आप वजन कम करना चाह रहे हो और कोई कहे कि चावल खाओ… आप या तो उसको मूर्ख समझेंगे या अपना दुश्मन…. है न?
पर ये सच है, चावल खा कर भी वजन कम किया जा सकता है. हाँ, वो चावल थोड़ा अलग है उस चावल से, जो हमारे घरों में बनता है.
ब्राउन राइस का नाम तो सुना ही होगा?
नॉन बासमती ब्रॉउन राइस का ग्लाइसीमिक इंडेक्स (जीआई) कम होता है.
जी आई एक माप है जो भोजन के ग्लूकोज़ बनने और रक्त में उसके स्तर को बढ़ाने की गतिविधि की स्पीड को बताता है.
जिस कार्बोहाइड्रेट का जी आई कम होता है वो पाचन तंत्र में धीरे-धीरे टूटता है जिससे पेट देर तक भरा हुआ महसूस होता है.
सफेद चावल और ब्राउन राइस में अंतर सिर्फ छिलके का है… सफ़ेद चावल साफ-सुथरा नहाया धोया चावल है तो ब्राउन राइस पुराने ज़माने का गंवार देहाती, जिसको साबुन ही नहीं मिलता है नहाने के लिए.
देखने में चाहे कितना भी बदसूरत हो, पर है गुणों की खान. दूसरी तरफ सफ़ेद चावल की सिर्फ सूरत ही अच्छी है, गुणवत्ता के मामले में खजाना खाली ही है क्योंकि सुन्दर बनने के चक्कर में सारा पोषक तत्व हट जाता है.
जबकि ब्राउन राइस में विटामिन, खनिज तो होते ही हैं, फाइटो केमिकल एवं एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर पोषक तत्व भी होते हैं. इसमें विटामिन-ई, सिलेनियम और मैगनीज भी होता है.
एंटीऑक्सीडेंट तनाव और रोगों से बचाता है तो फाइबर डायबिटीज़, मोटापा और दिल से जुड़ी बीमारियों को दूर रखने में सहायक होता है.
हड्डियों में मैग्नीशियम की कमी भी पूरी होती है, पाचन सम्बंधित समस्याएँ भी कम हो जाती है.
ब्राउन राइस का स्वाद अच्छा नहीं होता है और बनने में समय भी ज्यादा लगता है, इसलिए भी लोग इसको कम पसंद करते हैं.
लेकिन इसके सेवन से वजन बढ़ना कम होता है और मोटापा ना हो तो जीवनशैली के कारण होने वाली बीमारियों का खतरा भी कम होता है.
इसलिए स्वाद को नज़रअंदाज़ कर दें तो स्वास्थ्य के लिए ब्राउन राइस खाया जाना चाहिए.
इसमें फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है जो जल्दी भूख नहीं लगने देता है और कम जी आई रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम रखता है जिससे रक्त में शुगर का स्तर भी बैलेन्स रहता है, इसलिए रात में भी खाया जा सकता है.
ब्राउन राइस के सेवन में दो बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए.
नॉन बासमती राइस का उपयोग ही किया जाए क्योंकि इसके दाने छोटे होते है और उनका जी आई कम होता है. बासमती ब्राउन राइस के सेवन से कोई लाभ नहीं होगा.
इसको बनाते समय इसका पानी नहीं फेंकना चाहिए क्योंकि इसमें पानी में घुलनशील विटामिन-बी और खनिज लवण रहते हैं.
इतनी तारीफ के बाद तो अब ब्राउन राइस सबके किचन में आ ही जाएगा.
और हाँ यदि आप सोच रहे होंगे कि ब्राउन राइस कहीं विदेश से आयत हो कर आया है तो गलत सोच रहे हैं.
जयराम ही जॉय बन कर आया है.
हमसे बस दो पीढ़ी पहले वाले जो लोग थे न, वो सब ब्राउन राइस ही खाते थे.
उन दिनों बड़े-बड़े राइस मिल नहीं थे इसलिए घरों में ही ओखल में चावल कूटा जाता था और उसकी पॉलिशिंग नहीं होती थी, इसलिए वो आज का ब्राउन राइस ही था.
पर जब तक घृतकुमारी एलोवेरा नहीं बनता है, हमको उसके गुणों के बारे में पता ही नहीं चलता है न.
कोई बात नहीं, अब चावल ब्राउन राइस बन गया है तो अब तो इसको सम्मान के साथ रसोई की शान बनाया ही जा सकता है.