तेज गड़गड़ाहट के साथ मेघों ने बरसना शुरू कर दिया था तभी अचानक लाइट चली गई और पूरा अस्पताल परिसर अंधेरे में डूब गया. दिनभर की थकीहारी डॉ शोभा की नींद भी लाइट जाते ही खुल गई.
उसने दो मिनट तो जनरेटर चलने का इंतजार किया पर शायद आपरेटर गहरी नींद सो गया होगा ऐसा सोच उसने वार्डरोब से टॉर्च निकाली और जनरेटर रूम की ओर चल दी. जनरल वार्ड से होती हुई वह जब प्राइवेट वार्ड्स के सामने पहुंची तो एक रूम के बाहर से कुछ अप्रत्याशिक आवाज सुन कर ठिठक गई और खिड़की से अंदर देखने का प्रयास किया.
अंदर एक साया प्रसूता के बेड पर झुका हुआ था. डॉ शोभा ने टार्च की रोशनी कमरे में डाली तो देखा कि कोई नवजात शिशु के मुंह पर तकिया रख दबाये जा रहा है वह चीख कर बोली- कौन है अंदर? बच्ची को छोड़ दो और दरवाजा खोलो.
अन्य ड्यूटी नर्स व सारा स्टाफ चीख की आवाज सुन इकठ्ठे हो गया. अंदर वाले साये ने भी घबरा कर दरवाजा खोल दिया. तभी जनरेटर भी चल गया और कमरा रोशनी से नाह उठा. डॉ शोभा ने रोती हुई बच्ची को दौड़ कर उठा लिया और घूम कर साये की ओर देखा. वह कोई और नहीं प्रसूता की सास थी.
अगर मुझे जरा सी भी देर हो जाती तो तुम इस बच्ची की जान ले चुकी होतीं अब मैं पुलिस बुला कर तुझसे बंद करवाती हूं – डॉ ने कहा.
पुलिस मत बुलाओ मैं अपनी बहू की तीसरी बेटी को मारना चाह रही थी पर अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है. लाओ बच्ची को मुझे दे दो मैं इसे प्यार से पालूंगी. पुलिस की धमकी काम कर गई थी.
शोभा ने उसे दुत्कार दिया तुम पीछे हटो तुम जैसी हैवान को तो मैं इसको नहीं देने वाली. बस इतना शुक्र मनाओ कि मैं पुलिस नहीं बुला रही. पर ये तो बतला बच्ची की मां इतनी बेसुध क्यों पड़ी है? इसके साथ तुमने क्या किया?
मैंने इसको दूध में नींद की गोलियां खिला दी हैं उसने सर झुकाये हुये कहा. डॉ ने स्टाफ को प्रसूता के ट्रीटमेंट के लिये इंस्ट्रेक्शन दिया और बच्ची को लिये रूम में आ गई.
सुबह जब बच्ची की मां को होश आया तब रात का सारा वाकया जान फूट फूट कर रोने लगी. वह कह रही थी मैम रात को तो आपने मेरी बेटी की जान बचा ली पर मां जी आगे भी उसको मारने का प्रयास कर सकती हैं उनको बेटे की चाह ने अंधा कर दिया है. मेरी दोनो बच्चियों से वह बहुत बुरी तरह पेश आती हैं इसको तो वह कतई बर्दाश्त नहीं करेंगी.
तुम अपने पति को बतला दो सब कुछ शायद वह कुछ करे.
ना मैम वह तो और खूंखार है. उसने पहले ही कह दिया था कि अगर बेटी पैदा करी तो उसको किसी नदी नाले में फेक कर ही मेरे घर घुसना.
अब उस बच्ची और मां की विशेष निगरानी करी जाने लगी. उसकी सास उसी रात उसे छोड़ चली गई थी. तीसरे दिन डिस्चार्ज वाले दिन उसका बिल व डिस्चार्ज स्लिप तैयार थी पर ना उसका पति आया ना सास.
तीन दिन ऐसे ही बीत गये. उस दिन उसने डॉ शोभा का हाथ पकड़ कर कहा मैम आप इस बच्ची को ले लो किसी नि:संतान दंपति को दे देना ताकि यह जीवित रह पढ़ लिख जाये. इसे ले कर घर गई तो फिर कोई अनर्थ हो सकता है.
एक माह हो गया उस प्रसूता को गये. अब वह नन्ही सी बच्ची सारे अस्पताल की जान है. शोभा व नर्सेस उसका पूरा ध्यान रखती हैं. कब दूध पिलानाहै, कब नहलाना है, कब कपड़े बदलने हैं, कब उसको सुलाना है.
तीन महीने की हो गई वह फूल सी बच्ची. अब जैसे ही डॉ शोभा को देखती है दोनो हाथ उठा गोद में आने को मचल जाती है और शोभा भी अपनी सारी व्यस्तता भूल उसको सीने से लगा लेती है.
आज उसके माता पिता को बुलाया गया और उसको गोद लेने की सारी कानूनी औपचारिकतायें पूरी कर ली गईं. अब पिता का नाम- डॉ विवेक सक्सेना पेडियाट्रिशियन, मां का नाम- डॉ शोभा सक्सेना गाइनकोलाजिस्ट और बच्ची को नाम मिला- पीहू जो अब अठारह माह की हो चुकी है.
डॉ शोभा मेरे छोटे भाई की पत्नी है व डॉ विवेक मेरा छोटा भाई. तस्वीर में डॉ शोभा वही है जो मेरी पत्नी के कांधे पर सर रखे है. दूसरी तस्वीर में भाई डा. विवेक है और तीसरी तस्वीर में प्यारी पीहू है.
आज जब डाक्टर्स के प्रति तमाम नकारात्मक विचारों का फैलाव हो रहा है तो मेरा यह एक छोटा सा प्रयास है कि डाक्टर्स की उन सकारात्मकताओं को सामने लाया जाये जो आसानी से किसी को नजर नहीं आ पातीं.