वो 1940 का दशक था जब दुनिया के कई खोजी ‘द लॉस्ट सिटी ऑफ़ मंकी गॉड’ की तलाश में जंगलों की ख़ाक छान रहे थे. एक ऐसा प्राचीन शहर जो जंगलों के भीतर बसा हुआ था और यहाँ के निवासी मंकी गॉड की पूजा करते थे.
खोजियों के लिए यहाँ बने कलात्मक मंदिर और पिरामिड किसी खजाने से कम नहीं थे. खोजियों ने ये भी सुना था कि इस शहर में कहीं बहुत मूल्यवान खजाना दबा पड़ा है.
हालांकि इस शहर को अटलांटिस की तरह कपोल कल्पना कहकर खारिज कर दिया जाता था. 1940 में एक धनिक जॉर्ज गुस्तेव ने इस रहस्यमयी शहर को तलाशने के लिए एक खोजी थियोडोर मॉर्डे को नियुक्त किया.
माना जाता था कि ये शहर मध्य अमेरिका के हौण्डुरस देश में किसी जंगल में छुपा हुआ है. थियोडोर अपने एक साथी को लेकर हौण्डुरस के भयावह जंगलों में चार महीनों के लिए गुम हो गए. चार महीने बाद थियोडोर लौटे तो उन्होंने घोषणा कर दी कि द लॉस्ट सिटी को वे खोज चुके हैं.
उन्होंने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि उन्होंने उस शहर में कलात्मक मूर्तियां, सोने-चांदी की वस्तुएं और सबसे इंट्रेस्टिंग एक हनुमान की बड़ी सी मूर्ति, जिसमें वे अपने हदय में राम-सीता को छुपाये हुए हैं, देखी है.
हालांकि थियोडोर उस ख़ज़ाने को लाने के लिए वापस हौण्डुरस नहीं जा सके. उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल होने के बाद आत्महत्या कर ली. रहस्य फिर रहस्य ही रह गया और अगले कई साल के लिए हौण्डुरस के उन पिरामिड पर जंगलों की काई और बढ़ने जा रही थी.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आई विश्वव्यापी मंदी के चलते खोज अभियानों के लिए पैसा जुटाना मुश्किल हो गया था, खोजी हनुमान भक्तों की नगरी खोजना चाहते थे लेकिन पैसे की तंगी के चलते मजबूर थे.
साल 2015. इसी साल मार्च में सेटेलाइट की मदद से हौण्डुरस के जंगलों को देख रहे एक भूगोलवेत्ता ( geographer) की निगाह ऐसी संरचनाओं पर गई, जो मानव निर्मित नज़र आ रही थी. और ज्यादा नजदीक से जांचने पर मालूम हुआ कि यहाँ कई मंदिरनुमा और पिरामिडिय आकार की संरचनाये है.
हनुमान नगरी शायद खुद हज़ारों साल का मौन तोड़ना चाहती थी. आखिरकार ‘द लॉस्ट सिटी ऑफ़ मंकी गॉड’ की खोज फिर अत्याधुनिक उपकरणों की मदद से शुरू हुई. नेशनल जिओग्राफ़िक के साथ मिलकर पुराविदों की एक टीम हेलीकॉप्टर की मदद से इस बेहद खतरनाक जंगल में उतरती है और हनुमान भक्तों की प्राचीन नगरी को देख आल्हादित हो जाती है. पिछले दिनों ये डिस्कवरी टीवी पर भी दिखाई गई थी. अब जान लें कि वे हनुमान भक्त कौन थे.
‘वे थे ओल्मेक लोग. ओल्मेक के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने ही रबर का आविष्कार किया. यहाँ मिली मूर्तियों और पिरामिड में रबर का प्रयोग होने की पुष्टि हुई है. एक अनुमान के मुताबिक ओल्मेक सभ्यता यहाँ 1000 से 1400 ईस्वी के बीच निवास करती थी.
ये लोग पढ़ना लिखना जानते थे और अव्वल दर्जे के मूर्तिकार थे. उसके बाद एक दिन सब अचानक गायब हो गए और ये शहर जंगल में खोता चला गया. इसी साल हौण्डुरस के राष्ट्रपति ने इस शहर को जल्द ही दुनिया के सामने लाने की घोषणा की है.
ये भी एक रहस्य है कि ओल्मेक लोगों का हनुमान से क्या नाता था. क्या वो भारत से संपर्क में थे या यहीं से निकली कोई बुद्धिमान सभ्यता. दुनिया आज भी रहस्यों से भरी हुई है, अब भी बहुत कुछ खोजा जाना बाकी है, अब भी इतिहास के बारे में हम अज्ञानी हैं.