पाटलिपुत्र के बारे में कहते हैं कि ये गंगा किनारे करीब बारह मील की लम्बाई और डेढ़ मील की चौड़ाई में फैला हुआ था.
पटना का आज का डिजाईन भी कुछ ख़ास अलग नहीं है. हां, एक फर्क आया है कि सत्ता का केंद्र खिसक गया है.
जिसे आज अशोक राजपथ कहते हैं और जहाँ मौर्य काल के अवशेष हैं वो इलाका अब सत्ता का केंद्र नहीं है. वहां के पुराने महलनुमा दरभंगा महाराज के सारे मकान अब कॉलेज हैं.
सत्ता का केंद्र खिसक कर शहर के दूसरे कोने पर आ गया. सचिवालय, उच्च न्यायलय, विधानसभा, गवर्नर हाउस, इनकम टैक्स ऑफिस सब आज बेली रोड पर है.
बेली रोड भी कोई नया नाम नहीं है, पुराना नाम है जिसे लोगों ने पकड़े रखा. जैसे कॉनौट प्लेस का नाम अभी तक राजीव चौक नहीं हो पाया वैसे ही बेली रोड भी जवाहर लाल नेहरु मार्ग नहीं हुआ.
हाँ एक पुराना सर्पेंटाइन रोड ज़रूर अब दारोगा राय पथ हो गया है. इस बेली रोड से रोज़ सुबह शाम गुजरने पर आप सामंती व्यवस्था सीख जायेंगे.
सुबह शाम रोज़ इसलिए गुजरना होगा क्योंकि पुराने पटना में रिहाइश की जगह नहीं थी. इसलिए लोग दानापुर की तरफ बसते गए और हर रोज़ सबको बेली रोड से ही गुजर के अपने काम की जगह पर आना होता है.
इस सड़क से गुजरने पर सबसे पहले तो आप ये सीख जायेंगे कि निर्माण कार्य बरसों चलता रहता है. यहाँ खुदा है, वहां खुदा है, और जहाँ नहीं खुदा है, वहां काम चल रहा है!
सामंती व्यवस्था में जैसे राजा साहब का हाथी निकलने पर लोग सड़क के किनारे हाथ बांधे खड़े हो जाते थे, वैसा ही यहाँ अब नेता जी के लिए होता है.
मुख्यमंत्री / उप-मुख्यमंत्री का कारवां जब निकलता है तो आधी टूटी सड़क के दोनों तरफ ट्रैफिक रोक दिया जाता है.
आम जन कतार में तब तक खड़े रहेंगे जब तक माननीय का कारवां आ ना जाए और आकर गुजर ना जाये.
मगर मुख्यमंत्री जी के लिए रुकने में कौन सी बड़ी बात है? जो आपको ऐसे नहीं दिखा होगा वो ये है कि प्रोटोकॉल में चीफ जस्टिस, मुख्यमंत्री से ऊपर आता है.
यानी जब उच्च न्यायालय से उनकी गाड़ी कभी रोड क्रॉस करेगी (क्योंकि जज साहब लोगों का आवास और न्यायलय सड़क के अलग अलग तरफ है) तो मुख्यमंत्री का कारवां भी रोका जायेगा. उसके बाद ट्रैफिक का क्या होता होगा इसकी आप कल्पना कर सकते हैं.
देखा नहीं होगा, क्योंकि साहब तो दिल्ली में रहते हैं ना? और राजदीप सरदेसाई साहब ने बताया ही था कि जो जगह दिल्ली से दूर होती है वहां की रिपोर्टिंग नहीं की जाती. पता नहीं कैसे मगर उनकी कंपनी ने उन्हें हाल में एक गाँव जाने का टी.ए. डी.ए. दिया था.
चलिए तो बिहार में अगर मुझे हर रोज़ कतार में खड़ा होते नहीं देखा तो आप दिल्ली में देख लीजिये. ए.सी. ऑफिस से बस थोड़ा सा नीचे उतरना होगा.
ओखला मंडी में एक रेलवे रिजर्वेशन का काउंटर है. होली, दिवाली, छठ के टाइम में वहां चले जाइए, आम बिहारी आपको वहीँ चादर बिछा के सोता मिलेगा ताकि अगली सुबह वो कतार में दूसरे तीसरे नंबर पे हो.
आठवां नंबर आते आते टिकट ख़त्म हो जाता है, बोर्ड पर वो रिग्रेट नो वेटिंग दिखने लगता है.
कतार में खड़ा बिहारी ऐसे ही आपको एम्स के रेलवे रिजर्वेशन काउंटर पर भी दिखेगा. वहां मगर सोने की ज्यादा जगह है. हॉस्पिटल के पार्क में ही ऐसे भी रात गुजारनी है, वैसे भी, तो कतार वहां भी परमानेंट होती है.
जो दो चार बार दिल्ली जा चुके हैं उन्हें पास के सरोजनी नगर वाले रिजर्वेशन काउंटर का भी पता होता है साहेब. वहां भी देख सकते हैं आप, ज्यादा दिक्कत वहां तक जाने में भी नहीं होगी.
थोड़ा दूर जाना चाहें तो दिल्ली के बॉर्डर तक हो आइये. बदरपुर में बहुत से लोग इधर हाल में ही बसे हैं ना? उनमें से कई बिहार के हैं, कुछ संगम विहार, फरीदाबाद से भी आते हैं वहां. वहां भी रिजर्वेशन काउंटर पर ऐसी ही लम्बी कतारें होती हैं.
लक्ष्मी नगर के इलाके का नाम तो नहीं ही लेना होगा ना? उसका और पास के स्टेशन और बाकी का तो खुद ही याद आ गया होगा?
तो माननीय एंड साहब, कतारों और इंतज़ार पर बात चली है, तो आपको हमारी कतारें कब दिखी थी अब वो भी बता दीजिये!
जब हम मंदिरों में लम्बी लाइन लगाये खड़े होते हैं और आप वी.आई.पी. गेट से घुसकर चुनाव के टाइम पूजा कर आते हैं, अख़बारों के लिए फोटो खिंचा आते हैं, तब दिखी थी क्या?
अपने काफिले के लिए एम्बुलेंस तक रुकवा लेते हैं तब दिखी थी क्या? कभी राशन, कभी गैस के लिए जब हम कतारों में खड़े होते हैं और आपका ड्राईवर फटाक से काम करवा जाता है तब दिखी थी कार की खिड़की से?
अस्पताल में जल्दी भर्ती के लिए जब आपकी अनुशंसा के पत्र के लिए घंटों आपके दिल्ली आवास पर इंतज़ार होता है, तब दिखे थे हम कतार में?
स्कूल-कॉलेज में एडमिशन के लिए कभी स्पोर्ट्स कोटे पर सिफारिश, कभी विकलांग कोटे पर चिट्ठी के लिए हम कतारों में रह गए और किसी और का एडमिशन हुआ तब दिखी थी कतारें हमारी?
बाकी माननीय साहब, जिन दंगों से आप डर रहे हैं, उनमें सबसे पहले कौन काटा जाएगा वो भी आपको पता है. आपका डर बहुत गैरजरूरी भी नहीं लगता है हमें. डरिये, आपका डरना जरूरी है.