नोटबंदी एक दोधारी तलवार है. इसके अपने फायदे अपने नुकसान हैं. इसीलिए इसे लागू करने के लिए बेहद सावधानी और प्लानिंग की जरूरत पड़ती है.
ख़ुशी की बात है कि मोदी सरकार इन दोनों मोर्चो पर पूरी तत्परता से काम कर रही है.
नोटबंदी से हम ये उम्मीद करते हैं कि इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी. काला धन वापस सिस्टम में आएगा.
लेकिन सरकार की नोटबंदी योजना सिर्फ काले धन तक ही सीमित नहीं है. इसके तमाम फायदे हैं.
उन्हें समझने के लिए सरकार की तमाम अन्य योजनाओं, नीतियों और उनके प्रभाव को भी समझना होगा.
आज ऐसा ही एक फायदा :
भारत में करोड़ों लोग फैक्ट्रियों, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में काम करते हैं. खेती के बाद सबसे ज्यादा लोग मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर में हैं. औद्योगिक मजदूर.
स्वतन्त्रता के 70 साल के बाद भी सिर्फ 8% लोग ऑर्गनाइज्ड लेबर कहलाते हैं. वो लोग जो PSU या बड़ी कंपनियों में हैं और लेबर लॉ के तहत उन्हें सुविधाएँ मिलती हैं. ईएसआई, प्रोविडेंट फंड, नियमानुसार सैलरी मिलती है.
अक्सर अख़बार में खबर छपती है कि रेलवे में चपरासी की, रेलवे क्रासिंग खोलने बंद करने की जॉब निकली है और उसमे पीएचडी, इंजीनियर, MA-MSc पास लोग अप्लाई कर रहे हैं.
सोचने की बात है जहाँ इतनी बेरोजगारी हो वहां अन-ऑर्गनाइज्ड लेबर के साथ फिर क्या होता होगा?
लगातार अख़बार में खबर आ रही है कि पूरे भारत में दिहाड़ी मजदूर संकट में हैं. उन्हें रोजगार नहीं मिल रहा है. तमाम छोटी बड़ी कम्पनियाँ बंद पड़ी हैं क्योंकि मजदूरों को देने के लिए उनके पास कैश नहीं है.
सवाल ये पूछा जाना चाहिए कि दिक्कत नोटबंदी है या कैश?
तमाम व्यापारी, मिल मालिक, कंपनी अपने मजदूरों को पैसा कैश क्यों देती हैं?
जवाब इसी में छुपा है.
चाहे स्कूल हो, ऑफिस, कंपनी या फैक्ट्री. सभी जगह मालिक लोग अपने मजदूरों की संख्या कम दिखाते हैं.
अगर कागज़ों में सैलरी सरकारी नियम से दिखाते हैं तो मजदूरों के हाथ में उससे कम सैलरी ही देते हैं.
और ये संभव तभी होगा जब सैलरी कैश में बंटेगी. सारा मैनिप्युलेशन तभी संभव है.
अगर चेक से सैलरी दी जाएगी तो हर श्रमिक का बैंक अकाउंट होगा और उसमें दी जाने वाली सैलरी का सारा रिकार्ड रहेगा. कितने श्रमिक, कितनी सैलरी.
अगर सरकारी अधिकारी चाहेंगे (अगर ईमानदारी रखेंगे) तो कोई भ्रष्टाचार नहीं कर सकेगा. नियमित जांच से पता चल जायेगा कि कौन मालिक सही काम कर रहा है, कौन नहीं.
और इसी तरीके से काले धन के एक हिस्से पर रोक लगेगी.
अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर तभी ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में परिवर्तित हो पायेगा. सरकार के पास सही आंकड़े होंगे.
मजदूरों के लिए हर सरकार, केंद्र भी और राज्य की भी, न जाने कितनी योजनाएं चलाती हैं, उनका सही इस्तेमाल हो सकेगा.
सरकार BPL यानी बिलो पॉवर्टी लाइन में आने वाले लोगों के लिए सस्ते अनाज और तमाम व्यवस्था करती है. उसके लिए सरकार के पास सही आंकड़े होंगे.
सरकार हर परिवार के लिए उसके अपने घर की योजना ला रही है. बिना सही आंकड़ों के कैसे इम्प्लीमेंट होगी?
आज से पूरे भारत में श्रमिको के बैंक अकाउंट खोलने के लिए शिविर लगाए जा रहे हैं. RBI बैंको को स्पेशल इंस्ट्रक्शन दे रहा है.
नोटबंदी सिर्फ 500 और 1000 रूपये के पुराने नोट बंद करने का नाम नहीं है. इसे बहुत सी योजनाओ से जोड़ा जायेगा जिससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी.
मैं समझता हूँ, भ्रष्टाचार काला धन 1000 या 2000 नोटों के छापने से नहीं होता, सरकारी नीतियों में कमी से पनपता है.
मैं मोदी सरकार के साथ इसीलिए हूँ क्योंकि वो मात्र नोटबंदी करके करप्शन पर रोक नहीं लगा रही है.
उसके पास ठोस योजनाएं हैं. पूरे भारत में सभी के बैंक अकाउंट खोलना इसी योजना का अगला चरण है.
आगे ऐसी ही अन्य योजनाओं से परिचय. क्योंकि सरकार की योजनाएं बहुत हैं. सभी को एक साथ जोड़ कर देखेंगे तभी नोटबंदी का औचित्य समझ में आएगा.