श्री एम अपनी हिमालय यात्रा के दौरान जब अपने गुरु बाबाजी से उपनिषद का ज्ञान लेते हैं तो बाबाजी जो सबसे पहली बात श्री एम को कहते हैं वो यही है कि-
“तुम्हें संस्कृत सीखनी होगी जिससे कि तुम मूल समझ सको, संस्कृत की उपेक्षा इस देश में ज्ञान की महती अनभिज्ञता का कारण है. मूल न जानने के कारण लोग निष्ठाहीन अनुवादकों और व्याख्याकारों के बहकावे में आ जाते हैं जो अक्सर शास्त्रों को तोड़-मरोड़ कर अपने मतान्ध विचारों के अनुकूल बनाकर प्रस्तुत करते हैं.”
बाबाजी श्री एम को उपनिषद का अर्थ बताते हुए कहते हैं-
“तो अब, जब मैं कहता हूँ “उपनिषद”, तो मेरा मतलब सबसे पुराने ग्यारह मुख्य उपनिषदों से हैं- ईशावास्य, केन, छान्दोग्य, बृहदारण्यक, मुण्डक, माण्डूक्य, कठ, प्रश्न, श्वेताश्वतर, ऐत्रेय और तैत्तिरीय. बाद के अनेक उपनिषद अपने मूल रूप में नहीं पाए जाते और कुछ तो किसी सम्प्रदाय विशेष के विचारों को सहारा देने के लिए गढ़ लिए गए हैं. हम उन्हें छोड़ देंगे.
“उपनिषद” शब्द “उप” धातु से उपजा है जिसका अर्थ होता है पास, निकट. इसका आशय यह है कि उपनिषद उन लोगों द्वारा समझा जा सकता है जो गुरु के निकट बैठते हैं या जो एक बहुआयामी सत्य को समझने की प्रक्रिया में गुरु के साथ घनिष्ठता से जुड़े होते हैं. यह समय एक ऐसा अनुभव है जो शब्दों से व्यंजित नहीं किया जा सकता. इसका वर्णन मस्तिष्क की समझ में आ जाने के रूप में नहीं किया जा सकता क्योंकि मस्तिष्क तो सीमित आयाम में काम करता है.”
मैं नहीं जानती बाबाजी श्री एम को जिन ग्यारह उपनिषद के अध्ययन के प्रस्तावना में जो कह रहे हैं उनमें क्या लिखा है. जो एक बात जो मुझ तक पहुँचती है वो सिर्फ यही है कि “जो एक बहुआयामी सत्य को समझने की प्रक्रिया में गुरु के साथ घनिष्ठता से जुड़े होते हैं, उपनिषद उन लोगों द्वारा समझा जा सकता है”
दो बातों का उल्लेख यहाँ करना चाहूंगी, पहली, यह कि बाबाजी ने श्री एम को जितना भी अध्ययन करवाया वो बिना किसी ग्रन्थ के करवाया है, क्योंकि उन्हें कुछ भी पढ़ना नहीं पड़ता था या उन्हें सबकुछ याद भी नहीं था… शिक्षा दीक्षा के दौरान उपनिषद या धर्मग्रंथों की बातें उन पर अवतरित होती थी.
दूसरी बात, एक अंग्रेज महिला से बात करने का मौका आया तो बाबाजी उसी के एक्सेंट में फर्राटेदार अंग्रेजी में उससे बात करते हैं, ये किस्सा सुनाते हुए श्री एम खुद भी अचंभित होते हैं क्योंकि बाबाजी वास्तव में अंग्रेजी नहीं जानते थे.
जब हम शिष्य होते हैं तब ये सब बातें हमारे लिए चमत्कार की तरह होती हैं… श्री एम आज की तारीख में भले इन चमत्कारों पर अचंभित न होते हों, लेकिन मुझे तो अब भी यह सब “जादू” के समान ही प्रतीत होता है.
हालांकि स्वामी ध्यान विनय अक्सर कहते हैं, इस प्रकृति में जो कुछ भी घटित होता है वो प्रकृति के नियमों के अंतर्गत ही होता है, चूंकि हम पहली बार देख रहे होते हैं इसलिए ये हमें यानी आपको “जादू” की तरह प्रतीत होता है.
मैं तो तब भी अचंभित होती हूँ जब ध्यान विनय कहते हैं मैंने तो पिछले कुछ तीन-चार सौ वर्षों में आपके आने के बाद सच में जादू होते देखा है. आपका परमात्मा पर विश्वास कभी कभी प्रकृति के नियम को भी बदल देता है.
स्वामी ध्यान विनय की बातों की पुष्टि करती हुई बात स्वयं बाबाजी के शब्दों में मैंने श्री एम् की किताब में पढ़ी – “सामान्य आदमी जिसे चमत्कार कहता है, वे वास्तव में प्रकृति के नियमों के अनुसार ही घटते हैं, ऐसे नियम जिन्हें वह अब तक समझ नहीं सका है या अब तक जिनकी जानकारी उसे नहीं है. योगी, जो इन नियमों को जानता है, यह भी जानता है कि उनसे कैसे काम लिया जाए.
Great