देखते ही बनता है जनता का अपने प्रधान पर ये भरोसा

भरोसा बड़ी चीज़ होती है, आप यदि चर्चित या बड़ा नाम हैं तब तो आपको और भी भरोसेमंद होना चाहिए.

आपके चाहने वाले, प्रशंसक, समर्थक या जो आपकी बात ध्यान से सुनते हैं, उन्हें कन्विन्स करने के लिए आपको कई बार चीज़ों को अपने आचरण में उतारना होता है।

जब कोई लीडर खुद ईमानदार हो तभी दूसरे भी उसकी बात मानकर ईमानदार बनने का प्रयास करते हैं.

कोई खुद आंदोलन में कूदे और लाठी खाये तभी उसके समर्थक भी लाठी खाने तैयार रहते हैं, कोई खुद स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करे तभी उसके प्रशंसक भी स्वदेशी अपनाते हैं….

बात भरोसे की है? ये पैदा कैसे होता है…. छोटे से उदाहरण से समझ सकते हैं।

मैं सामान्य नागरिक हूँ, व्यवहारिक हूँ, भरोसा जीतने या करने में कभी नहीं हिचकिचाता हालाँकि ये अवश्य है कि विवेक नहीं खोता.

मैं जहाँ रोज़ खाना खाता हूँ उन्हें 2 पुराने 500 के नोट दिए थे, ये कहकर कि मेरे पास अभी यही हैं, फिलहाल रख लीजिए. यदि आपसे ना चलें तो मुझे ही वापस कर दीजियेगा.

और रोज़ जाकर पूछ लेता था, आंटी नोट चले या नहीं? तीसरे दिन वे बोलीं, हाँ बेटा चल गए….

फिर मुझे कुछ दिन बाद 100-100 के कुछ नोट मिल गए तो मैंने खुद से जाकर उन्हें करीब 10 नोट दे दिए कि आपको कमी होगी कहकर….. वे खुश हो गईं।

पहले मैंने उन्हें भरोसा दिलाया, फिर उसे मजबूत किया उनके लिए फ़िक्र दिखाकर, अब वे मुझपर पहले से अधिक भरोसा करतीं हैं. मैं यदि 2-3 महीने भी बिना पैसे दिए खाना चाहूँ तो ना नहीं कहेंगी….

ऐसा ही भरोसा आप कई बार छोटी-छोटी उधारी करके उसे समय पर लौटाकर भी कमा लेते हैं, और भी कई बातें और तरीक़े हैं हम सब जानते हैं।

नरेंद्र मोदी जी वर्तमान समय में अकेले ऐसे नेता हैं जिनपर जनता भरोसा दिखा रही है, वो भरोसा उन्होंने कमाया है.

वो उन्होंने कमाया है एक ऐसे देश की जनता से, जिसे लगातार छला गया हो. जो दूध से जलने के बाद छाछ भी फूँक कर पीती हो.

टैक्स चोरी और मुफ्त की चीज़ें पाने की लाइन में लगने वाली ये जनता क्यों एक नेता पर दांव लगाए जा रही है?

ये भरोसा उन्होंने कमाया है गुजरात के विकास से, सफल वैश्विक कूटनीति से, पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक से, भ्रष्टाचार विहीन, मेहनती सरकार और स्वयं की ईमानदार छवि से….

वरना नोट बंदी से आम जन और मध्यम वर्गीय व्यापारी वर्ग को भी दिक्कतें तो हुई है.

अर्थशास्त्र के मामले में फ़िलहाल ये कहना जल्दबाजी होगी कि इससे व्यापक रूप में क्या लाभ हुआ और क्या हानि, पर जनता का अपने प्रधान पर ये भरोसा देखते ही बनता है.

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