सबसे पहले जर्मनी द्वारा ब्रिटेन की करेंसी को प्रिंट कर आर्थिक युद्ध की शुरूआत की गयी.
जर्मनी को ये आईडिया बिहार के एक लाल महेन्द्र मिश्र से मिला. महेन्द्र मिश्र 1924 में अंग्रेजो द्वारा नकली करेंसी प्रिंट करने के आरोप में जेल भेजे गये थे.
जर्मनी ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान करीब 1300 करोड़ रूपये मूल्य के 90 लाख़ ब्रिटिश पाउन्ड प्रिंट किये…
जर्मनी के बाद दो और देशो ने नकली करेंसी को दुश्मन देश के खिलाफ़ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया…
पहला उत्तर कोरिया जिसने अमेरिका के खिलाफ़ इसे इस्तेमाल किया और दूसरा पाकिस्तान जिसके बारे में आप सब जानते ही है….
उत्तर कोरिया ने जो नकली डॉलर प्रिंट किया वो इतना अच्छा था कि उसे सुपर डॉलर कहा गया…
पाकिस्तानी क्वालिटी इतनी अच्छी नही थी और सिर्फ 2014-15 में करीब 6 लाख़ नकली नोट भारतीय बैंको द्वारा जब्त किये गये.
हालांकि अनुमान के मुताबिक करीब 1700 करोड़ मूल्य के नकली नोट चलन में है जिनमे से अधिकतर कभी बैंक नही पहुँचते…
नकली करेंसी का एक सबसे बड़ा नुकसान जो शायद हम सबने महसूस किया है वो है.. बैंक द्वारा नकली करेंसी जब्त कर लेना, बदले में हमें कुछ नही मिलता.
जो नुकसान हम लोग सीधे तौर पर महसूस नहीं कर पाते है वो है महंगाई.. जी हाँ नकली करेंसी नकली तौर से मंहगाई को बढ़ाती है…. पर कैसे?…
शेख शहजाद और शेख फजुल्लाह दोनो मोतिहारी के एक छोटे कस्बे से निकल कर मेरठ मे काम की तलाश मे आये..
जल्दी से ज्यादा पैसा कमाने के लिये दोनो ने 1-1 लाख के नकली नोट 60-60 हजार में खरीदे.
एक महीने में नकली नोट बाजार में जाकर धीरे धीरे बदल लिये.. अब इस अचानक आये हुये पैसे से मोतिहारी जाकर जमीन खरीदी..
अचानक जिस जमीन का एक खरीददार था, अब तीन खरीददार हो गये, जमीन के रेट बढ़ गये. वो बात और है कि दोनो ही 25 जून 2016 को NIA द्वारा धर लिये गये.
आपको अंदाज़ भी नहीं होगा कि पाकिस्तान इस गोरखधंधे से कितना कमाता होगा…
अनुमान के मुताबिक पाकिस्तानी फौज सालाना 500 करोड़ रूपये (source : The Diplomat 14th nov 2016) नकली नोटो का कारोबार करके कमाती है.
इसी पैसे से आतंकवादियों और पत्थरबाजों को पैसे दिये जाते है… मतलब बिना अपना पैसा खर्च किये नापाक ने हमें नुकसान पहुँचा दिया….
तीसरा सबसे बड़ा नुकसान…. समाज मे अविश्वास का माहौल पैदा होता है… जरा सोचिये जिस दुकानदार ने आपको नकली नोट दे दिया उसे आप किस नजर से देखेंगे…
इकबाल काना, शामली (मुजफ्फ़रनगर) का छोटा सा बदमाश था जो रंगदारी और हथियारों की स्मगलिंग में लिप्त था.
चूंकि शराब हराम थी, तो उसने ड्रग्स के बिजनेस में हाथ आजमाये… पुलिस का प्रेशर बढ़ा तो वो अंडरग्राउंड हो गया मने भाग गया…..
कुछ समय के बाद इकबाल काना लाहौर में एक वस्त्र व्यवसायी के रूप में सामने आया…..
ISI के ब्रिगेडियर लाला के साथ मिलकर उसने भारत में नकली करेंसी चलाने का धंधा शुरू किया…. इस काम में उसने अपने पुराने नेटवर्क का इस्तेमाल किया…
नशे के कारोबार का अनुभव उसके काम आया और वो भारत में नेपाल के रास्ते बिहार और उत्तर प्रदेश, अटारी बॉर्डर के रास्ते पंजाब में नकली नोटो का सबसे बड़ा सप्लायर बन गया.
इकबाल काना सिर्फ एक सप्लायर है…. ISI के ब्रिगेडियर लाला ने बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैण्ड, UAE और मलेशिया के रास्ते सामान नेटवर्क तैयार किये…..
2012 मे इनके चाइना रूट का पता चला….. चीन से आयातित स्कूल बैग्स मे 27 लाख के नकली नोट पकड़े गये (source: The Diplomat 20 जून 2012)…..
2013 के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियो ने नकली नोटों के कारोबारियों के खिलाफ जंग को तेज किया….
मोदी की सफल विदेश नीति का एक परिणाम ये भी था कि पहली बार विदेशो में भी नकली नोटो के आतंकवादियो को दबोचा गया….
असलम शेरा की श्रीलंका, अमानुल्लाह पराचा की बांग्लादेश और UAE से रेहान अली की गिरफ्तारी रॉ (RAW) की दी जानकारी से ही संभव हो सकी.
भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की बढ़ी हुई सख्ती की वजह से 2016 तक नकली नोटों का भारी स्टॉक पाकिस्तान और भारत में जमा हो गया था….
नकली नोटों का ये कारोबार क्यूँ इतना बढ़ा??? शायद इस धंधे को करने में जोखिम के अनुपात में मुनाफा ज्यादा था….
माना पाकिस्तान को सुधारने में वक्त लगेगा पर बिचौलियो को हम जरूर सुधार सकते है…. उन्हे भारत के खिलाफ़ कुछ करने के ख्याल से भी ड़र लगना चाहिये…. अन्दर से दहशत की झुरझुरी उनके शरीर में दौड़ जानी चाहिये.
मोदी जी के एक फैसले से अचानक इस धंधे का जोखिम कई गुना बढ़ गया है… दहशत की झुरझुरी दौडने लगी है…
एक खबर के अनुसार ISI के एक पूरे डिपार्टमेंट में मातम छाया है…….ISI का ब्रिगेडियर लाला बेरोजगार हो गया है.
(आनंद कुमार के सौजन्य से हिमांशु शर्मा का लेख)