हम जब किसी के पीछे बाइक या स्कूटर पर बैठते हैं, तो चालक के पीछे बैठकर हम भी मानसिक रूप से उस गाड़ी को चला रहे होते हैं, और कई बार तो इतने सतर्क होते हैं कि गाड़ी के मुड़ने के साथ या किसी और गाड़ी से टक्कर के समय पीछे बैठा व्यक्ति शरीर को उस अनुसार नियंत्रित करता रहता है… अमूमन सबका यही अनुभव होगा….
लेकिन कभी आपने चलती गाड़ी में पीछे बैठकर आँखें बंद करके उस सफ़र का आनंद लिया है? जब हमें पता नहीं होता कि गाड़ी रुकने वाली है या मुड़ने वाली है या किसी को अचानक कट मारकर निकलने वाली है… तो आपका शरीर कैसे प्रतिक्रिया देता है…
मैं स्वामी ध्यान विनय के साथ उनकी बाइक पर पीछे बैठकर अक्सर आँखें बंद कर लेती हूँ… जो मेरा अनुभव है वो हवा में उड़ने जैसा होता है… जहां आप अपने आपको चालक के भरोसे छोड़ देते हैं…. ना शारीरिक रूप से ना मानसिक रूप से, मेरा किसी भी तरह का नियंत्रण नहीं होता…. एक अद्भुत अनुभव….
स्वामी ध्यान विनय के साथ केवल बाइक पर ही नहीं वास्तविक जीवन में भी मैं ये प्रयोग करती रहती हूँ…. वो किसी विशेष भावभूमि पर मुझे सवार करवाते हैं… वो भावभूमि कैसी भी हो सकती है…
साइकिल पर सवार होकर सोने की साइकिल चांदी की सीट नुमा गाना गाते हुए…. बाइक पर सवार होकर धूम मचा ले जैसा… या किसी फाइटर प्लेन में बिठाकर धुंआधार झगड़े के साथ…
पहले मुझे समझ नहीं आता था…. बिलकुल सतर्क होकर बैठ जाती थी… मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से अपना नियंत्रण पूरा अपने हाथ में….
फिर पिछले एक साल की ध्यान प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद धीरे-धीरे ये समझ आया कि ये सारी परिस्थितियाँ मुझे एक विशेष भावभूमि में लाकर कुछ आध्यात्मिक अनुभूतियों के लिए तैयार किया जाता है… क्यों…
बकौल स्वामी ध्यान विनय – जिस कागज़ पर पहले ही कुछ लिखा हो उस पर मैं और कुछ लिख दूं तो आपके लिए वो इतना महत्वपूर्ण नहीं होगा लेकिन यदि कागज़ बिलकुल साफ़ और सफ़ेद झक्क है तो उस पर एक बूँद स्याही भी उभर कर दिखेगी….
तो स्वामी ध्यान विनय ऐसी ही किसी स्थिति में जब किसी सन्देश का छिट्टा मुझ पर डालते हैं तो मैं पूरी की पूरी भीग जाती हूँ….
वैसे तो हमारे बीच ईर्ष्या जैसा शब्द अपना वजूद खो बैठा है लेकिन लगा जैसे ध्यान जानबूझकर ईर्ष्या की एक चिंगारी मेरे मन में डाल रहे हैं और मैं जानते-समझते हुए हमेशा की तरह उसमें खुद को संलिप्त होता देख रही थी…
जैसा कि बीते पिछले एक साल के ध्यान विनय की ध्यान की प्रक्रियाओं में इतना तो समझने ही लगी हूँ… तो मैंने अपनी आँखें बंद कर ली… और उस चिंगारी से गुज़रना स्वीकार किया.. होश पूर्वक… अब?
उन्होंने मेरा एक पसंदीदा गाना बजाना शुरू किया….
शीतल बने आग चंदन के जैसी, राघव कृपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाए रातें, जो थी अमावस अंधेरी
युग युग से प्यासी मरूभूमी ने जैसे सावन का संदेस पाया
जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर की छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला हैं
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम…..
इस गीत के पीछे मेरे बचपन की बहुत लम्बी यात्रा जुड़ी है… इसलिए उस चिंगारी ने मुझे पूरी तरह अपनी आगोश में ले लिया था…
कागज़ पूरी तरह से साफ़ और सफ़ेद झक्क था… तब उन्होंने उस सन्देश का छिट्टा मुझ पर डाला जिसके लिए ये भावभूमि तैयार की गयी थी..
सत्यम शिवम् सुन्दरम फिल्म से हमारा आपका सबसे पसंदीदा गीत….
“सत्य बीज है, अंकुर है शिव, सुन्दर फूल हज़ारा”
बस एक लाइन बजाकर गाना बंद….
पूछने लगे ये “फूल हज़ारा” का क्या मतलब है”
मैं मंद बुद्धि … जैसा बचपन से सुनती आई थी गाना वैसा ही अर्थ बता दिया… जैसे हज़ारों फूल खिले हो वैसा सुन्दर…”
हंसने लगे… कहने लगे जब गीत समझ नहीं आया तो पसंद क्या आता है उसमें आपको….
गाने का मीटर ठीक से बिठाने के लिए इसे इस तरह गाया गया है जैसे आज तक आपने और अन्य सभी ने उसे इसी तरह समझा…
“सत्य बीज है,
अंकुर है शिव,
सुन्दर फूल हज़ारा”
वास्तव में ये कुछ यूं है-
सत्य बीज है अंकुर है….
शिव…. सुन्दर फूल हज़ारा ….
सत्य बीज रूप में हमारे अन्दर सबसे नीचे हैं… आध्यात्मिक यात्राओं से गुज़रकर जब मस्तिष्क में उपस्थित चक्र जाग्रत होता है तो उसे सहस्रार कहते हैं… आपकी भाषा में हज़ारा….
योगियों ने बताया है कि जब सहस्रार चक्र जाग्रत होता है तो वो हज़ार पंखुड़ियों वाले कमल की तरह होता है जो मस्तिष्क के ऊपर उल्टा अनुभव होता है. साधक अपनी साधना की शुरुआत मूलाधार चक्र (सत्य का अंकुरित बीज) से करके सहस्त्रार चक्र (शिव सुन्दर फूल हज़ारा) में पूर्णता प्राप्त करता है.
इस गीत की अगली पंक्ति उन्होंने बजाना शुरू की….
“दया करो प्रभु हो न कलंकित ये वरदान तुम्हारा”
किस वरदान की बात कर रहे हैं पंडित नरेन्द्र शर्मा…. इस गीत के गीतकार?
ये कलंक वो नहीं है जिसे आम सामाजिक मान्यताओं वाले देह से जोड़ लेते हैं…. सत्य का उस कलंक से क्या लेना देना… वो तो क्रीडाएं हैं… चलती रहेगी… लेकिन… जिस वरदान के साथ मनुष्य जन्म लेता है… सत्य के बीज का अंकुर खिलाये हुए भी जो हज़ार पंखुड़ियों वाले उस कमल को खिलाये बिना ही इस जगत से कूच कर जाता है… तो वो इसे कलंकित करता है….
आये हो तो फूल खिलाकर ही जाना….. आप भी तो यही कहती हैं ना… अक्सर अपने श्री एम से “अब की बार” ले चल पार….
मैं जानती हूँ मेरे लिखे हुए में वो बात आ ही नहीं सकती जो आपको उस दरिया में अपने साथ बहा ले जाए जो स्वामी ध्यान विनय के प्रवचन से उत्पन्न होती है और मैं पूरा की पूरा आंसुओं का समंदर हो जाती हूँ….
कहने लगे, आँखों से आंसुओं का समंदर बह निकला है मतलब अब भी कमल के फूल के खिलने की संभावना बाकी है आप में….
एक बार फिर सुनो इस गीत को जिसे वही लिख सकता है जिसने इस अनुभव की झलक पाई हो… या इस बारे में इतना पढ़ा और जाना हो… साथ में यदि लक्ष्मी-प्यारे का संगीत न होता…. लता की आवाज़ न होती तो वो बात पैदा हो ही नहीं सकती थी जो इस गीत ने पैदा की है…
ये एक आध्यात्मिक गीत है… जिसे राज कपूर ही समझ सकते थे और सबके साथ मिलकर बनवा सकते थे… और लता जी का इसमें आलाप … आलाप नहीं करुण आर्तनाद है… जिसने भी सिर्फ सुना नहीं, अनुभव किया हो उसके ह्रदय का रुदन मेरी तरह हर बार फूटकर आँखों से बह निकलेगा…
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और गाना शुरू होता है….
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सत्य बीज है अंकुर है…
शिव… सुन्दर फूल हज़ारा
दया करो प्रभु हो न कलंकित ये वरदान तुम्हारा
राधा मोहन शरणम….
सत्यम शिवम् सुन्दरम…..
- माँ जीवन शैफाली
- चित्र साभार – मनीषा राजू
आप भी एक बार अवश्य सुनें….