कई बार किसी से मिलने का वादा करके मिलने का मूड नहीं रहता तो ऐसे धर्मसंकट में पड़ जाती हूँ कि उसे कैसे मना करूँ? कि खुद उसी का फ़ोन आ जाता है मिलना कैंसिल करने के लिए.
कई बार कोई काम बनता नज़र नहीं आता, परेशान रहती हूँ लेकिन अंततः बड़े सुन्दर तरीके से वह काम बन जाता है. यह बात अनेक बार देखने के बाद अब कभी जब फिक्रमंद होती हूँ तो सोच लेती हूँ कि कुछ न कुछ रास्ता निकल ही आएगा, चिन्ता क्या करनी? और सचमुच रास्ता निकल आता है.
मेरे साथ यह सिलसिला बरसों से चला आ रहा है. बहुत पहले (अब नहीं) कई बार पैसों की ज़रूरत होती थी तो किसी के आगे हाथ फैलाने से पहले कहीं से पारिश्रमिक का मनीआर्डर आ जाता था.
एक बार मुंबई में बैठे बिन बताए जान गई थी कि मेरे पिता के परिवार में किसी की मृत्यु हुई है. एक बार पुणे से मैंने एक अंतरंग सखी को फोन करके पूछा कि फलाँ के बारे में पता कर कि ठीकठाक है. उसने थोड़ी देर बाद फोन करके बताया, उसकी रात को डेथ हो गई. “हाँ, मुझे रात सपने में दिखा.”
अनेक ऐसी बातें हैं जो मुझे घोर आश्चर्य में डाल देती हैं. मुझे ऐसा लगता है कि यदि मन शुद्ध रखो यानि मन में किसी प्रकार का छल और अहंकार न हो तो आपमें अपने मन की बात बिना कहे दूसरे तक पहुँचाने की क्षमता पैदा हो जाती है और दूसरे की बात आप तक पहुँचने की.
मुझे कई बार ऐसा लगा है कि जो लोग मेरे दिल से जुड़े होते हैं या मैं जिनके दिल से जुडी होती हूँ, उन्हें मुझे अपने बारे में बताने की ज़रूरत नहीं, मैं खुद जान जाऊँगी. मनुष्यों का आपस में जुड़ाव सिर्फ हवा में तैर रही रासायनिक तरंगों का खेल है.
– मणिका मोहिनी