हम इश्क़ में पड़ी औरतें, बड़ी बेतरतीब होती हैं

हम इश्क़ में पड़ी औरतें…..
बड़ी बेतरतीब होती हैं

बनाते हैं कभी गर्दन पर
लटकता सा ढीला जूड़ा…..
और कभी बालों को यूँही
उड़ने देते हैं खुली हवाओं में…..
पर उसमें पड़ी उलझने
अक्सर ही हमारी उँगलियों में फँस
बड़ी तक़लीफ़ देती हैं…..
हम इश्क़ में पड़ी औरतें
बड़ी बेतरतीब होती हैं…..

हमारी बिन्दियों का आकार भी
बदलता है हमारे मिज़ाज़ों सा…..
कभी दुःखी हैं तो सज गई
बहुत छोटी सी…..
अगर खुश हैं तो माथे को
रोशन करती है बड़ी वाली…..
तर्जनी को उसे टटोलने की आदत
बड़ी तक़लीफ़ देती है
हम इश्क़ में पड़ी औरतें
बड़ी बेतरतीब होती हैं…..

हमारी आँखों का काजल भी
अक्सर हमारी चुगलियाँ
कर ही देता है…..
कभी उँगलियाँ फिराकर खींचते हैं
पतली लकीरों सा…..
और कभी रंगते हैं
मोटा गाढ़ा कर-कर के…..
लेकिन रोने पर अपनी
भारी पलकों को छिपाने को
उसपर बार-बार रगड़ने की आदत
बड़ी तक़लीफ़ देती है
हम इश्क़ में पड़ी औरतें
बड़ी बेतरतीब होती हैं…..

रंगते हैं कभी नाखुनों को
फिर सूखने को छोड़ देते हैं…..
पर सब्र नहीं होता जरा हमको
अक्सर उन दस मिनटों का इन्तज़ार
हम बर्दाश्त नहीं करते…..
रगड़ लेते हैं किसी कपड़े या
कोनों की दरारों में
उसको फिर से लगाकर फूँककर
देरतक सुखाने की आदत
बड़ी तक़लीफ़ देती है
हम इश्क़ में पड़ी औरतें
बड़ी बेतरतीब होती हैं…..

पहन लेते हैं साड़ी को
फिर पल्लू भी संभलता है …..
प्लीटों को करीने से लगाकर
पिन से टाँक लेते हैं…..
फिर तकते हैं जब आईने को
चेहरे की सिलवटें झाँकने लगती हैं
फिर झूठी मुस्कुराहटों से
उसे हटाने की क़वायद
बड़ी तक़लीफ़ देती है…..
हम इश्क़ में पड़ी औरतें
बड़ी बेतरतीब होती हैं……

– अनीता सिंह

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