जब आप गूगल पर जाकर who discovered India लिखेंगे तो फौरन ही एक नाम आएगा ‘वास्को डि गामा’. यानी कि इन्होंने ही विश्व का सातवें सबसे बड़े देश भारत की खोज की थी या पता लगाया था.
खोजें तो बहुत हुई हैं, पर यह खोज अन्य खोजों से बिल्कुल अलग थी, जैसे…
अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने पेनिसिलीन की खोज की, न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की खोज की, जे सी बोस ने पौधों में जीवन की खोज की या फिर रिलायंस ने कृष्णा-गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस की खोज की, आदि-आदि… परंतु खोज तो खोज होती है.
लेकिन भारत के लोग एहसान फरामोश निकले क्योंकि वास्को डि गामा जी को उतना मान सम्मान नहीं मिला जितना कि मिलना चाहिए था…
आखिर उन्होंने हमारे देश की खोज करके हमें ही तो सौंपा था. आप अनुमान लगाएं कि यदि ये महाशय नहीं ढूँढते तो हम और आप आज कहाँ होते?
उनका स्थान बस प्रतियोगी परीक्षाओं के क्वेश्चन पेपर तक सीमित रह गया. पर हाँ, यदि आपने इनकी जगह किसी और महाशय का नाम लिखा तो आपके नंबर कट जाएँगे.
उपरोक्त बातें लिख कर मैं अपनी शिक्षा व्यवस्था पर या विदेशियों के पिछलग्गू होने जैसे विषय उठाना नहीं चाहता क्योंकि विषयांतर हो जाएगा.
आगे मैं जिनके बारे में बताने जा रहा हूँ वो महानता में वास्को डि गामा जी से कतई कम नहीं थे. उन्होंने भारत में ही रह कर भारत की खोज कर डाली. ये थे जवाहरलाल नेहरू.
नेहरू जी इतिहास के छात्र नहीं थे परंतु इन्होंने Glimpses of the world history नामक एक मोटी पुस्तक लिख डाली. मोटी इतनी, कि इसे दो वॉल्यूम में प्रकाशित किया गया था.
फिलहाल इस पुस्तक को छोड़ते हैं क्योंकि काफी लोगों ने इसे नहीं पढ़ा होगा. पर नेहरू जी ने अहमदनगर जेल में कारावास के दौरान मात्र छः महीने में यानी अप्रैल से सितंबर के दौरान एक बहुत ही जबर्दस्त, क्लासिकल पुस्तक जिसका आज भी कोई सानी नहीं है, लिख डाली जिसका नाम था ‘The Discovery of India’.
यह पुस्तक काफी लोगों ने पढ़ी भी होगी या कम से कम इसके बारे में जानते होंगे. इसे कई भाषाओं में अनुवादित किया गया, हिन्दी में यह ‘भारत की खोज’ नाम से है.
मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल ने दूरदर्शन के लिए इस पुस्तक पर आधारित एक धारावाहिक भी बनाया था, जिसका नाम ‘भारत एक खोज’ था.
अगर कोई नेहरू जी के व्यक्तित्व या कृतित्व के बारे में जानता होगा तो उसे संशय अवश्य होगा कि जिस विद्वतापूर्वक इस पुस्तक को लिखा गया है, क्या उसके लेखक नेहरू जी ही थे? यदि नहीं, तो इसका वास्तविक रचनाकार कौन था?
इस पुस्तक की शुरुआत ‘नारदीय सूत्र’ से होती है जो पुरुष उपनिषद का सबसे जटिल हिस्सा है. इसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति बताई गई है.
उसके बाद सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर पौराणिक काल, हर्षवर्द्धन, गुप्त काल, मौर्य वंश, चौहान, गुलाम वंश, मुगल, अँगरेज, मराठों से लेकर भारत की आजादी तक का इतिहास है.
चंद्र गुप्त और चाणक्य के बीच के राजनीतिक, कूटनीतिक, सामरिक एवं आर्थिक संवाद को तो बहुत ही सुंदर तरीके से कई कड़ियों में विस्तारपूर्वक दिखाया गया था.
इस पुस्तक का लेखक देश के इतिहास, भूगोल, राजनीति, कूटनीति एवं अर्थशास्त्र का प्रकांड विद्वान जान पड़ता है.
परंतु क्या नेहरू को जानने वाले लोग इस बात को मानेंगे कि इनकी विद्वता इनके जीवन में कहीं भी परिलक्षित हुई है?
आप नेहरू जी के बचपन से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक के सफर पर नजर डालें तो आपको कहीं नहीं मिलता है कि इन्होंने कभी भी इतना गहन अध्ययन किया होगा.
पंद्रह साल में इंग्लैंड गए, नेचूरल साइंस से ग्रेजुएट हुए, मशहूर वकील मोतीलाल नेहरू के इकलौते वारिस, सिगरेट पीना सीखकर भारत आए.
पेरिस के धुले कपड़े भारत में पहने, राजनीति में आए, गाँधी से मिले, तीस साल की उम्र में होमरूल के सचिव बने, बत्तीस साल में किसान मार्च निकालने लगे.
असहयोग आंदोलन किए, दो बार जेल गए, यूरोपीय देशों की यात्रा की, साईमन कमीशन का विरोध किया, गिरफ्तार हुए, मास्को भी गए.
लाहौर अधिवेशन में अध्यक्ष बने, नमक सत्याग्रह, द्वितीय विश्व युद्ध, भारत छोड़ो आंदोलन, फिर गिरफ्तारी.
वकालत भी की, पाकिस्तान बनाने की तैयारी, फिर प्रधानमंत्री बने, और उसके बाद तो प्रधानमंत्री ही रहे.
आखिर उन्होंने विश्व को कब जाना? विश्व को छोड़ दीजिए भारत को कितना जाना? आपने उनकी विद्वता कब देखी?
कश्मीर में यदि युद्ध विराम नहीं हुआ होता और हमारी सेना आगे बढ़ती तो पाक-चीन को जोड़ने वाली पट्टी आज नहीं होती.
भारत की सीमा अफगानिस्तान और रूस से मिल रही होती, उन देशों से हमारा सीधा संबंध रहता. यानी कि इनको देश के भूगोल के बारे में भी पता नहीं था.
चीन और भारत के बीच में तिब्बत एक बफर स्टेट था, जो सामरिक एवं सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण था.
नेहरू जी ने तिब्बत को थाली में लेकर चीन को परोस दिया. यानी कि यहाँ भी बौद्धिक दिवालियापन दिखाया.
भारत को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थाई सीट मिल रही थी, जिसे इन्होंने अपने बड़े भाई चीन को दे दिया, जबकि अमेरिका और इंग्लैंड, चीन के विरोध में थे.
यानी कि कूटनीति में भी विफल. और उनके इस फैसले का दुष्परिणाम यह कि भारत आज तक सुरक्षा परिषद में शामिल होने के प्रयास कर रहा है.
अब आप ही बताइए जो व्यक्ति इतना विद्वान था, जिसने अपनी पुस्तक में इतना कुछ लिख डाला, वह हर जगह फेल क्यों हुआ?
क्या नेहरू जी पर यकीन किया जा सकता है कि उन्होंने ही पुस्तक लिखी है?
पहले के राजा-महाराजा अपनी जीवनी या बहादुरी के किस्से लिखवाने के लिए अपने दरबार में भाँड रखते थे.
कपिल देव, सायना, सचिन ने भी किताबें लिखी हैं, भले ही वे मैट्रिक पास भी ना हों. लोग दूसरों से थीसिस लिखवा कर पीएचडी कर जाते हैं. किसी और के नाम पर परीक्षा देकर लोग डॉक्टर बन जाते हैं.
अब मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा… आप इतने समझदार तो है ही. यदि आपने ‘भारत एक खोज’ सीरियल देखा हैं, तो रोजाना बजने वाले गीत का आनंद लीजिए.
‘सृष्टि से पहले सत् नहीं था
असत् भी नहीं था
अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहाँ किसने ढका था,
उस पल तो अगम अतल
जल भी कहाँ था.’
(ऋग्वेद : दशम मंडल, सूक्त 121-7)