अंग्रेज़ों के बनाए Thugs को नेहरु ने विमुक्त जाति बनाकर रख दिया हाशिये पर

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Thugs

High court के एक वकील साहब राजभर साहब ऑपरेशन के बाद दिखाने आए थे. बातों बातों में उनसे बात हुयी कि साहब राजभर लोग आज से हजार वर्ष पूर्व क्षत्रिय हुआ करते थे. उनकी आँखों मे चमक आ गई, बोले – कि डॉ साहब आप तो मेरे मन की बात कर रहे हैं. ( https://en.wikipedia.org/wiki/Rajbhar)

मैंने कहा कि अब आप लोग किस caste मे आते हैं? उन्होंने कहा कि विमुक्त_जाति.

मैंने पूछा कि ये किसमें आते हैं? Genral, SC, ST या OBC में?

उन्होंने कहा कि साहब किसी में नहीं.

मैंने कहा ऐसे कैसे?

तो उन्होने बताया कि Denotified Caste.

मैंने थोड़ा इस विषय पर अध्ययन किया. अंग्रेजों ने जब भारत में शासन शुरू किया तो पता चला कि उनके लूट के विरोध और भारत के उद्योगों को नष्ट करने के कारण जो लोग बेरोजगार हुये उनमें से कुछ लोग उनका हिंसक विरोध करते थे.

उनको चिन्हित करने के लिए अंग्रेज़ William Sleeman को ज़िम्मेदारी दी, जिसको कालांतर में कमिश्नर की पदवी दी गई. उसने सबसे पहले एक खास समुदाय को जो इनका हिंसक विरोध करता था उसको #THUG के नाम से नामांकित किया और 1839 में इस समुदाय के 3000 लोगों को पकड़ा, जिनमें से 466 को फांसी पर लटका दिया, 1564 को देशनिकाला या कालापानी, और 933 लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी.

1850 तक लगभग सभी ठगों को खत्म कर दिया गया और इस कार्यप्रणाली से प्रोत्साहित होकर अंग्रेजों ने भारत के अन्य हिंसक विरोध करने वाले समुदायों के लिए एक कानून बनाने की योजना बनाई जिसको 1871 में James Fitzjames Stephen (जिसने एक साल बाद Indian Evidence Act 1872 बनाया था), ने Criminal Tribe Act का गठन किया.

उसकी दलील थी कि – जिस तरह यहाँ बुनकर लोहार आदि पुश्तैनी पेशा है, उसी तरह अपराध करना भी एक पुश्तैनी पेशा है जो कि इनको अपने पूर्वजों से वंशानुगत रूप से प्राप्त होता है अर्थात इन समुदायों के लोग पैदायशी अपराधी होते हैं, और इसलिए इनको भी ठगों की तरह खत्म किया जाए. ( https://en.wikipedia.org/wiki/Criminal_Tribes_Act)

कालांतर में इस कानून को पूरे देश में लागू किया गया, जिसमें चिन्हित लोगों को बिना किसी अपराध के और सबूत के, तथा बिना किसी कानूनी कार्यवाही के कत्ल किया जाना एक आम बात बन गयी.

इतिहासकर राम नारायण रावत के अनुसार शुरू में इसमें सिर्फ जाटों (ये भी भारत मे शासक/क्षत्रिय रह चुके थे) को सम्मिलित किया गया परंतु बाद में इसका विस्तार कर अधिकतर शूद्रों जैसे चमार, सन्यासियों और पहाड़ी लोगों को शामिल कर लिया गया.

बाद में इस कानून के अंतर्गत इन पैदायशी अपराधियों में Bowreahs, Sonareahs, Binds, Budducks, Bedyas, Domes, Dormas, Bembodyahs, Keechuks, Dasads, Koneriahs, Moosaheers, Rajwars, Gahsees, Banjors, Boayas, Dharees, Sowakhyas को भी शामिल कर एक तरह से इनके सामाजिक बहिष्कार को प्रोत्साहित किया गया. शासन के अपराधी तो थे ही.

नोट : MA Sherring के अनुसार बिन्द और मुसहर नमक के निर्माता थे जिस व्यापार पर अंग्रेजों ने 1780 में ही एकाधिकार जमा कर उनको बेरोजगार कर दिया था. बेड़िया वस्तुओं के लोकल ट्रांसपोरटेर हुआ करते थे. कालांतर मे Criminal Tribes Act 1931के तहत सैकड़ों हिंदुओं को इस कानून के घेरे मे लाया गया. अकेले मद्रास मे 237 अपराधी जातियों को शामिल किया गया था.

आजादी के बाद इस कानून को 1949 में खत्म कर 23 लाख लोगों को गैर अपराधी बनाया गया ( 2,300,000 tribals being decriminalised). 1952 में नेहरू सरकार ने इस कानून को बदल कर The Habitual Offenders Act (HOA) (1952) बनाया. और जो पहले से अपराधी_समुदाय के एक बदनुमा दाग लेकर जीने को बाध्य थे, उनको denotified tribes नाम देकर, एक और सामाजिक धब्बा उनकी पीठ पर छाप दिया, अर्थात विमुक्त जाति.

इस आजाद भारत में भी ढेर सारे विमुक्त जाति के लोग PASA ( Prevention of Anti – social Activity Act ) के अंतर्गत चिन्हित होते रहे. इन समुदायों के ज़्यादातर लोगो को BPL की स्थिति में होने के बावजूद इनको SC, ST या OBC के ग्रुप से अभी भी बाहर रखा गया है.

नेशनल ह्यूमन राइट कमिशन ने और UN ने इस कानून को केएचटीएम करने की सिफारिश की थी, क्योंकि इसमें ज़्यादातर नियम कानून Criminal Tribes Act से ही लिए गए हैं. अभी इस कानून की वैधानिक स्थिति क्या है, ये तो मुझे नहीं पता लेकिन इस विमुक्त जाति में 60 मिलियन यानि 6 करोड़ भारतीय लोग शामिल है. राजभर भी उनमें से एक हैं.

ये मॉडर्न caste System का एक और पोल खोलता है कि इसका भारत से कोई संबंध नहीं है, ये ईसाई अंग्रेजों का भारत को एक उपहार है.

विडम्बना ये है कि Annihilation of Caste की कसमें खाने वाले डॉ अंबेडकर को भी भारत के एक बड़े वर्ग पर ये क्रूर अन्याय दिखाई न दिया? क्योंकि वे बौद्ध तो 1956 मे बने थे , और स्वतंत्र भारत में ब्रिटिश कानून की नकल जवाहर लाल ने 1952 में करके इन लोगों को पैदायशी अपराध से 1952 में विमुक्त किया था.

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