गाड़ी बुला रही है…….. (एक गाना जो संवेदना को बूझ-बूझकर जगाता है)
गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है
चलना ही जि़न्दगी है, चलती ही जा रही है
गाड़ी बुला रही है…..
देखो वो रेल, बच्चों का खेल, सीखो सबक जवानों
सर पे है बोझ, सीने में आग, लब पर धुँआ है जानों
फिर भी ये जा रही है, नगमें सुना रही है
गाड़ी बुला रही है…..
आगे तूफान, पीछे बरसात, ऊपर गगन में बिजली
सोचे न बात, दिन हो के रात, सिगनल हुआ के निकली
देखो वो आ रही है, देखो वो जा रही है
गाड़ी बुला रही है..
आते हैं लोग, जाते हैं लोग, पानी के जैसे रेले
जाने के बाद, आते हैं याद, गुज़रे हुए वो मेले
यादें बना रही है, यादें मिटा रही है
गाड़ी बुला रही है…..
गाड़ी को देख, कैसी है नेक, अच्छा बुरा न देखे
सब हैं सवार, दुश्मन के यार, सबको चली है लेके
जीना सिखा रही है, मरना सिखा रही है
गाड़ी बुला रही है……
गाड़ी का नाम, न कर बदनाम, पटरी पे रख के सर को
हिम्मत न हार, कर इन्तज़ार, आ लौट जाएँ घर को
ये रात जा रही है, वो सुबह आ रही है
गाड़ी बुला रही है…..
सुन ये पैगाम, ये संग्राम, जीवन नहीं है सपना
दरिया को फांद, पर्वत को चीर, काम है ये उसका अपना
नींदें उड़ा रही है, जागो जगा रही है
गाड़ी बुला रही है…….
यह अब से चालीस साल पहले आयी फिल्म दोस्त का एक अनूठा प्रेरणादायी गीत है जिसमें रेलगाड़ी के माध्यम से जीवन के सच, उसके अस्तित्व, संघर्ष और हौसले को व्यक्त किया गया है.
इस फिल्म का प्रदर्शन 1974 में हुआ था. प्रेम जी इस फिल्म के निर्माता थे और निर्देशन किया था दुलाल गुहा ने. इस फिल्म में मुख्य भूमिका धर्मेन्द्र ने निभायी थी जिनको भारतीय सिनेमा सदाबहार सितारा कहा जाता है.
गाड़ी बुला रही है, गाने की रचना आनंद बख्शी ने की थी. लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने इसका संगीत तैयार किया था. जिस तरह का यह गीत लिखा गया था, रेल की सीटी और उसकी चाल को समय से जोडक़र मनभावन और गहरे डूब जाने पर विवश कर देने वाली संगीत रचना इस गाने की महसूस होती है.
यह गाना ऐसा है, जो हमारे जीवन की कठिनाइयों, हमारी टूटती-बलवती हिम्मत और हमारे सपनों को पंख देता प्रतीत होता है. पढऩे में यह गाना जितना सुरुचिपूर्ण है, सुनने में उतना ही आनंददायक भी.
यह गाना फिल्म के प्रारम्भ में ही है. फिल्म की शुरूआत में ही जब नामावली परदे पर आती है, तब पार्श्व में यह गाना चलता है.
हिमाचलप्रदेश की लोकेशन है. छोटी सी रेलगाड़ी छुकछुक जाती दिखायी दे रही है, और यह गाना बज रहा है.
हम इसी नामावली के बीच फिल्म के नायक मानव को देखते हैं, जिसकी भूमिका धर्मेन्द्र ने निभायी है. अपनी अनुभूतियों और ख्यालों में तमाम खुशियाँ, उत्सुकता और बेसब्री लिए वह रेलगाड़ी में बैठा जा रहा है.
उसकी पढ़ाई पूरी हो गयी है. मानव अपने पिता से मिलने के लिए बेताब है, जिन्होंने बचपन में उसे अपने गोद में खिलाते हुए , आती-जाती रेल के सामने सुनाया था. वह अपने फादर का खत पढ़ता है……..
“दो साल बाद मेरा मानव मुझसे मिलने आ रहा है मगर आज का मानव वो नन्हा-मुन्ना मानव नहीं बल्कि एम. ए. पास एक होनहार नौजवान है. मगर मानव, स्कूल और कॉलेज का इम्तिहान खत्म होने से ही स्टूडेंट लाइफ खत्म नहीं होती.
जि़न्दगी के हर मोड़ पर, हर एक इंसान, एक स्डूडेंट है. इसलिए मैं तुमसे जो कुछ कहना चाहता हूँ वो तुम्हारे लिए जानना बहुत ज़रूरी है. मुझे मालूम है, तुम आ रहे हो. तुम मुझसे दूर रहे, लेकिन मैं हमेशा तुम्हारे करीब, तुम्हारे पास रहा. तुमने लिखा था कि मेरे लिए एक शाल खरीदी है. मुझे चाहिए. बहुत सर्दी लग रही है और फिर तुम्हारा माउथ ऑर्गन सुनने के लिए भी मेरी आत्मा तड़प रही है.
….मानव संगीत इन्सान की जि़न्दगी का एक बहुत बड़ा अंग है. तुम्हें याद है, न संगीत के ज़रिए ही तुम्हें जि़न्दगी का हर फलसफा समझाता आया हूँ. तुम वो संगीत भूले तो नहीं……”
मानव के मुँह से बरबस निकलता है, “नहीं फादर….” और परदे पर से गाना शुरू हो जाता है, गाड़ी बुला रही है.
तारा देवी स्टेशन पर उतरकर मानव तेज दौड़ता हुआ फादर को आवाज़ लगाते चर्च में दाखिल होता है तो वहाँ अपने फादर फ्रांसिस के बजाय फादर रिवैलो को देखकर चौंक जाता है.
वह फादर फ्रांसिस को पूछता है तो फादर रिवैलो बतलाते हैं कि वो एक साल पहले इस दुनिया से चले गये. यह जानकर मानव को यकीन नहीं होता. वो कहता है कि वे तो मुझे हर हफ्ते खत लिखते थे. उनका आखिरी खत भी मेरे पास है.
इस बात पर फादर रिवैलो, मानव को बतलाते हैं कि एक साल पहले फादर फ्रांसिस गम्भीर बीमार थे. उन्होंने ही उन्हें खूब सारी चिट्ठियॉं हर सप्ताह पोस्ट करने को दी थीं ताकि तुम अपनी पढ़ाई अधूरी छोडक़र न चले आओ. मानव इस बात को जानकर कि फादर फ्रांसिस अब नहीं रहे, रोने लगता है.
अगले दृश्य में हम देखते हैं कि मानव अपनी अटैची से एक शॉल निकालकर फादर फ्रांसिस की कब्र को ओढ़ा रहा है. फिर वो अपना माउथ ऑर्गन निकालकर बजाता है. उसकी आँखों में आँसू है, उसे फिर फादर याद आ जाते हैं, जो गा रहे हैं, आते हैं लोग, जाते हैं लोग, पानी के जैसे रेले……. मानव बचपन की याद में खो जाता है…… जाती हुई रेल के किनारे फादर उसे गोद में लेकर रेल दिखाकर गा रहे हैं…….. गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है…….
गाना खत्म होने के बाद हम मानव को फिर से एक बार फादर रिवैलो के साथ देखते हैं जो मानव को फादर फ्रांसिस का एक खत देते हैं. वो मानव को एक किताबों से भरी अटैची भी देते हैं जो फादर फ्रांसिस उसके लिए छोड़ गये हैं. मानव वह खत रेल में पढ़ रहा है…….
“मानव, अगर मैं चाहता तो तुम्हें क्रिश्चियन बना सकता था, मगर मैंने कभी कोशिश नहीं की क्योंकि मेरा यकीन है कि जो एक अच्छा इंसान है, वो एक अच्छा हिन्दू है, एक अच्छा मुसलमान है, एक अच्छा क्रिश्चियन है. इसलिए मैंने तुम्हारा नाम मानव रखा. तुम्हारा धर्म मानव धर्म है.”
यह पूरा दृश्य और गाड़ी बुला रही है गाना, पूरा सुनकर मन बहुत सी बातें सोचने पर विवश हो जाता है. गीतकार ने किस प्रकार एक गीत और विशेषकर रेल को केन्द्र में रखकर जीवन के दर्शन को ही प्रस्तुत कर दिया है.
किशोर कुमार ने इस गाने को जिस गम्भीरता और प्रवाह से गाया है, उससे हमारे सामने रेल, उसकी छुकछुक और इन्सान के हृदय की विराटता की अपेक्षा रेल से करने का फलसफा, सब एक अलग ही सोच की तरफ ले जाता है.
हम इन दृश्यों में एक पादरी का स्नेहिल व्यक्तित्व, एक बेसहारा बच्चे को अच्छे संस्कार देकर पालना और जीवन में एक आदर्श इन्सान बनने की प्रेरणा देना, यह सब देखते हैं. दोस्त फिल्म का यह नायक मानव उन्हीं संस्कारों के रास्ते चलकर सभी तरह के संघर्ष का सामना करता है. जब कभी उसकी हिम्मत टूटती है तो अपने फादर की सीख, इस गाने के अन्तरे उसको भीतर से मजबूत करते हैं.
अभि भट्टाचार्य, एक प्रतिष्ठित अभिनेता थे जो इस फिल्म में फादर फ्रांसिस बने थे. वे जिस आल्हाद और प्यार भरे भाव से एक छोटे बच्चे को गोद में लिए, उसके साथ खेलते-कूदते, माउथ ऑर्गन बजाते, रेल दिखाकर गाते इस गाने में दिखायी पढ़ते हैं, उसे देखते हुए उस अकाट्य सत्य से रूबरू होते हैं, जिसे बड़े होने पर हम बिसरा दिया करते हैं कि हर पिता अपने बच्चों से बेइन्तहा प्यार करता है……..
– सुनील मिश्र
https://www.youtube.com/watch?v=i46jlVrrwdQ