यह समय है खुद के दायरे से निकलने का, जब जीवन की संकुचित परिधि की घुटन से मन कुंठित हो उठता है, जब सच के आसमान पर उसे कल्पनाओं के पर फैलाने में परेशानी आती है, तो वह थककर बैठ नहीं जाता वह बनाता है अपना एक नया आकाश…..
यह समय है सच को उजागर करने का कि जब झूठ की दुर्गन्ध से साँसें थम जाती हैं और घुटन का चेहरा विकृत होने लगता है, तो स्वच्छंद और निर्भय हवाएँ तूफान बनकर आती हैं और सड़कों पर पड़ा कचरा भी साफ हो जाता है….
यह समय है उन अधूरी कहानियों को पूरा करने का जिसे किस्मत का लिखा समझकर कर दिया था वक्त के हवाले. समय है उनमें उन छोटे-छोटे पलों को सँजोने का जो एक-दूसरे से जुड़ते हैं और बात पूरी कर जाते हैं……
यह समय है उन परम्पराओं के पुनर्निर्माण का, जो रूढ़िवादिता के लांछन से मुँह छुपाए घुमा करती हैं और आधुनिकता की छत्रछाया में खुद को असुरक्षित अनुभव करती हैं………
यह समय है खामोश हो जाने का जबकि सारे लोग एक जैसी भाषा बोलने लगे फिर भी कुछ समझ न आए, तो ऐसे में चेहरे पर आया बस एक भाव चाहे समर्थन का न हो बिना शोर मचाए सबकुछ कह जाए……
इससे पहले कि बाजार से खरीदना पड़े, यही समय है कि हमारे पास जितना प्रेम है उसकी पुड़िया बनाकर लोगों में इस तरह से बाँट दें कि घर के कोने में छुपी नफरत भी इस प्रेम की पुड़िया से अछूती न रह जाए…………..