जदुनाथ सिंह का जन्म 21 नवम्बर 1916 को शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) में एक किसान परिवार में हुआ था. 1941 में जदुनाथ सिंह ने राजपूत रेजिमेंट में प्रवेश किया. जुलाई 1947 में उन्हे लान्स नायक के रूप में तरक्की मिली थी.
1947 के भारत-पाक युद्ध के दौरान कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में दुश्मनों के छक्के छुड़ाकर नौशेरा चौकी को कब्जे में लेकर तिरंगा फहराने वाले जदुनाथ टैनधार नामक स्थान पर तैनात थे.
वे दो बार दुश्मन को पीछे धकेल चुके थे. 6 फरवरी 1948 को दुश्मन की ओर से तीसरा बड़ा हमला हुआ. इस बार दुश्मन की फौज की गिनती काफ़ी थी और जदुनाथ के सभी सिपाही घायल थे.
ऐसे में जदुनाथ सिंह ने फुर्ती से अपने एक घायल सिपाही से स्टेनगन ली और लगातार गोलियों की बौछार करते हुए बाहर आ गये. इस अचानक आमने-सामने की लड़ाई से दुश्मन एकदम घबरा गया और पाक सेना को पीछे हटना पड़ा.
इस बीच उनके ब्रिगेडियर ने सैनिको की एक सहायता टुकड़ी टैनधार की तरफ भेज दी थी. जदुनाथ सिंह को उनके आने तक डटे रहना था. वे बहुत बहदुरी से लगभग 250 दुश्मन के सैनिको से अकेले लड़ रहे थे तभी अचानक एक सनसनाती हुई गोली आई और जदुनाथ सिंह के सिर को भेद गई.
वे वहीं रणभूमि में गिरे और हमेशा के लिए सो गये. उनकी इस शहादत से उनके घायल सैनिकों में जोश का संचार हुआ और सभी घायल सैनिक उठ खड़े हुए. तब तक पीछे वाली सहायता टुकड़ी भी वहाँ पहुँच गयी जिसके कारण नौशेरा पर कब्जा करने में दुश्मन नाकाम रहा, लेकिन जदुनाथ सिंह वीरगति को प्राप्त हुए .
इस अपूर्व वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च शौर्य पुरस्कार परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया.
उनकी याद प्रत्येक वर्ष 6 फरवरी को उनके बलिदान दिवस पर कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में एक विशाल मेला लगता है. सरकार ने उनकी जन्मभूमि हथौड़ाबुजुर्ग गाँव में उनकी याद में एक स्टेडियम बनाया है और उनकी एक आवक्ष मूर्ति स्थापित की है .
जन्मदिन पर शहीद जदुनाथ को नमन एवं कृतज्ञ राष्ट्र की भावपूर्ण श्रद्धांजलि !