जन गण मन गान पर हमेशा से ये विवाद रहा है कि इसे गुरुदेव टैगोर ने किंग जॉर्ज पंचम की स्तुति में लिखा था.
बहुत से लोग इस आधार पर जन गण मन का विरोध भी करते आए हैं. लेकिन सच्चाई क्या है?
गुरुदेव टैगोर कवि एवं साहित्यकार ही नहीं एक प्रखर राष्ट्रवादी, देशभक्त, स्वतन्त्रता सेनानी, शिक्षाविद थे.
उन्होने अंग्रेजों द्वारा बंगाल भंग किए जाने के खिलाफ हुए आंदोलन में सक्रिय भाग लिया, बल्कि सुभाष बोस के राजनैतिक गुरु भी रहे.
महात्मा गांधी, नेहरू, बोस समय समय पर उनसे राय लेते थे. गुरुदेव ने जलियाँ वाला बाग की घटना के बाद अपनी नाइट हुड की उपाधि भी अंग्रेज़ो को लौटा दी थी.
ऐसे प्रखर देशभक्त पर फिर ऐसा इल्जाम लगा कैसे?
ये सच है कि किंग जॉर्ज पंचम 1911 मे भारत आए थे और उनके स्वागत के लिए एक गीत लिखने का गुरुदेव से कुछ रायलिस्ट मित्रों ने अनुरोध किया था.
इस बात ने गुरुदेव को बहुत पीड़ा पहुंचाई और उन्होने जन गण मन लिखा…
जन गण मन किसी मनुष्य की स्तुति नहीं है बल्कि इसमें दर्शन है, भारत का भाग्य जिसके हाथ में है उसकी अजरता अमरता का विवरण है.
हम इस का एक ही स्टैंज़ा पढ़ते हैं. इस गीत के चौथे स्टैंज़ा मे गुरुदेव टैगोर ने तुम स्नेहमयि माता कह कर पुकारा है. जो जार्ज पंचम तो नहीं हो सकते.
ये गीत विवेकानंद जी के दर्शन से भी प्रभावित है. इस गीत का मुख्य आधार ही यही है कि कोई जॉर्ज पंचम भारत का भाग्य विधाता हो ही नहीं सकता.
जब टैगोर ने इसे रचा तो उस समय हुए कांग्रेस के अधिवेशन में इसे गाया गया. लेकिन उसी अधिवेशन मे जॉर्ज पंचम की स्तुति में लिखा एक अन्य गीत भी गाया गया.
और अगले दिन के अखबारो में मिस रिपोर्टिंग हुई. गुरुदेव के गीत को कुछ अखबारों ने जॉर्ज पंचम की स्तुति में गाया गीत करार दिया. यही से इस विवाद ने जन्म लिया.
वंदे मातरम गीत पर देवी पूजा के आरोप के कारण फिर कांग्रेस, गांधी जी ने 40 के दशक में जन गण मन को प्रमुखता देनी शुरू की.
उस समय भी ये गीत लोकप्रिय था, जलसों, आंदोलन, बैठकों मे स्वतन्त्रता सेनानी इस गीत को गाते थे और उनके बीच इस गीत को लेकर कोई भ्रम नहीं था.
कई बार गुरुदेव से पूछा गया था कि आपने कभी इस विवाद को लेकर अपनी सफाई क्यों नहीं दी. इस गलतफहमी को स्पष्ट क्यों नहीं किया.
उन्होने जवाब में कहा कि मैं सिर्फ अपना अपमान करूंगा, यदि इस प्रश्न का उत्तर दूँगा.
(उपरोक्त लेख पिछले साल हिन्दू मे छपे एक आर्टिकल का सार संक्षेप है)
टैगोर congress aur angrejo ka chatukar tha.