‘तर्क वितरण’ से पहले इसे ही पढ़ लीजिये, कुछ मूलभूत और ‘और’ बातें भी जान लीजिये:
(1) सत्य अस्पृश्य नहीं होता.
(2) वह किसी की जीभ छू लेने से अपवित्र नहीं होता.
(3) उसके कई आयाम होते हैं जिनमें एक यह भी होता है कि महाधूर्त उसका प्रयोग शस्त्रास्त्र की तरह करते हैं, वह भी बिना किसी आस्था के.
(4) ‘पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ’ कहना एक तरह से अपनी सीमाओं का विज्ञापन ही है. हर कोई कबीर सा उलट बैपारी नहीं हो सकता इसलिये बेकार की दार्शनिकता तज थोड़ा पढ़ लिया कीजिये. इस विषय पर कई लोग अच्छा भी लिख रहे हैं और वे अर्थशास्त्री नहीं हैं.
(5) समस्याओं का अनुमान था तब ही प्रधान स्वयं अपनी बाजी लगा घोषणा करने आया और बारंबार अपील करता रहा कि मुझे आप पर विश्वास है, फलानों पर विश्वास है आदि आदि. सब कुछ गुडी गुडी कह कम से कम उसके उद्योग का अपमान तो न कीजिये.
(6) मान लीजिये कि वह सर्वशक्तिमान नहीं है, उसको कतिपय महत्त्वपूर्ण और शक्तिसंपन्न अपनों से भी सहयोग नहीं है और यह भी सच है कि जितनी कसौटियों पर वह एक साथ जिस तरह कसा गया है, कोई प्रधान नहीं कसा गया. ऐसे में अति आत्मविश्वास और ‘एकला चलो’ घातक भी हो सकता है.
(7) बुद्धिमान शासक धैर्य नहीं खोता.
(8) धैर्य और पेट की लड़ाई में पेट भारी पड़ता ही है. बुद्धिमान शासक प्रजा का पेट प्रबंधन करता चलता है.
(9) भारत न तो सिंगापुर है और न हांगकांग. वहाँ के मॉडल दिल्ली और मुंबई में तो चल सकते हैं, भारत में नहीं. दोनों नगरों का हाल देख ही रहे हैं इसलिये बहुत अधिक आशा न पालिये.
(10) 70 वर्ष को 17 महीने में ठीक कर देना या 50 दिन में कायापलट कर देना आदि आदि ‘राजनैतिक अलंकार’ की श्रेणी में आते हैं, उन्हें यथावत मान लेना मूर्खता ही होगी. लंबी और कष्टप्रद यात्रा के लिये तैयार रहिये और समालोचना करते रहिये. उन्हें इसकी और हम सबकी शुभेच्छाओं की आवश्यकता है.
(11) शीर्ष पर बैठा व्यक्ति यदि किसी का दास नहीं तो बहुत अकेला होता है और केवल ‘ईश्वर’ ही अकेलेपन के साथ सर्वशक्तिमान होता है.
– सनातन कालयात्री