आज वैचारिक दरिद्रता का दौर है..
आप राष्ट्र, संस्कृति, संस्कार, योग, ध्यान, आयुर्वेद, अध्यात्म की बातें करते हैं तो आप घोर कम्यूनल हैं… एकदम संघी है… कुछ क्रांतिकारियों की माने तो आपका बौद्धिक विकास नहीं हुआ है.. आप मोदी भक्त हैं.
बस आप योग, आयुर्वेद, पर्व, त्यौहार, परम्परा का मख़ौल उड़ाते हैं.. देश को गरियाते हैं.. विवेकानंद से ज्यादा चे ग्वेरा में रूचि में रखते हैं.. किस आफ लव आपको क्रान्ति लगता है.. महिषासुर देवता नज़र आता है.. तो साहेब आप प्रगतिशील हुए.. यानी की सर्टिफाइड बुद्धिजीवी हुए…
मैं इस प्रगतिशीलता को देखकर दुःखी हो जाता हूँ… अपने देश गाँव, संस्कार, आध्यात्मिक मूल्यों के साथ महान सांस्कृतिक परम्परा का मजाक बनाकर दो कौड़ी की प्रगति बर्दाश्त नहीं होती है….
मुझे इन प्रगतिशील क्रांतिकारियों के नजदीक जाकर देखने पर अजीब लगता है. घोर निराश ….हताश.. हद से ज्यादा पेसीमिस्ट.. अपने वर्तमान से असन्तुष्ट.. चारों ओर इन्हें कमियां दुःख अवसाद नज़र आता है…
न इनके लिए जीवन में कोई रस है न आनंद न सुख… बस बेचारे क्रान्ति के लिए मरे जा रहें हैं…. क्रान्ति हो जाय भले जान चली जाये.
कुछ इसी प्रगतिशील टाइप के फेसबुकिया बुद्धिजीवी क्रांतिकारी बाबा रामदेव का खूब मजाक उड़ाते हैं…. सलवार वाले बाबा.. काला धन वाले बाबा कहते हैं.. उनका योग करना उनके पतंजलि प्रोडक्ट्स… सब बकवास लगता है. बाबा व्यापारी लगते हैं..
मुझे चिंता होती है कि ओह.. ये जल्द ही मानसिक रुग्ण हो जायेंगे. 24 घण्टा इनका तनाव, नकारात्मक व्यवहार.. जल्द ही अनिद्रा, शुगर ब्लडप्रेशर हार्ट अटैक में तब्दील होगा और किसी दिन ये बेचारे दवाई खाते खाते असमय काल के गाल में समा जायेंगे… इन्हें तो सबसे पहले योग और प्रणायाम की शरण में जाने की जरूरत है..
तरस आता है.. अरे योग हजारों सालो पहले विश्व को दिया गया भारत का उपहार है. ये क्या जाने कि कितना अच्छा लगता है सुबह पार्कों में देखकर.. आठ साल से लेकर अस्सी साल तक के लोग कतार बद्ध योग कर रहें हैं… अणुलोम विलोम, कपाल भाति, सूर्य नमस्कार..
सीना गर्व से चौड़ा होता है.. जब न्यूयार्क, बीजिंग मास्को और टोकियो में हजारो लोग योग और ध्यान की मुद्रा में दीखते हैं…. मन आनंदित और शांत हो जाता है बनारस के दरभंगा घाट पर किसी विदेशी को ध्यान मुद्रा में बैठे देखकर.
और उससे ज्यादा अपनी लापरवाही के बावजूद योग और प्रणायाम सूर्य नमस्कार करने से जो मुझे फायदा मिला उसको शब्दों में बता नहीं सकता.
ये सच है कि आज योग और आयुर्वेद को प्रचारित करने में जितना बाबा रामदेव ने योगदान दिया है उतना शायद ही किसी ने दिया हो…..
आप उनका मजाक उड़ाकर खुद की वैचारिक दरिद्रता को खाद पानी दे सकते हैं… पर इससे इनकार नही कर सकते कि योग जैसी वैज्ञानिक और आध्यात्मिक विधि का विकल्प अभी किसी संस्कृति के पास नहीं है ..और इसको लोकप्रिय बना कर जन जन में पहुंचाने में बाबा का क्रांतिकारी योगदान है.
आज गाँव जवार देश दुनिया में हर धर्म सम्प्रदाय में भारत की इस आध्यात्मिक विरासत का डंका बज रहा.. बिना किसी बिकनी मॉडल के प्रचार के पतंजलि के उत्पाद गाँव गाँव शहर शहर मिल रहें हैं… बल्कि पतंजलि सिर्फ एक उत्पाद नहीं भारत की पहचान बन रहा है… तमाम उसके संगठन राष्ट्र सेवा और समाज सेवा में दिन रात लगे हैं.
ऐसे बाबा रामदेव जैसे सैकड़ों व्यापारियों की बहुत आवश्यकता है. इस सो कॉल्ड गतिशीलता की ऐसी की तैसी करते हुए मैं आपसे कहूँगा कि मैं भी पतंजलि के उत्पाद प्रयोग करता हूँ… और बहुत सन्तुष्ट हूँ.. बाबा के सारे उत्पाद अन्य बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों से बहुत ही अच्छे है.
हाँ ये है कि हम पूरी तरह से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों से आजाद नहीं हो सकते.. लेकिन कई स्वदेशी उत्पादों को अपनाकर एक राष्ट्र सेवा और योग करके चित्त को शुद्ध कर सकते हैं. बस इन प्रगतिशीलों को पता नहीं कि अमेरिका गरियाने के बाद अमेरिका का दारु लेकर नौ बजे सुबह उठने से कोई क्रान्ति नहीं होती.
बाहर क्रान्ति करने से पहले अपने भीतर एक क्रान्ति करनी पड़ती है… जिसे आत्मक्रांति कहते हैं.. जो सच्चे मायने में सबसे जरूरी क्रान्ति है.
nice article. haa ye bilkul sach hai aayurved ko parchlit karne me jitna baba ramdev ka yogdaan hai utna kisi ka nahi hai .