नोटबंदी के बहाने : मेरे पास माँ है

demonetization-and-mother

अपने पुराने से पड़ते जा रहे घर में वो घंटो अकेली जाने क्या क्या सोच लेती थी…. कभी अतीत की यादें….. कभी असुरक्षित भविष्य और एकदम अकेला वर्तमान…. पति इस दुनिया से कब के निर्वाण कर गये थे…

बेटा है ना जाने शहर में क्या करता है…. बहुत व्यस्त हूं माँ, कह कह के बस कुछ पैसे भिजवा देता हैं… बहू है बच्चे हैं… पर इस बुढ़िया के पास कौन आता है……
अब तो ऐसा लगता है कि सांस ही निकल जाए तो राहत हो….

कभी कभी उसे इस बात को सोचकर भी परेशानी होती कि उसके पास भी कुछ रूपया पैसा होता था शायद बेटा बहू लालच से ही सही आते तो….
बस इन्ही सोचों से अक्सर दो चार होती और सो जाती..

पर ये क्या आज की नींद तो गाड़ी की आवाज से खुली…. कौन आया होगा इतनी सुबह??
तभी बाहर से बच्चो के चिल्लाने की आवाज आई दादी…. दादी…

उसका रोम रोम खिल गया बेटा बहू दोनों को देखकर…. बेटा तू…

हाँ माँ…. आज हम तुम्हारे साथ रहेंगें…… चलो जल्दी तैयार हो जाओ… बैंक जाना है…

पर क्यूं बेटा???

कुछ नहीं आपके खाते में कुछ रुपये जमा कराने हैं…

पर मुझे क्या जरूरत है पैसो की….. खर्च के लायक तो तू दे ही देता है….

नही माँ….. फिर धीरे धीरे निकाल कर मुझे ही दे देना…

पर बेटा मैं कहाँ बैंक के चक्कर काटूंगी…. तू अपने ही पास रख ना…..

नहीं माँ जमा तो कराने ही है और तू चिंता मत कर निकलवाने भी मैं ही आ जाऊंगा….

माँ समझ नहीं पा रही थी इस बदलाव की वजह… बस उसे तो दिखायी दे रहा था कुछ दिनों का बेटे का साथ…..

बैंक के खाते का क्या है वो तो पहले भी खाली था फिर से हो जायेगा तो क्या……. माँ ने एक गहरी सांस लेके कहा… चल बेटा……

– सोनू लाम्बा

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