आज तक भारतीय राजनीति में क़र्ज़ माफ़ी, दो रूपए किलो गेहूं चावल और सस्ती सब्सिडी वाली बिजली और पानी…. इन्हें लोक लुभावन वादे और लोक लुभावन राजनीति कहा जाता था.
इसी लोक लुभावन राजनीति के तहत यूपीए के शासनकाल में लगातार 3 रेल मंत्रियों ने रेल का किराया नहीं बढ़ाया. नतीजा ये हुआ कि रेल जर्जर हो गयी.
अब मोदी जी ने लोक लुभावन राजनीति के मायने बदल दिए हैं.
Namo App पर जो सर्वे चल रहा है, उसमें कल शाम तक 5 लाख से ज़्यादा लोगों ने भाग लिया और 90% तक लोगों ने नोट बंदी के फैसले का समर्थन किया है.
मोदी जी ने 500 और 1000 का नोट बंद कर एक लोक लुभावन फैसला लिया है.
देश की जनता बेशक बैंकों और एटीएम के सामने लाइन में खड़ी है, इसके बावजूद फैसले से खुश है…. फैसला लोक लुभावन है.
सवाल उठता है कि आज से पहले कोई प्रधानमंत्री इतना साहसी, इतना क्रांतिकारी, इतना जोखिम भरा, पर इसके बावजूद इतना लोक लुभावन फैसला क्यों नहीं ले पाया.
नेहरू और उनकी बेटी इंदिरा ने लंबे समय तक शासन किया और इसी काल में देश में भ्रष्टाचार खूब पला-बढ़ा. शास्त्री जी को मौक़ा ही नहीं मिला.
मोरारजी भाई ने कोशिश की पर उनकी सरकार ही खिचड़ी थी. उसमें खुद इतना विरोधाभास था कि कुछ कर नहीं पाए.
राजीव गांधी के साथ कुछ तो गड़बड़ थी वरना जिस प्रचंड बहुमत से वो जीत के आये थे, उसमें चाहते तो कुछ भी कर जाते.
वीपी सिंह दूसरे केजरीवाल निकले. ईमानदारी का लबादा ओढ़ के राजनीति में आये थे पर वैचारिक रूप से भारतीय राजनीति के सबसे भ्रष्ट नेता हुए. इसके अलावा उनकी भी सरकार लंगड़ी थी.
देवगौड़ा और गुजराल से कोई उम्मीद ही न थी.
अटल जी कुछ कर सकते थे पर वो ममता-समता-जयललिता की मान मनुहार में ही अपना पूरा कार्यकाल व्यस्त रहे…. 23 दलों की खिचड़ी सरकार में करते भी क्या?
मनमोहन सिंह कर सकते थे क्योंकि वो तथाकथित रूप से बेहद ईमानदार कहे जाते थे, पर उनके जैसा सत्ता लोलुप आदमी तो भारत के इतिहास में न हुआ.
पूरे 10 साल ये आदमी सोनिया गाँधी और उनके नाकाम बेटे की पालकी ढोता रहा, उनकी कठपुतली बना रहा और उस एक परिवार का हित साधन करता रहा.
देश का सौभाग्य है कि उसे मोदी जी जैसा सशक्त और दबंग प्रधानमंत्री मिला.
देश का सौभाग्य है कि उसके प्रधानमंत्री को न अपने परिवार का हित देखना है और न पार्टी का…. वो सिर्फ और सिर्फ देश हित ही देखता सोचता है.
देश का सौभाग्य है कि उसे झोला छाप प्रधानमंत्री मिला. वो जिसकी कुल घर गृहस्थी और जमा पूँजी एक झोला है जिसमें दो जोड़ी कपड़े हैं….
देश का सौभाग्य है कि उसका प्रधानमंत्री एक ऐसा आदमी है जिसकी कुल जमा पूँजी एक लुंगी है और एक लंगोट….
जिसके पास है ही एक लुंगी और एक लंगोट, उसका कोई क्या छीन लेगा? उसके पास है क्या जिसकी उसे चिंता करनी है?
मोदी के पास अपने देश और अपनी अवाम के अलावा कुछ नहीं. शायद इसी लिए वो इतने साहसिक और इतने लोक लुभावन फैसले ले पा रहे हैं.