नई दिल्ली. भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टीवल 2016 में उत्पल बोरपुजारी की डॉक्यूमेंट्री ‘मेमोरीज़ ऑफ ए फॉरगॉटेन वॉर’ (एक भुला दिए गए युद्ध की यादें) प्रदर्शित की गई.
ये पूर्वोत्तर में 1944 में हुई निर्णायक जंगों की कहानी बयां करती है. 109 मिनट की ये डॉक्यूमेंट्री इस युद्ध के लड़ाकों की बहादुरी और इस दौरान वहां मौजूद स्थानीय नागरिकों की कहानी पर आधारित है.
बोरपुजारी के मुताबिक, इस फिल्म की कहानी, सेना पर आधारित ना होकर वहां मौजूद लोगों पर आधारित है जिनका जीवन इस युद्ध से प्रभावित हुआ. इस फिल्म का निर्माण रक्षा विशेषज्ञ सुबिमल भट्टाचार्या ने किया है.
मेमोरीज़ ऑफ ए फॉरगॉटेन वॉर की कहानी उस समय की है जब जापान की फौज बर्मा की ओर से अंग्रेज हुकुमत की ओर बढ़ रही थी.
कोहिमा और इंफाल की लड़ाई में हालांकि मित्र राष्ट्रों की सेना ने उन्हें पीछे धकेल दिया. इस युद्ध में दोनों तरफ के सैनिकों को मिलाकर 1.60 लाख जानें गईं.
उस युद्ध की यादें अभी भी मणिपुर और नागालैंड की पहाड़ियों में बिखरी पड़ी हैं. उस इलाके को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है जहां मोर्टार, बंदूकें, एयरक्राफ्ट के पूर्जे इत्यादि आज भी रखे हुए हैं.
बोरपुजारी ने उस युद्ध को नजदीक से देखने वाले स्थानीय लोगों से बात की जो कि अब 90 साल से भी ज्यादा उम्र के हो चुके हैं और इंग्लैंड और जापान में रह रहे हैं.
इस बातचीत में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय आर्मी जो कि जापान की तरफ से लड़ रही थी, उनके योगदान को लेकर भी बातें हुई.
बोरपुजारी के मुताबिक एक तरफ जहां जापानी लोग हैं जो कि टोक्यो के रुंकोजी मंदिर में नेताजी की पूजा करते हैं.
वहीं दूसरी तरफ ब्रिटिश सैनिकों का कहना है कि भारतीय राष्ट्रीय आर्मी का अपनी ही फौज से लड़ना बेहद दुखद था.
ये फिल्म साक्षात्कार आधारित है जिसमें लोगों के अपने अनुभव को कहानी के रूप में पिरोया गया है.
युद्ध में शामिल रहे जापानी सैनिकों को भी फिल्म में काफी बेहतर ढंग से दिखाया गया है.