दो बजे रहे थे मन अजीब सी हालत में था … नवम्बर का महीना भी कितना उदास सा होता है .. जैसे इसमें भी कोई अनजानी बेचैनी भरी हो…
रूम में मन नहीं लगा तो बाहर आ गयी… घर से निकलते ही दस कदम की दूरी पर झील का किनारा था.. शांत झील… आज वो भी बेचैन लगी उसके ठहरे पानी में कुछ तो था मेरे मन जैसा…
बैठ गयी और दूर तक देखती रही चमकते पानी को…. तभी मोबाइल की रिंग बजी. उन दिनों मेरे फोन में रिंग टोन और कॉलर ट्यून एक ही थी…..
मेरी फेवरेट…. (तू मुझे सोच कभी, यही चाहत है मेरी, मैं तेरे प्यार का अरमान लिए बैठा हूँ, तू किसी और को चाहे खुदा न करे) के के की खूबसूरत आवाज़ में.. सुन के एक टीस उठा करती थी और सुनने वाले के दिल में भी.. जो भी फोन करता… कई बार .. बार बार सुनने के लिए फोन रिसीव नही करती थी….
काफी देर तक बजा फिर बजा और फिर बजा तो उठा ही लिया की शायद जरूरी कॉल होगी ..क्या पता घर से हो या स्कूल से आज छुट्टी ले ली थी स्कूल की मन नही था…
हेल्लो… उधर से भी हेल्लो की आवाज़ आई और आ के रह गयी शायद नेटवर्क की प्रॉब्लम थी…
मैंने फोन डिस्कनेक्ट किया और साइड में रख दिया… और फिर शांत बैठ गई.. विचारों की उथल पुथल चलती रही… फोन फिर बज उठा पर इस बार नहीं उठाया.. कुछ देर बैठ घर आ गयी.. एक कप चाय बनाई खिड़की के पास बैठ गयी .. घण्टो आकाश देखना अच्छा लगता है बचपन से ही इसी चक्कर में चाय भी ठण्डी हो जाती है….
तभी फिर फोन बजता है पर नहीं उठाती पर ज्यादा देर बजा तो उठा लिया.. पति की कॉल थी .., फोन उठाते ही भड़क गए … कीधर मर जाती है फोन बजता रहता है उठाती नहीं तू .. कोई जरूरी काम हो तो साला कोई मर जाए पर तू फोन नहीं उठाएगी…. कहाँ थी?
कहीं नहीं यहीं फोन के ही पास… तो किसलिए ले रखा है इसे जब उठाना ही नहीं, मार फैंक के इसे.. कुछ नहीं बोली चुपचाप सुनती रही.. बोलती भी क्या.. गलती तो मेरी ही थी इसे मेरी एक खराब आदत भी कह सकते हैं..
फोन एक्चुली नहीं रिसीव करती और किसी का भी नहीं करती थी… जाने क्यों चिढ़ है फोन पर बात करने से ये समझ ही नहीं आता कि क्या बात करुँ.. सामने वाले के चेहरे के भाव भी नहीं नज़र आते कि उसके शब्दों में कितनी सच्चाई है…..
हेल्लो हेल्लो हेल्लो हेल्लो … नक्षत्री… अपनी इसी तीसी करा .. फेर खो गई… के सोची जा है बेरा न …( जब डांट पड़ी तो बोली )
हां बोलो…
मेरा लगेज पेक कर दे शाम की ट्रेन है कलकत्ता की टी वाई ड्यूटी है जाना है…
ह्म्म् .. कह के फोन काट दिया …
शाम को आये समान लिया और चल दिए …
बस इतनी बातचीत हुई एक हफ्ते की है सातवें दिन वापसी की ट्रेन है शाम की….
अकेली थी और सात दिन अकेले ही रहना था..
आज की रात कट गयी कब नींद आई पता नहीं चला…
अगले दिन स्कूल से आई, हल्का फुल्का कुछ खाया और झील किनारे चली गयी .. फोन देखा तो कल वाला नम्बर फिर मिस कॉल में था… आज खुद ही कॉल कर ली सोचा पूछ ही लू कौन है… रिंग गयी …उधर किसी लड़के ने फोन उठाया…. हेल्लो…
जी हेल्लो कौन बोल रहे हो सर आप? मैंने पूछा .. और कहा कि दो दिन से आप की कॉल आ रही है… क्या आप मुझे जानते है? मैंने एक साँस में सारे सवाल दाग दिए….
मेम सुनिए तो…. उधर से आवाज़ आती है और मैं चुप हो जाती हूँ.. हां कहिए..
मेम मुझसे लगता है रोंग नम्बर लगा है..
मेरा नाम जितेश है और एच डी ऍफ़ सी बैंक मुम्बई चर्चगेट ब्रांच में हूँ.. दोस्त को फोन कर रहा था एक डिजिट गलत थी आप से लग गया…
तो मैं बोली एक बार गलती हो सकती है सर पर कल आपने 3 बार किया और आज भी 1 बार किया…|
हां मेम सॉरी .. बट एक रीज़न था उसका भी…
क्या..?
मेम आपकी कॉलर ट्यून … गाना ही इतना अच्छा है कि बार बार सुनने को दिल करता है…
सॉरी आपको परेशानी हुई …पर शायद दुबारा परेशान करुँ… मुझे अच्छा लगा सोंग … पर एक बात और है गाने से नशीली आपकी आवाज़ है दिल पर असर छोड़ रही है….
और मैं कुछ बोलती उस से पहले ही हँस के फोन काट दिया उसने…. मुँह से यही निकला जाने दुनिया मैं कैसे कैसे लोग है फ़्लर्ट करने का मौका ही नही छोड़ते….
रात के 11 बज रहे थे फोन बज उठा साथ में गाना… मैं बालकनी मैं बैठी कानों में लीड लगा fm सुन रही थी…. नम्बर नाम से सेव नहीं था तो अन्जान ही है पता था… पर कुछ पहचाना सा… रिसीव करते ही .. उधर से आवाज़ आई .. अरे आपने उठा क्यों लिया मुझे तो गाना सुनना था… मैंने तो कहा था परेशान करूँगा..
तो?? मतलब मेरा सर दर्द करोगे घण्टी बजा बजा के तो उधर से हँसने की आवाज़ आई…
गुस्से में और नशीली हो जाती है आपकी आवाज़… सच बताओ ड्रिंक करती हो क्या…. न मुझे गुस्सा आया न कोई भाव जाने क्यों और फोन डिस्कनेक्ट कर दिया…
और फोन बजता रहा मैंने उठा कर तकिये के नीचे दबा दिया और टीवी ओन कर लिया…..
फोन बजता रहा यूं भी नहीं कह सकती कि ध्यान नहीं दिया.. ध्यान तो था ही तभी तो पता था की बज रहा है… टीवी में मन ही नहीं लगा… एक घण्टे बाद फोन उठाया 22 मिसड कॉल शो कर रहा था…
मन कितना चंचल होता है.. कोई कैसे बांधे उसे.. और ऊपर से स्त्री मन.. सोचा फोन मिलाऊँ पर सिर्फ सोचा और सोचते ही वापिस फोन घनघना उठा.. कुछ देर बजता हुआ देखती रही.. और फिर उठा ही लिया… और नाटकीय अंदाज में हेल्लो बोला कि जैसे जानती ही नहीं इस नम्बर को..
हेल्लो जी कहिए और थोडा सख्त लहज़ा करके बोली कौन चाहिए आपको… उधर से आवाज़ आई ओह्ह आपने फिर फोन उठा लिया…
और मैंने गुस्से में कहा शरम नहीं आती आपको इतनी रात इतनी कॉल .. शादी शुदा महिला हूँ .. मेरे पति है बच्चे हैं क्या असर होगा कभी सोचा है आपके इस पागलपन का …..
सॉरी मेम… पर क्या आप सच्ची में शादी शुदा हैं…
जी.. क्यों?
नहीं अगर इस वक़्त किसी का फोन आये तो जनरली पति ही उठाते हैं…
पति उठाते हैं का क्या मतलब? तुम यूं क्या औरों को भी परेशान करते हो?
अरे नही मेम… अपने से लगाया मेरी पत्नी का फोन बजता मैं ही उठता..
ओके .. कह के मैंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया….
फिर बज उठा… अब उठा के सीधी सवाल दाग दिया… अब क्या प्रॉब्लम है?
कुछ नही आप इतनी रात टीवी देख रहीं है पति की नींद नहीं खराब हो रही?
आपको मतलब?
नहीं यूं ही दिमाग में आया तो पूछ लिया..
आप चाहते क्या हैं वो बोलिए…?
कुछ नहीं बस आपकी आवाज़..
रिकॉर्ड कर ली… अपनी कॉलर ट्यून बनाने के लिए.. और खिलखिला के हँस दिया …
और मैंने फिर फोन काट दिया..
काफी देर तक देखती रही फोन नहीं बजा….
पता नही कब नींद आई…
क्रमश: