पिछले प्रवास में जब झारखण्ड गया था तो राँची में एक मित्र के यहाँ रुका था, बहुत अच्छे मित्र है. राँची जिले के कुछ गाँवों में घुमाये और हमारी अच्छी तरह से मेहमाननवाजी भी किये.
अगले दिन हमें राँची के एक महँगे होटल में ले के गए. बोले कि गंगा भाई चलो एक बड़ी पार्टी आ रही है जमशेदपुर से, एक बड़ी लैंड-डीलिंग है. आज ज़रा सामने से देख लो कि लैंड-डीलिंग कैसे होती है.
तय समय अनुसार वो लोग आते हैं एक बेहद ही महंगी गाड़ी में. होटल के कमरे में मीटिंग शुरू होती है. प्लॉट्स के कागज निकलते हैं और मैप देखना शुरू..
जगह रांची-टाटा हाईवे जस्ट किनारे वाली जमीन (CNT और SPT एक्ट वाली नहीं), टोटल साढ़े 17 एकड़ जमीन .. टोटल कीमत करीब 6 करोड़ रूपये (34,000 पर डिसमिल).. सबकुछ तय होती है और फिर बाद में तारीख तय करके शेष लिखा-पढ़ी के काम.
वे चले जाते हैं.. लेकिन मेरे मन में शंका उत्पन्न होती है कि कोई इतनी जमीन एक साथ क्यों बेचेगा वो भी ऐसी साईट में?.. कुछ जमीन बेच के वो खुद अच्छा-खासा धंधा कर सकते है, लेकिन पूरी की पूरी जमीन?!..
ऐसा नहीं कि जमीन मालिक कमाने खाने वाले और नौकरी-पेशा वाले है कि इसको बेच के कहीं और सेटल हो जाय या फिर किसी को गम्भीर बीमारी हो या पैसे की बहुत किल्लत हो जिसके चलते ज़मीन बेच रहे हो..
इन्हीं जमीनों के भरोसे इसकी रोजी-रोटी चलती थी, खेती बारी करते हैं इसमें. लेकिन पूरा का पूरा बेच रहे हैं . मेरे से रहा नहीं गया.. मैंने पूछ लिया “भैया ये ज़मीन एक साथ बेचने की कुछ वजह? ऐसे कैसे कोई इस तरह जमीन बेच देगा.. मुझे इसमें संदेह है.. क्लियर करेंगे?”
वे बोले “अरे क्या संदेह है ?? और क्या करोगे जानकर ! .. रहने दो न .. यहाँ अलग कहानी है!”
“अलग कहानी !!! ?? (अब मैंने जिद्द पकड़ ली) ..नहीं भैया बताइये.. क्या अलग कहानी है ? … जैसा आपने पहले बताया था कि पैसे-वैसे की कोई ज़रूरत नहीं है, लेकिन ज़मीन बेच रहे हैं, ऐसे कोई क्यों बेचेगा अपनी जमीन वो भी एक साथ.. पूरा का पूरा? सरकार छानबीन भी नहीं कर रही है अभी तो फिर ऐसा क्यों?”
“अरे गंगा भाई.. अंदर की बात है.. क्या करोगे जानकर.. छोड़ो न!”
“नहीं बताइये.. !” (मेरी जिद्द के आगे वो झुक गए)
“नक्सली सुने हो न?”
“हाँ क्यों नहीं.. हम खुद उसी एरिये से आते है!”
“हाँ तो उसी का चक्कर है”
“कैसे ?”
“आदिवासियों की जमीन में CNT और SPT एक्ट है तो उसको भूल जाओ.. बाकी जिसकी जमीनें इसके बाहर है उसकी खरीद-बिक्री अभी ज़ोरो पे है.. बाहर से दिखेगी कि सब नॉर्मल खरीद-बिक्री हो रही है लेकिन नॉर्मल बहुत कम है..
इसमें ज्यादातर जमीन नक्सलियों के धमकियों के कारण बेचे जा रहे हैं.. और इसमें उनलोगों को मोटा माल मिलता है.. रात में बन्दूक ले घरों में घुस जाते हैं और जल्दी से जमीन बेच डालने की धमकी दे जाते है..
जितना पैसा मिल रहा है उसको पकड़ो और सिटी में जा के फ्लेट लो और रहो और बाकी के पैसों से कुछ बिजनेस खोल लो.. नहीं तो जो अभी मिल रहा है वो भी न मिलेगा और जान जायेगी सो अलग!”
अभी भी ये धंधा चल रहा है.. ये नक्सली जिस पूंजीवाद के विरुद्ध लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं, परदे के पीछे उन्हीं पूंजीपतियों के लिए लेवी और दलाली का काम करते हैं.
कोई कम्पनी बैठने को हुई तो सेठों और ठेकेदारों से लेवी.. सड़क से ले के लगभग हर परियोजना में इसकी हिस्सेदारी और जिसने देने से इनकार किया उसका राम नाम सत्य!
पूंजीपतियों के खिलाफ लड़ते-लड़ते ये खुद इतने बड़े पूंजीपति बन बैठे कि जिसके पूंजियों का कोई हिसाब-किताब नहीं.. बक्से के बक्से रूपये घने जंगलों में बनाये गए बंकरों में रखते हैं.. और फिर इन पैसों से सारी नक्सली गतिविधियाँ.
सरकार के नोटबन्दी से अगर किसी को बहुत ज्यादा झटका और सदमा लगा है तो वो हैं ये नक्सली!! .. बंकरों में पड़े करोड़ों रूपये पत्तें के माफ़िक़ हो गए हैं.
उन्हें बैंकों में जमा करवाने के लिए एड़ी-चोटी एक करना पड़ रहा है!.. कुछ सूझ नहीं रहा है इनलोगों को..
(बाकी एक चित्र संलग्न कर रहा हूँ, उससे वस्तुस्तिथि और स्पष्ट हो जायेगी)