेगी..
कौन?
तुम दिमाग न लगाओ बुढ़ापे में दिमाग वैसे भी कम हो जाता है..
पर नहीं मिलना मुझे तुम फोन रखो..
और फोन काट कर स्विच ऑफ़ कर दिया.. तैयार हुई स्कूल गयी एक बजे वापिस आई और आराम करने लगी बच्चों पर चीख चीख गला दुखने लगता है और ऊपर से जिनको हिंदी नही समझ आये और मुझे मराठी अजीब सी सिचवेशन हो जाती है सर दर्द में फट रहा था ..एक डिस्प्रिन ली और सो गयी.
उठी तो शाम के छः बज रहे थे पति जब घर नही होते तो कोई काम नहीं होता न खाना बनाती हूँ न खाती हूँ, कॉफी ले ली, नीबू पानी पी लिया या चाय या मैगी बस…
डोर बैल बजी मेरी दोस्त आई थी. गुरविंदर कौर और उसकी बेटी जिसे घर में सब प्यार से नेहा कहते थे.. उस लड़के को उसी का नाम बताया था बहूरानी का क्योंकि उसी के घर आना जाना था मेरा तो बेटी का नाम मुँह पर चढ़ा हुआ था और वही पुकारा था..
क्या बात है यार कितने फोन किये, इसे ऑन तो रखा कर स्विच, ऑफ़ पड़ा है सुबह से, और उसने मेरा फोन उठाया और स्विच ऑन किया..
मैंने पूछा क्यों क्या हुआ?
हुआ क्या तेरा फोन ऑफ था भाई साहब का फोन था कि उसे मैसेज दे देना कि उनका आना कन्फर्म नहीं है सन्डे को.. तेरा सुबह से ऑफ़ फोन इसलिए घर आई और सोचा देख आऊँ ठीक तो है ना..
मैंने एक शांत सा हम्म किया..
क्या बात है तबीयत ठीक नहीं क्या?
नहीं यार सर दर्द है.
अकेली पड़ी रहती है कहीं आती जाती नहीं, न मेरे पास आती है, हमें ही आना पड़ता है.. सर दर्द तो होगा ही चल चाय बना कर लाती हूँ..
और बेटी को नीचे उतार चाय बनाने चली गयी और मैं बालकनी में बैठी रही..
फोन बजने लगा बजता रहा उठाया नहीं.
वो किचन से गुस्से में आई हाथ में चॉकलेट थी मेरे फ़्रिज में पड़ी रहती थी चॉकलेट पति खाते हैं और नेहा के लिए रखती थी और ये मेरी दोस्त को पता था.. जब मैंने फोन नहीं उठाया तो उसने मुझे गुस्से में देखा और फोन रिसीव कर लिया और उसी वक़्त चॉकलेट के लिए नेहा को आवाज़ लगाई.. नेहा ओ नेहा..
ये कह उसने हेल्लो बोला उधर से नहीं पता क्या सवाल आया होगा पर उसने जवाब दिया कि ये जिनका नम्बर है मैं उनकी दोस्त हूँ. आप थोड़ी देर में फोन करना उसकी तबीयत थोड़ी ठीक नही.. और फोन काट दिया.. मैं उसे देख रही थी वो बिना मुझे कुछ बोले किचन में गयी और चाय छान लाई एक कप मेरा एक उसका और नेहा को टीवी ऑन करके बैठा दिया..
क्या बात है इतनी चुप और ये अंगूरी कौन है..
और मुझे हँसी आ गयी और उसे सारी बात बताई वो तो हँस हँस के लोटपोट हो गयी..
बोलने लगी मुझे विश्वास भी नहीं हो रहा तू मज़ाक भी करती है और किसी को इतना झेल सकती है तुझे चिढ़ है फोन से..
और बन्दे का ह्यूमर भी कमाल का है और तू अभी तक नहीं पट सकी. हद्द हो गयी तेरे खडूस पने की कभी तो जी लिया कर..
चल हट तू ही जी ले सरदार जी सीधे हैं मेरा वाला यहीँ कब्र खोद देगा मेरी.. और वो हँसी बोली – सो तो है.. पर खुद लाइन मारते फिरते हैं..
चल छोड़, पीछा कैसे छुड़ायेगी इस खूबसूरत सी शरारती मुलाक़ात से..
वो ही सोच रही हूँ यार कोई तो रास्ता निकालना ही होगा… ये तो सर दर्द बनता जा रहा है..
सोच ले उनके आने से पहले .. वैसे टाइम अच्छा पास हो रहा है झेल ले दो चार दिन ओर.. काश इतने मज़ाकिया की मिस कॉल मुझे आती.. ओके तेरा ही नम्बर दे देती हूँ…
और वो हँसने लगी..
शाम का खाना बना कर मुझे खिला कर और खुद खाया और सरदार जी का पैक कर के ले गयी..
चल चलती हूँ साथ चलेगी नहीं इसलिए फायदा नहीं कहने का.. पता नहीं तुझे अकेला रहना क्यों पसन्द है… और मैंने भी ह्म्म्म्म कहा बस और वो चली गयी उसे जाते हुए देखती रही..
9 बजते ही फोन बज उठा उसी का था..
कैसी तबीयत है नेहा जी…
नेहा?? बहू तो सो गयी मैं अंगूरी हूँ..
अजी छोड़िये… आपका नाम जान लिया शर्त जीत गया हूँ अब बताओ क्या इनाम मिलेगा जीतने पर..
कैसे जाना मैंने पूछा और मन ही मन हँस रही थी..
आपकी दोस्त ने फोन रिसीव किया था और वो पुकार रही थी आपको नेहा नेहा…
और मैं जोर जोर से हँस पड़ी..
अरे वाह चलो मेरी जीत की ख़ुशी में हँसी तो आप..
और मन ही मन बोली मेरा नाम तो नहीं पता चलेगा पर ये भी अच्छा ही हुआ ..
पर यार अंगूरी ज़ुबान और चढ़ गया क्या सेक्सी नाम है अंगूरी हाय मैं तो यही बोलूंगा ..
ओके बोल लो दो दिन और फिर नहीं बोल पाओगे..
क्यों?
मैं चली जाऊँगी ..
कीधर? अरे यार अब तो सच बोलदो क्यों तड़पा रही हो..
और फिर मैंने कहानी सुना दी जो अभी अभी दिमाग में आई..
मेरा नाम नेहा है मैं यहाँ नही रहती दिल्ली रहती हूँ मेरे कॉलेज हैं मुझे जाना होगा… यहाँ दीदी एडमिट हैं हॉस्पिटल में उनका ऑपरेशन हुआ है और जीजा जी आर्मी में है 15 दिन की कहीं बाहर की ड्यूटी आई है दीदी अकेली थी इसलिए मुझे आना पड़ा.. अब 2 दिन बाद इस नम्बर पर कॉल मत करना ये नम्बर जीजू का है..
यार सच बताओ कब से झूठ बोल रही हो ये भी कहानी है तुम्हारी.. तुम मैरिड हो ये तो समझ गया था रात उस दिन कॉल की उस से..
इसलिए सोचा दोस्ती ही रखूँगा फोन नहीं करूँगा जब तुम्हारा मन करे मिस कॉल कर देना मुझे मैं तभी बात कर लूँगा..
और मैं समझ गयी थी खेल वो भी खेल रहा है सच जानने के लिए..
पर मैं भी अंगूरी थी और रहूंगी …
नही सच कह रही हूँ जीजा जी बाहर हैं तभी उन्हें उस रात कहा कब आओगे घर खाने को दौड़ता है क्योंकि दीदी हॉस्पिटल में है इसलिये कल तुम्हे कहा था कि हॉस्पिटल जाना है किसी से मिलने..
ओह हाँ… बेचारे का मायूस सा हाँ निकला..
कोई न अंगूरी यार एक बार मिल तो लो तुम्हे देखना है, दीदी कौन से हॉस्पिटल में हैं, मिलने आ जाऊँगा तुमसे, देख कर चला जाऊँगा तुमहे..
मतलब ये था वो हारने को तैयार नही था..
मैं भी ठहरी हरियाणे की बन्दों के भूत बनाने अच्छे से आते हैं..
ओके ठीक है कल मिलते हैं .. क्योंकि अंदर ही अंदर उसे देखने की चाह मुझ में भी थी..
और अफगान चर्च बुला लिया उधर के बस स्टॉप पर .. उधर इसलिए की आर्मी बेस हॉस्पिटल उधर ही है … उसने हां कह दी.. ठीक है मुझे पहचानोगे कैसे और मैं तुम्हे?
उसने कहा मेरी हाइट 6 फुट से ऊपर है रंग साफ़ …
तो? तो क्या करुँ तुम्हारे जैसी हाइट के रंग के पचास लोग होंगे…
हद्द है मुझे लगा थोड़ी इम्प्रेस हो जाओगी पर वाक़ई खडूस हो…
एक बुढ़िया के साथ डेट है मुझे कुछ उम्मीद करनी ही नहीं चाहिए…. हाँ अब बकवास बन्द करो और बताओ…
ऐसा मेरी दादी अंगूरी डार्लिंग फोन तो है ही हमारे पास और व्हाइट शर्ट और नेवी ब्लू पैंट…
जब उसने ये कपड़े बताये दिमाग खटक गया फिर उस से पूछा हॉस्पिटल कहाँ है पता है तुम्हे?
हां बस स्टॉप से लेफ्ट लेते ही सामने दीखता है….
अब समझ गयी बन्दा बैंक में नहीं काम करता ये या तो आर्मी से है या नेवी से…
क्योंकि ये तकरीबन कपड़े ये लोग पार्टी इंटरव्यू वगैरह में डालते हैं .. शक तो था ही क्योंकि इतना ह्यूमर बैंक सर्विस वाले में हो ही नहीं सकता … फिर शायद उसे भी लगा क्या बोल गया.. बोला अरे तुम हो ना दिखा देना..
मैंने लम्बा सा हम्म किया…
ओके तुम क्या पहनोगी अंगूरी बेबी सॉरी दादी….
पहले तो हँसी और कहा जो गाँवों में पहनती हैं दादियाँ…
फिर बोली छोड़ो, मैं नील रंग का सूट पहन कर आऊँगी और सफेद दुपट्टा जिस पर नीले रंग के डॉट होंगे…..
ओह्हो मेचिंग मेचिंग… और एक गाना की दो लाइन बोली (रंग दे वे सोनया गबरूआ दुपट्टा मेरा तेरी पग वरगा)
चल चल मैंने इसलिए कहा कि यहाँ 4 जोड़ी ही कपड़े लाई हूँ, तो जो है वो ही है. जानबूझ के मेच नहीं हुआ और तुम्हारा नेवी ब्लू है इसलिए ज्यादा खुश होने की जरूरत नही….
उफ़ खडूस…
चलो रखो अब फोन कल 11 बजे बस स्टॉप पर आ जाना.. बाय…
अरे सुनो तो …
क्या है….
तब तो बता दोगी न एंटरटेन किसे कहते हैं…
हद है बोला था न मैं दूसरी फ़ैल हूँ डिक्शनरी देख लेना दिमाग न चाटो…
हाँ सही है देखने के बाद ही पता चलेगा दिमाग है भी क्या चाटने के लिए .. काली मोटी भैंस के पास..
हाँ देख लेना..
तुम तो चिढ़ती भी नहीं भैंस बोला मैं…
नहीं चिढ़ती क्योंकि काली मोटी भैंस ही हूँ देखोगे तब वो गाना सुना है न( टूटेंगे सारे भर्म धीरे धीरे) और मैं हँस दी…
अब भी सोच लो…
सोच लिया अंगूर खट्टा ही सही देखना तो है…
ओके … सोने दो बाय…
खडूस और ये बोल उसने फोन काट दिया….
क्रमशः…
क्रमशः