अहिंसा के लिए आवश्यक है दुष्ट के साथ हिंसा कर सकने की शक्ति

उस दिन सभ्यता, सज्जनता, अहिंसा की हार हुई थी और क्रूरता बर्बरता हिंसा की विजय. कुछ शांतिप्रिय, सभ्य लोग जो एक समुद्री किनारे पर अपने ईश्वर की उपासना करते थे, कुछ बर्बर, असभ्य, जाहिल, क्रूर लोगों से युद्ध में पराजित हुए थे.

पिछले दिनों मैं सोमनाथ में था. इसके पहले भी मैं कई बार सोमनाथ जा चुका हूँ.

मेरा प्रिय तीर्थस्थल है सोमनाथ. ये एक भव्य शिव मंदिर और ज्योतिर्लिंग तो है ही, उसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ है.

एक पावन धार्मिक स्थान होने के साथ प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर समुद्र का किनारा है, अनंत तक फैला समुद्र, अस्ताचल गामी सूर्य की लालिमा, समुद्री हवा के शीतल झोंके.

और इस सबके बीच मंदिर में होती शिव आरती… एक अयंत मनोहारी दृश्य उपस्थित करती है, और मन कहीं खो सा जाता है.

ऐसा लगता है, मानों प्रकृति स्वयं भगवान् शिव की आराधना कर रही है. इसी प्रकार प्रात: काल का दृश्य भी कुछ कम मनोहारी नहीं.

सालों बाद मैंने सूर्योदय देखा, उदित होते सूर्य को देखने के साथ, मंदिर से आने वाली शिव आरती को सुनना एक आध्यात्मिक, मन को आह्लादित करने वाली अनुभूति थी.

इसके अतिरिक्त सोमनाथ का ऐतिहासिक, सांस्कतिक महत्व है. आज से 1000 वर्ष पूर्व इसी स्थल पर, इसी मंदिर का ध्वंस महमूद गजनी/ गजनी के महमूद ने किया था, बेहद क्रूरता से, हजारों लोगों की हत्या करने के बाद.

उस ध्वंस के निशान आज भी वहां है. उस दिन सभ्यता, सज्जनता, अहिंसा की हार हुई थी और क्रूरता बर्बरता हिंसा की विजय.

कुछ शांतिप्रिय, सभ्य लोग जो एक समुद्री किनारे पर अपने ईश्वर की उपासना करते थे, कुछ बर्बर, असभ्य, जाहिल, क्रूर लोगों से युद्ध में पराजित हुए थे.

सोमनाथ इस बात का भी साक्षी है कि, विजय हमेशा सत्य, धर्म और सज्जनता की नहीं होती, अपितु शक्ति की होती है. अगर दुष्ट शक्तिमान है तो वो ही विजय प्राप्त करता है.

देवा सुर संग्राम में भी तो कभी-कभी असुर जीत जाते थे. आपकी सज्जनता, अहिंसा, भलमनसाहत दुष्ट से आपकी रक्षा नहीं कर सकती.

शांति के लिए शक्ति आवश्यक है. अहिंसा के लिए, दुष्ट के साथ हिंसा कर सकने की शक्ति.

सोमनाथ इस बात के भी साक्षी हैं कि विजय और अंतिम विजय में अंतर होता है.

जिस तरह एक मनुष्य के जीवन में कुछ सालों का कोई महत्व नहीं होता, वैसे ही सभ्यताओ के इतिहास में कुछ सदियों का नहीं होता.

आज सोमनाथ फिर उसी स्थान पर, उसी भव्यता से खड़े हैं, और जिन्होंने उन्हें लूटा था वो?

वो आज अपनी ही लगाई आग में जल रहे हैं, उतने ही क्रूर, उतने ही बर्बर, उतने ही असभ्य जितने एक हज़ार साल पहले थे.

एक अभिशप्त आत्मा के समान, जिसके लिए समय मानों वहीं ठहर गया हो. (गजनी अफगानिस्तान में है, जो अपनी ही लगाई आग में पिछले 40 सालो से जल रहा है)

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