वाह री सियासत, तुझे कुर्सी की खातिर क्या क्या करना पड़ता है और क्या क्या रंग दिखाना पड़ता है. कभी आसमान से तारे लाने की बात तो कभी तारों को बनाने की बात.
बस कुछ ऐसा ही वर्तमान में देश में चल रहा है और हमसे कहा जा रहा कि मेरा देश बदल रहा है. मेरे नजरिये में एक सफल सरकार वह है जो देश के स्तर को सुधारे और हर एक आम आदमी की आवाज को पहचाने, क्योंकि एक आम आदमी चाहता ही क्या है, रोटी, कपड़ा और मकान.
लेकिन यह उस आम को कब मिलेगा, कब उनके कानों में यह खुशखबरी सुनाई देगी कि अब सरकार ने आपकी हर एक जरूरत पर ध्यान रख कर काम की शुरुआत की है और अब आपको आसानी से मिलेगी रोटी, कपड़ा और मकान.
दरअसल शासन की योजनाएं तो कई हैं, लेकिन यह योजनाएं केवल महज एक दिखावा और एक छल है.
योजना तो वह होना चाहिए जिसमें गरीब से गरीबी का सबूत न माँगा जाये और उसे उसका लाभ सीधे पहली ही बार जाँच करके दे दिया जाए, लेकिन हमारी सरकार के सिस्टम में ऐसा कोई भी सिस्टम कहां, सिस्टम तो है केवल दस्तावेजों का और सबूतों का है.
अगर आपके पास गरीबी का प्रमाण पत्र, गरीबी रेखा कार्ड, परिचय पत्र, बैंक पास बुक आदि है और आप इतना ही वार्षिक कमाते हो तब ही आपको यह योजना का लाभ मिलेगा, ऐसा है हमारे देश का सिस्टम, अगर एक गरीब है और उसके पास कागजी कोई दस्तावेज नहीं, तो कोई गरीब भला किसी योजना का लाभ लेकर बता तो दे.
क्योंकि इस तरह के वाकियों से यह तो समझ में स्पष्ट आता है कि गरीबों के नाम पर चलने वाली आधी से ज्यादा योजना का लाभ राजनेताओं के करीबी, पहुंच वाले, उनमें मैं भी स्वयं शामिल हो सकता हूँ, उन्हें मिलता है लाभ और वह सभी गरीबों का उड़ाते हैं मजाक.
बस मेरा इतना ही सवाल है सरकार से और सिस्टम की किसी भी योजना का लाभ लेने के लिए अनिवार्य की गई दस्तावेजों की कड़ी को समाप्त कर हर एक गरीब का सर्वे करवाते हुए उन्हें चिन्हित कर सीधा लाभ दिया जावे न कि दस्तावेजों की कमी के कारण उनके ही नाम से शुरू की गई योजनाओं से उन्हें वंचित किया जाए.
तब जा कर मेरा देश बदलेगा और तब हम सभी गर्व से कह संकेंगे कि मेरा देश बदल रहा.
– आशीष विश्वकर्मा