दौड़ा के मारने का मज़ा ही अलग है, तैयार रखिए डंडा

उदयन में जो मुसहर बच्चे पढ़ते हैं वो तो अभी बहुत छोटे हैं, पर उनके समुदाय के बड़े लोगों को मैंने गेहूं की फसल कटने के बाद खाली पड़े खेतों में चूहे पकड़ते मारते देखा है.

चूहा एक सामाजिक प्राणी होता है. इनका एक पूरा समुदाय होता है और ये भी मधु मक्खियों की तरह एक पूर्णतया विकसित समाज में रहते हैं जिसमे अस्तित्व रक्षा (survival) का मूल मन्त्र परस्पर सहयोग होता है.

सब चूहे मिल के जमीन के नीचे एक कॉलोनी बनाते हैं. उसमें बाकायदा घर बने होते हैं. माँ और बच्चों के कक्ष अलग होते हैं.

एक अन्नागार होता है जहां एक जगह 5 से 10 kg तक गेहूं तक एकत्र कर लेते हैं चूहे. कॉलोनी में घुसने और निकलने के बीसियों रास्ते होते हैं.

मुसहर समुदाय इन चूहों को पकड़ने मारने में बड़ा माहिर होता है.

सबसे पहले कोई सयाना आदमी चूहों के बिल देख के अनुमान लगाता है कि कितनी बड़ी कॉलोनी है, कितने चूहे होंगे और इस कॉलोनी में कितना अनाज मिलेगा.

उसके बाद कवायद शुरू होती है बिल खोज खोज के उनका मुंह बंद करने की. कोई पुराना कपड़ा या सनई ठूंस के बिल का मुंह बंद कर देते हैं.

फिर किसी एक बिल में बाल्टियों से पानी भरना शुरू करते हैं. इसे आप flooding method कह सकते हैं. चूहे जब डूबने लगते हैं तो बिलों से निकल के बाहर भागते हैं.

अब शिकारी का कौशल ये कि सभी बिल खोज के निकल भागने के सारे रास्ते बंद कर दे और सिर्फ दो बिल खुले छोड़े. एक पानी भरने को और दूसरा निकल के भागने का रास्ता.

बस उसी बिल के पास सब मुसहर पतली पतली डंडियाँ ले के खड़े रहते है. चूहा निकला और य्य्य्ये मारा….

एक आध चूहा निकल के भाग लेता है…. उसे दो तीन लड़के दौड़ा के, घेर के, मार लेते हैं. दौड़ा के मारने का मज़ा अलग ही आता है.

उसके बाद कवायद शुरू होती है उन बिलों को खोदने की. मुसहर समुदाय एक कॉलोनी से 10-20 किलो तक गेहूं एकत्र कर लेता हैं.

इसके अलावा अगर ठीक ठाक कॉलोनी हो तो 15-20 तक चूहे मार लेते हैं जिनमें कई चूहे तो आधा-आधा किलो तक के होते हैं.

जी हाँ…. चूहों के शिकार में छोटी चुहिया पर फोकस नहीं होता. वो तो यूँ ही हल्ले गुल्ले में और पानी में डूब के या फिर खुदाई में मर जाती हैं. शिकारी की निगाह मोटे ताजे चूहे जिन्हें ‘घूस’ कहा जाता है, उन पर होती है.

ऐसे खेत जहां पानी दूर हो वहाँ मुसहर एक अलग तकनीक इस्तेमाल करते हैं जिसे आप स्मोकिंग कह सकते हैं.

किसी एक बिल के पास आग जला के पूरी कॉलोनी को धुएँ से भर देते हैं. चूहे धुंए के कारण दम घुटने के कारण बाहर भागते हैं और मारे जाते है.

Flooding method में अनाज भीग जाता है जिसे फिर बाद में धो के सुखाना पड़ता है. स्मोकिंग में अनाज सूखा और सुरक्षित निकल आता है.

मोदी भी यूँ समझ लीजे कि मुसहर बने चूहे ही मार रहे हैं. उनका फोकस भी मोटे चूहों पर ही है.

ये जो लाख-दो लाख या फिर 10-20-50 लाख या 2-4 करोड़ हेराफेरी करके या लोगों को बैंक की लाइन में खड़ा करके नोट बदलवा रहे हैं या वो जो बैंक मैनेजर से मिली भगत कर 2-4 करोड़ काले को सफ़ेद कर रहे हैं, ये तो छोटी चुहिया हैं.

असली शिकार तो मोटे चूहों का होगा. उनको दौड़ा के मारने में मज़ा आयेगा.

ये जो सरकार रोज़-रोज़ नियम बदल रही है न…. ये तो चूहे-बिल्ली का खेल है…. सरकार खोज-खोज के बिल बंद कर रही है…. कहाँ से भागोगे बेटा???

30 दिसंबर के बाद देखना…. जब तहखानों से 50-100 करोड़ और 1000 करोड़ या 5-10 हज़ार करोड़ वाले चूहे निकलेंगे….

डंडा ले के तैयार रहिये.

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