जो आर्थिक सुधार चल रहा है उसका देश को न कोई अनुभव है और न ही कोई पूर्व परिणाम ज्ञात हैं.
यह गहन सोच विचार के बाद उठाया गया कदम है जिस पर पूरा तंत्र पैनी नज़र बनाए हुए है.
कुछ-कुछ चोर-डाकू और साहूकार के संबंधों जैसा…. रोज़ साहूकार अपनी धन संपदा की रक्षा के जतन करता है, वहीं चोर-डाकू रोज़ उसकी सुरक्षा में सेंध लगाने के प्रयास.
जिस दिन नोट बंदी हुयी उसके एक दिन बाद से ही इसे असफल घोषित करने वाले रोज़ सरकार के कदमों के खिलाफ ही लिखते रहते हैं.
हालांकि उनके पास न तो योजनाओं के उद्देश्यों की जानकारी होती है और न ही पिछली घोषणाओं से हासिल उपलब्धियों का डाटा.
राजनीतिक चालबाज़ियों और खुराफातों से प्रभावित वर्ग यह समझने को तैयार नहीं कि आर्थिक सुधार पॉपुलिस्ट कदम नहीं होते हैं.
दिन प्रतिदिन जो सहूलियतें सरकार बढ़ा रही है, वो ज़मीनी स्तर पर आ रही परेशानी को दूर करने के जतन मात्र है.
उद्देश्य वही है कि चाहे कालाधन हो या डेड मनी, अधिक से अधिक नगदी बैंक्स और बाज़ार में ला कर बाज़ार में नगदी की उपलब्धता बढ़ाना.
सरकार के पास सूचना तंत्र है, पल पल की जानकारी है, नया रकम निकासी का नियम साबित करता है कि सरकार कितनी सचेत है शुरू से.
सरकार ने आठ तारीख के बाद जमा किये गए नगदी के डिनोमिनेशन तक संज्ञान में लिए हैं.
यह अर्थक्रांति मुझे या आपको सहमत या असहमत कराने के लिए नहीं… एक अत्यधिक आवश्यक सुधार कार्यक्रम है….
इसके पूर्ण होने तक सिर्फ तेल देखिये और उसकी धार देखिये. और जब इसके परिणामों के आंकड़े सामने आ जाएं तब उनकी विवेचना अपने समर्थन या आलोचना के माध्यम से सामने रखें.
हम अपनी निश्चित मासिक आय और व्यय का प्रबंधन तो सही तरीके से कर नहीं पाते और सोशल मीडिया पर अर्थशास्त्री की भूमिका निभाने लगते हैं.
तब तक रोबर्ट कियोसकी द्वारा लिखित पुस्तक ‘रिच डैड, पुअर डैड’ पढ़िए. सौ रुपए की है और हिंदी में भी उपलब्ध है. पैसा कैसे काम करता है, सरल शब्दों में समझ सकेंगे.