अबूझ रहस्यों के कुहासों में डूबा, जिसका जर्रा जर्रा तिलिस्म वैभव, प्राकृतिक रेगिस्तानी सौंदर्य, वीरों की वीरता भरी लड़ाइयों की अनन्त गाथाओं से भरा जैसलमेर का अंतरराष्टीय बॉर्डर!
तीन दिन से बॉर्डर के प्राकृतिक सुकून के सौंदर्य को देखने, भारत की सुरक्षा में मुस्तेद बीएसएफ के जवानों के साथ रहने व उनकी जीवनशैली के हसीन पलों को अपने कैमरे में कैद करने के बाद आज चौथे दिन हम वापस शहर पहुंचे.
मुझे सच में इस हद दर्जे के खूबसूरत प्राकृतिक रेगिस्तानी बॉर्डर को देखने के बाद इससे मोहब्बत हो गयी है. यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य, यहाँ के सिपाहियों के बीच उल्फत का एक खूबसूरत रिश्ता, जोश, जज्बा, जीवन्त किशनगढ़ और घोटाडू के किले, जंग की दास्तानों के गवाह लोंगेवाला में पाकिस्तानी तोपें व टैंक, माँ तनोट के प्रति सिपाहियों की आस्था, यहाँ के बाशिन्दों की कठोर जीवनशैली, पशुओं की लम्बी लम्बी कतारें, पंछियो की चहचहाहट, ढलते सूरज की रौशनी में अपनी अलग ही छटा बिखेरते रेतीले धोरों ने हमें मंत्रमुग्ध ही कर दिया.
दुनिया के सबसे खूबसूरत रेगिस्तान होने का आभास कराता जैसलमेर का अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर प्रकृति माँ की दुलारी संतान है. बॉर्डर पर बीएसएफ की ठसक! लतीफी! जोश! जज्बा! जवानों जीवनशैली एक अलग ही आनन्द की अनुभूति करवाता है.
इन सब हसीन सुकुनी पलों के बीच हमारे साथ एक भयावह स्थिति तब आती है जब हम सूर्यास्त के समय बार्डर पर तारबन्दी के नजदीक से डूबते सूरज को अपने कैमरे में कैद कर ही रहे थे कि इतने में तारबन्दी के उस पार से एक जीप में कुछ पांच छः पाकिस्तानी सिपाही आते है और हमसे तकरीबन 150-200 मीटर की दूरी पर गाड़ी रोककर नीचे उतरते है करीब 15 से 20 मिनट घूरते हुए हमारी तरफ देखते है हम सब शांतबी! बिना हलचल के! डरे सहमे से! एक दूसरे के मुंह को ताकने लगते हैं.
हमें चैन की साँस तब मिलती है जब वे वापस अपनी गाड़ी में बैठते है और आगे बढ़ जाते है तब हम एक दूसरे को देख के होंठो पर फीकी मुस्कान लिये वापस अपने सामान को पजेरो में समेटते है और उसके बाद फिर तनोट गेस्टहाउस पर आ जाते हैं.
इन चार दिनों के सुखद अनुभव के अंत में मैं यही कहूंगा कि यह बॉर्डर एक रेगिस्तान मात्र नहीं है! यह यहाँ के बाशिन्दों और भारत के जाबांज सीमाप्रहरियों के दिल का एक अटूट हिस्सा है.
जय माँ तनोट! वंदेमातरम सीमा के सीमाप्रहरियों!!
– Koomp Singh Rathore Lodrawpur