नाथ शब्द का एक अन्य अर्थ है शण्मुखी योग साधनाओं से शरीरस्थ दस द्वारों में से नौ द्वारों को नाथने वाला नाथ कहलाता है.
श्रीमदभगवदगीता के अध्याय 5 के श्लोक 13 के अनुसार ”सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी, नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्तु कारयन.. अर्थात जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं ऐसा देहधारी आत्म संयमी पुरुष (अर्थात शरीर रूपी नगर के नौ द्वारों को नियनित्रत करने वाला) सम्पूर्ण कर्मों का सम्यकरूपेण त्याग करके सुखपूर्वक रहता है.
विस्तृत रूप से देखा जावे तो यह परिभाषा भी पहली परिभाषा का ही दूसरा रूप है. यहां इस भ्रम को दूर किया जा सकता है कि, इन्द्रियों को जीतना और उन्हें वश में करना दो बिल्कुल अलग क्रियाएं हैं.
‘नियन्त्रण पद से किसी क्रिया का संचालन अभिप्रेत होता है, जबकि ‘जीत लेना पदों से दमनात्मक कार्यवाही प्रतिबिम्बित होती है. इसी कारण इन्द्रियों को दमनपूर्वक जीतने वाला जितेन्द्रीय अथवा जिनेन्द्रीय तो हो सकता है किन्तु वह उनका संचालक नहीं हो सकता और समय पाकर इन्द्रियाँ फिर से सक्रिय हो सकती हैं. श्रीमदभग्वदगीता में वर्णित और योगियों का आशयित आत्म संयम द्वारा इन्द्रियों का संचालक नाथ ही है.
भारतीय चिन्तन के रुढि़वादी तरीकों के विपरीत आत्मज्ञान के द्वारा परमात्मा की प्राप्ति पर जोर देने के कारण कहीं-कहीं इन्हें तांत्रिक की संज्ञा दी जाती है. ये दर्शनी योगी योग के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास, दर्शन और संस्कृति में विशष्ट स्थान रखने वाले योगाचार्य गोरक्षनाथ, (जिनके काल के संबन्ध में अब तक निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सका है), के अनुयायी हैं और नाथपंथी अथवा गोरक्षनाथी भी कहे जाते हैं.
हिन्दू धर्म के शैव मतावलंबियों और बौद्धों की संन्यास व्यवस्था और साधना पद्धति इन दर्शनी योगियों की विचारधारा और साधना पद्धति ‘हठयोग’ से मिलती है.
‘नाथ सम्प्रदाय एक ऐसा सम्प्रदाय है जिसके सदस्य मानव शरीर को अविनाशी और दिव्य शरीर में रूपान्तरित करके अमरता प्राप्ति का प्रयत्न करते हैं.
इसमें हिन्दू मतावलम्बियों के शैव और बौद्धों की संन्यासी परम्पराएं और हठयोग सहित रहस्यपूर्ण विधियां समाहित हैं. ‘नाथ पदावली नाथ सम्प्रदाय के पारम्परिक नौ योगाचार्यों के नाम से भी उद्धृत की गयी प्रतीत होती है, जिनके सभी के नाम नाथ पद के साथ समाप्त होते हैं.
ग्रन्थों में नवनाथों के नाम पर मतभेद हैं तथापि इस तथ्य पर सभी एक मत हैं कि, उन सभी नवनाथों ने यौगिक अनुशासन द्वारा अपने शरीरों को सफलतापूर्वक अविनाशी आत्मिक स्वरूप में परिवर्तित कर लिया है और हिमालय में अपने सूक्ष्म रूप में रहकर समय-समय पर स्थूल रूप में प्रकट होते हैं.
ये नवनाथ हिन्दू संन्यासियों के 84 महासिद्ध योगियों की सूची में हैं. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सहित कतिपय विद्वानों ने बौद्धों की सूचि में भी इन नवनाथों की उपस्थिति बतायी है. प्रत्यक्षत: बौद्धों का नाथों से कोर्इ संबंध नहीं रहा किन्तु फिर भी यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि बौद्धों ने नाथयोगियों के सिद्धयोग के प्रथम सोपान हठयोग के सन्दर्भ में विकट शारिरिक व्यायाम को अंगीकार किया है. अत: संभव है कि बौद्धों के 84 सिद्धों की सूचि में नवनाथों के नाम उनके प्रति आदर और कृतज्ञ भाव से आये हों.
(क्रमश:)
– योगी हरिहर नाथ
जल के नाथ, थल के नाथ, नाथ अनाथ के सबके नाथ : भाग 1