जाति वाद ने इतनी गहरी जड़ें जमा ली हैं कि किसी से मिलने पर यदि उसके सरनेम से जाति का पता न चले तो हमारे अंदर उसकी जाति जानने की उत्सुकता जागने लगती है.
ऐसा अनपढ़ या गाँव के लोगों में नहीं शहर के पढ़े-लिखे लोगों में भी है. अंग्रेजों ने अच्छी क्वालिटी के बीज बोए थे जातिवाद के इसलिए उसकी जड़ें इतनी गहरी हो गयी कि अब हमारे डीएनए में ही यह जहर घुस गया है.
अभी तक देश में दो ऐसे लोग थे जिनकी जाति का पता नहीं था, एक तो ट्रांसजेंडर दूसरे अनाथालय के बच्चे. सरकार ने इनमें से एक की जाति ढूंढ ली है, दूसरे की भी ढूंढ ही लेगी.
राजस्थान, तेलंगाना और तमिलनाडु की राज्य सरकारों ने तो पहले ही अनाथों की जाति ढूंढ कर उनको ओबीसी बना दिया था. अब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को भी अनाथ बच्चों की जाति ओबीसी है इसका पता चल गया है. इसलिए उसने एक प्रस्ताव पास कर सरकार से इनको ओबीसी में शामिल करने को कहा है.
सरकार और उसकी व्यवस्था अनाथ बच्चों को पालने की जिम्मेदारी तो उठा लेती है पर उच्च गुणवत्ता की शिक्षा नहीं दिलाते हैं. अपनी नाकामी को छिपाने का अच्छा साधन है आरक्षण की बैसाखी पकड़ा देना.
सरकार और आरक्षण लेने वालों की दृष्टि में आरक्षण उन्नति की गारण्टी है. परंतु वास्तविकता है कि आरक्षण की बैसाखी पैर वाले को भी पंगु बना देती है.
टैलेंटेड भी लापरवाह हो जाता है क्योंकि उसको आरक्षण का सहारा दिखता रहता है. परजीवी पौधों की मजबूत जड़ें किसी ने देखी है क्या?
धीरू भाई अम्बानी को आरक्षण मिला होता तो किसी विभाग में नौकरी करते फिर प्रमोशन में भी आरक्षण पा कर उसके उच्च पद पर भी पहुँच जाते 60 या 62 साल में रिटायर हो जाते. यही कामयाबी उनके खाते में दर्ज होती.
रिलायंस जैसी कंपनी तो नहीं ही बनती उनसे, न ही आरक्षण के सहारे कोई बिजनेस में ऊँचा उठ सकता है. सरकार जनता को बेवकूफ बनाना छोड़ दे और आरक्षण लेने वाले बैसाखी छोड़ अपने पैर मजबूत करें तब सही मायने में देश मजबूत होगा देश का विकास होगा.
तीन महीने के लिए मुफ़्त नेट और मुफ़्त कॉलिंग के लिए जियो के सिम के लिए लंबी-लंबी लाइन में खड़े रहने वालों के देश में पीढ़ियों तक मिलने वाली सुविधा कोई नहीं छोड़ेगा………… सबको पता ही है.